सत्ता की चाह रखने वाले कर रहे हैं विरोध, जनता की नजर में कोई नहीं बाहरी

अकेली आरती राव ही पड़ रही है सब पर भारी

अशोक कुमार कौशिक 

हरियाणा में जैसे-जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है वैसे ही नेता टिकट लेने के लिए हर संभव प्रयास करने में जुटे हैं। महेंद्रगढ़ जिले के अटेली विधानसभा में तो बाहरी उम्मीदवार के नाम पर बवाल मचा हुआ है। इस बवाल को देखते हुए यहां विरोध करने वाले नेताओं पर एक लोकोक्ति बड़ी सटीक बैठती है ‘खिसकियानी बिल्ली खंबा नोचें’ । पहले तो कांग्रेसियों ने एकजुट होकर कहा कि बाहरी को टिकट न दो का शोर कर रहे थे, अब उनकी देखादेखी भाजपाई भी इस बात पर उनके सुर में सुर मिला रहे हैं कि बाहरी को पार्टी टिकट न दे।  

आखिर स्थानीय नेताओं की नींद उड़ाने वाले ये बाहरी उम्मीदवार कौन हैं ? क्या होता है बाहरी उम्मीदवार ?

कांग्रेस राव नरेंद्र सिंह, अनीता यादव, एडवोकेट हेमंत शर्मा सहित अनेक टिकटार्थीयों का विरोध कर रहे थे। राव नरेंद्र सिंह का पैतृक गांव मंढ़ाना है जो अब नारनौल विधानसभा का हिस्सा है तथा उनके निवास स्थान नारनौल में है। वह दो चुनाव नारनौल विधानसभा से लड़ भी चुके हैं। परिसीमन से पूर्व उनका गांव अटेली विधानसभा का हिस्सा हुआ करता था और उन्होंने दो चुनाव 1996 व 2000 में अटेली विधानसभा से लड़ जीते भी थे। इसके बाद उनका विरोध कोसली से आई अनीता यादव के खिलाफ भी था। हालांकि वह अटेली विधानसभा से चुनाव जीतकर 2009 में हुड्डा सरकार में सीपीएस रह चुकी है। एडवोकेट हेमंत शर्मा ने कोई चुनाव नहीं लड़ा और उनका गांव सीहमा नारनौल विधानसभा का हिस्सा है। रामपुरा हाउस के राजकुमार राव अभिजीत सिंह रेवाड़ी, लवली यादव रेवाड़ी, राव यादवेंद्र सिंह रेवाड़ी शामिल हैं। इसके अलावा जेजेपी के अभिमन्यु राव रेवाड़ी को भी बाहरी प्रत्याशी बताया जा रहा है। 

भाजपा की आरती राव, मनीष यादव, एडवोकेट नरेश यादव, सुनील राव व संतोष यादव को बाहरी प्रत्याशी बताया जा रहा है। संतोष यादव का पैतृक गांव कुकसी है, वह नारनौल में रहती है। अतीत में कुकसी भी अटेली विधानसभा का हिस्सा था। वह 2014 में भाजपा की टिकट पर चुनी गई थी और सरकार में विधानसभा उपाध्यक्ष भी रही। इसके अलावा निर्दलीय कमल यादव रेवाड़ी निवासी भी बाहरी में शामिल हैं। विरोध करने वालों के अनुसार जिन लोगों के मत दूसरे विधानसभा क्षेत्र में है वह बाहरी है।

इन सब सवालों का जवाब लेने के लिए हमने समाज के विभिन्न लोगों से मिल कर उनकी राय जानी। लोगों का मानना है कि कोई बाहरी नहीं है, हर भारतीय को चुनाव लड़ने का अधिकार है और वह संविधान के अनुसार देश और प्रदेश में कहीं से भी चुनाव लड़ सकता है। अब यही लीजिए, देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने मत का प्रयोग अहमदाबाद गुजरात में करते हैं और लगातार लोकसभा चुनाव उत्तर प्रदेश के वाराणसी से लड़ते हैं। तो इन स्थानीय नेताओं के अनुसार वह भी वाराणसी में बाहरी प्रत्याशी माने जाने चाहियें। इसी प्रकार कांग्रेस नेता राहुल गांधी रायबरेली और वायनाड से चुनाव लड़े वहां भी वह बाहरी प्रत्याशी थे। 

