गलत टिकट वितरण पर वैश्य समाज सहित अन्य समाजों में भी भाजपा के प्रति गहरा आक्रोश

भारत सारथी कौशिक        

नारनौल। भारतीय जनता पार्टी द्वारा प्रदेश के विधानसभा चुनावों में प्रत्याशियों की पहली सूची की घोषणा के बाद पार्टी के नेताओं सहित विभिन्न समाजों में गहरी नाराजगी बढ़ती जा रही है। हर रोज सैकड़ो की संख्या में पूर्व मंत्रियों विधायकों एवं पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी भाजपा की प्राथमिक संस्था से इस्तीफा दे रहे हैं। प्रदेश के विभिन्न समुदाय के लोग अपने-अपने बिरादरी को उचित हक देने की जगह-जगह से मांग उठा रहे हैं।

भाजपा गठन के बाद हमेशा से समर्थन करते आ रहे अग्रवाल वैश्य समाज को भी पिछली बार 2019 में दी गई 9 सीटों की तुलना में अबकी बार मात्र 5 सीटें आवंटित की गई है। पार्टी द्वारा ऐसा करने से न केवल प्रदेश अपितु पूरे देश का अग्रवाल समाज में भाजपा के प्रति गहरी नाराजगी हैं। 

प्रदेश के अग्रवाल समाज के लोगों का मानना है कि भाजपा ने पहले तो अग्रवाल समाज के प्रत्याशियों की गुरुग्राम, पलवल व सोनीपत व सिरसा सीटों से टिकट काटकर पूरे समाज को अपने खिलाफ कर लिया है, वहीं नारनौल एवं रोहतक सीटें जो की अग्रवाल समाज की परंपरागत सीटें रही है तथा जहां हमेशा से इनका वहां वर्चस्व रहा है। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व एवं प्रदेश नेतृत्व ने अबकी बार किस आधार पर टिकटों का फैसला किया यह सोच से परे है।

भारतीय जनता पार्टी का पिछले 10 सालों से में प्रदेश में शासन रहा है। ऐसे में एक तरफ सरकार विरोधी लहर और दूसरी तरफ गलत टिकटों का वितरण, कहीं भाजपा के लिए आत्मघाती साबित ना हो जाए और प्रदेश में जनता उसका हरियाणा में सूपड़ा साफ ना कर दे इससे भी भयभीत नहीं है। इसलिए अग्र समाज के लोगों ने भारतीय जनता पार्टी को बची हुई 23 सीटों पर पूरी तरह सोच विचार कर अग्रवाल समाज को पूरा प्रतिनिधित्व देने की मांग की है। समाज के लोगों के अनुसार रोहतक सीट और नारनौल सीटों पर पहले भी अग्रवाल समाज के विधायक और मंत्री रह चुके हैं। वर्तमान में रोहतक के मेयर पद पर अग्रवाल समाज से मनमोहन गोयल पदासीन है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी को नारनौल और रोहतक  सीटें अग्रवाल समाज के प्रतिनिधियों को ही देनी चाहिए, अन्यथा अग्रवाल समाज का वोट बैंक जो भाजपा का हमेशा से आधार रहा है कांग्रेस या आप पार्टी की तरफ खिसक सकता है । भविष्य में दिल्ली व अन्य प्रदेशों के होने वाले चुनावों में भाजपा को इस समाज का विरोध भी झेलना पड़ सकता है और सत्ता के रास्ते भाजपा के लिए आगे के लिए कठिन हो सकते हैं।

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