विरोध करने वालों में शामिल अटेली विधानसभा गांव बोचड़िया निवासी ओम प्रकाश इंजीनियर ने दो चुनाव पड़ोस के राजस्थान के बहरोड़ विधानसभा क्षेत्र से लड़े, जिनमें उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। वहां के लिए वह भी बाहरी थे। इस बार भी ओमप्रकाश इंजीनियर ने नांगल चौधरी और नारनौल से कांग्रेस टिकट मांगी है । इस हिसाब से तो वह दोनों विधानसभा के लिए बाहरी हुए । जनता का मानना है कि नेता स्थानीय या बाहरी नही बल्कि वह होना चाहिए जो क्षेत्र के लोगों के दुख दर्द को समझें और उनके दुख दर्द को दूर करने के लिए तत्पर रहे। जिसके पास क्षेत्र के विकास के लिए अच्छी योजनाएं हो।

असली डर बाहरी नहीं बल्कि भारी (मजबूत उम्मीदवार) का है

बाहरी का राग अलापने वाले नेताओं के अनुसार तो महेंद्रगढ़ जिले के ही नांगल चौधरी में पहली बार विधायक बने राव बहादुर सिंह व डॉक्टर अभय सिंह यादव भी बाहरी हुए। क्योंकि इनका वोट नांगल चौधरी में नहीं हैं। इसी प्रकार नारनौल विधानसभा से लगातार दो बार चुनाव जीते ओम प्रकाश यादव भी स्थानीय नहीं है, उन्होंने नारनौल में निवास स्थान बना रखा है। उनके पैतृक गांव बजाड़ अटेली विधानसभा में पड़ता है। 

हां 2000 के विधानसभा चुनाव में नारनौल विधानसभा में एक बार यह नारा जोर पकड़ा था, जब रेणु पोसवाल ने कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा था और वह बुरी तरह पराजित हो गई थी। इसी चुनाव में अस्थल बोहर के महंत बाबा चांदनाथ भी मैदान में उतरे थे, उन्हें भी पराजय का सामना करना पड़ा था। बता दे कि चुनाव में दोहान पच्चीसी (25 गांवों) ने अपनी मांगों को लेकर उस समय एक जूटता का परिचय देते हुए मताधिकार का प्रयोग न करने का निर्णय लिया था। हालांकि मतदान के दिन कुछ गांवों में यह निर्णय टूटा भी था। पर 25 गांवों की एकता ने उसे समय नेताओं के होश उड़ा दिए थे।

भारी प्रत्याशियों के नाम पर सबसे ज्यादा विरोध आरती राव का हो रहा है। आरती राव राव तुलाराम की वंशज हैं हरियाणा के दूसरे मुख्यमंत्री राव राजा बीरेंद्र सिंह की पोती व अहीरवाल के क्षत्रप राव इंद्रजीत सिंह की बेटी है। अब इस विरोध में भाजपा की अतीत में विधायक रह चुकी संतोष यादव भी शामिल हो चुकी। आज जिस राजशाही का विरोध संतोष यादव कर रही है वही संतोष यादव कुछ दिन पहले रामपुरा हाउस में समर्पण कर चुकी और नारनौल की टिकट दिलाने की गुहार कर चुकी। अपने कार्यकर्ता सम्मेलन में उन्होंने अपरोक्ष धमकी भी दी कि यदि उन्हें टिकट नहीं दी गई तो वह चुनाव लड़ने पर विचार कर सकती है।

क्षेत्र के लोगों का यह भी कहना है कि हम लोगों की रिश्तेदारियां आपस में एक दूसरे क्षेत्र में मिली जुली है। हम एक दूसरे के सुख-दुख में शरीक होते हैं, फिर किसी को भी बाहरी कैसे करार दिया जा सकता है। ऐसे बहुत से नेता हैं जिन्होंने लोगों व क्षेत्र के लिए जनहित हितैषी काम किये है लेकिन उसे बाहरी कहना गलत होगा। सौ टके की बात तो यह है कि नेता अपनी टिकट कटने के डर से बाहरी उम्मीदवारों की बजाय भारी (मजबूत उम्मीदवारों) की एंट्री से डर रहे हैं। इसलिए यह नारा लगा टिकट हथियाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन जनता है सब जानती है, वोट किसी नेता के कुर्ते की जेब में नहीं बल्कि जनता की अंगुली में है। लोगों का यह भी मानना है कि सरकार को इस बारे में एक विधेयक पास करना चाहिए जो व्यक्ति एक बार विधायक या सांसद बन चुका उसका कार्यकाल जनता को पसंद नहीं आया हो तो उसे दोबारा मौका नहीं दिया जाना चाहिए। इससे राजनेताओं में बार-बार चुनाव लड़ने की महत्वाकांक्षा खत्म हो जाएगी और वह सच्चे मायने में शासक न बनकर जनसेवक बन पाएंगे।

error: Content is protected !!