रक्षा बन्धन का आध्यात्मिक रहस्य ……….

बीके मदन मोहन ………… ओम शांति रिट्रीट सेंटर, गुरुग्राम

रक्षा बन्धन का त्योहार भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह पारम्परिक रूप से बहनों एवं भाइयों के आपसी स्नेह के रूप में मनाया जाता है। इस दिन बहनें, भाई की कलाई पर ‘रक्षा सूत्र’ बांधती हैं। माथे पर तिलक देती हैं तथा मिठाई से भाई का मुख मीठा करती हैं। बदले में भाई उन्हें कोई न कोई गिफ्ट देते हैं। बहनें अपने भाई को राखी बांधकर उससे यह अपेक्षा करती हैं कि जब कभी बहन पर दुःख की घड़ी अथवा उसकी आन पर आंच आयेगी तो भाई अपनी जान की बाजी लगाकर भी बहन की रक्षा करेगा।

इसके अतिरिक्त हम यह भी देखते हैं कि रक्षा बन्धन के दिन ब्राह्मण लोग भी अपने यजमानों को राखी बांधते हैं। प्रश्न उठता है कि इस त्योहार की शुरूआत कैसे हुई होगी? ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो राखी की प्रचलित रस्म परम्परागत नहीं लगती। कहा जाता है कि ‘इन्द्राणी ने इन्द्र को राखी बाँधी थी और उससे इन्द्र को असुरों पर विजय प्राप्त हुई थी।’ अब इन्द्राणी और इन्द्र का भाई-बहन का नाता तो नहीं था और इन्द्राणी को रक्षा की भी आवश्यकता नहीं थी। परन्तु यह पवित्रता की प्रतिज्ञा थी। इसको प्राचीन काल में विषतोड़क पर्व भी कहते थे। अतः यदि यह त्योहार भाई द्वारा बहन की रक्षा के संकल्प का ही प्रतीक होता तो आज तक ब्राह्मणों द्वारा राखी बांधने का रिवाज़ नहीं चला आता।

यदि रक्षा की दृष्टि से गहराई से चिन्तन किया जाये तो देखा जाता है कि कन्याएं छोटे-छोटे अबोध भाइयों को राखी बांधती हैं। उस स्थिति में यह परम्परा कहां तक लागू होती है? यदि शारीरिक रक्षा का अभिप्राय होता तो कन्या भाई को रक्षा बांधने की बजाय अपने पिता, चाचा या मामा को राखी क्यों नहीं बाँधती? पिता, चाचा या मामा रक्षा क्यों नहीं कर सकते?

कन्या अथवा माता की रक्षा करना केवल सगे भाई का ही नहीं बल्कि परिवार के हर एक सदस्य का कर्तव्य है। बड़ा एवं जिम्मेवार होने के कारण तथा स्नेह वश भी हरेक भाई स्वाभाविक तौर पर यह कर्तव्य निभाता ही है। और जो निभाना ही न चाहे या जिसका स्नेह ही न हो वह तो राखी बांधने पर भी रक्षा नहीं करेगा। श्रीमद्भागवत में कंस ने अपनी बहन देवकी को मारने के लिए तलवार निकाल ली थी। तो स्पष्ट है कि दृष्टि-वृत्ति बदल जाये तो भाई भी कसाई बन जाता है। दृष्टि-वृत्ति ठीक रहे तो कसाई भी भाई बन सकता है। यम के बारे में लोग कहते हैं कि वह सबको दण्ड देता है। अतः मानव मात्र के लिए वह भयानक है परन्तु अपनी बहन यमुना का तो भाई ही है। अतः भाई अपनी बहन की रक्षा के लिए वैसे ही स्नेह-सम्बन्ध के कारण बाध्य है। रक्षा बन्धन को शारीरिक रक्षा के लिए एक रस्म मानना विवेक-सम्मत प्रतीत नहीं होता।

वास्तव में रक्षा बन्धन की शुभ रस्म तो किसी अन्य अभिप्राय से शुरू हुई थी। परन्तु समयान्तर में ‘रक्षा’ और ‘बन्धन’ शब्द का गलत अर्थ ले लेने के कारण इसका स्वरूप बदल गया। सबसे पहले भूल तो यह हुई कि ‘रक्षा’ शब्द का अर्थ शारीरिक रक्षा मान लिया गया। इस त्योहार के जो अन्य नाम हैं उनसे रक्षा का वास्तविक अभिप्राय स्पष्ट हो जाता है। जैसे कि उल्लेख किया गया है कि इसको ‘विषतोड़क पर्व’, ‘पुण्य प्रदायक पर्व’ भी कहा जाता है।

इससे सिद्ध है कि इसका सम्बन्ध विषय विकारों को छोड़ने तथा पवित्र आत्मा या पुण्यात्मा बनने से है। इसलिए रक्षा बन्धन पर बहनों के अतिरिक्त ब्राह्मण भी अपने यजमानों को राखी बांधते हैं। जो अपने यजमानों से धर्म की रक्षा करने के लिए ली गई प्रतिज्ञा के बन्धन का प्रतीक हैं। वे उस दिन केवल राखी ही नहीं बांधते परन्तु मस्तक पर तिलक भी देते है। बहनें भी अपने भाइयों को मस्तक पर चन्दन अथवा केसर का तिलक देती है। मस्तक पर यह तिलक आत्मा को ज्ञान के रंग में रंगने अथवा आत्मिक स्मृति में रहने का प्रतीक है। आत्मिक दृष्टि से हम सभी भाई-भाई हैं। यह दृष्टि कामरूपी विष को तोड़ने में सहायक है। अतः रक्षाबन्धन प्रत्येक नर-नारी के लिए पवित्रता रूपी धर्म में स्थित होने की प्रतिज्ञा करने का प्रतीक है। अतः भले ही राखी कुछ धागों की बनी होती है परन्तु उन धागों में जो उच्च भाव है उसे धारण करके मनुष्य अपने जीवन में महान बन सकता है।

आज की परिस्थिति में रक्षा बन्धन

समयान्तर में यह त्योहार पवित्रता अथवा धर्म की रक्षा के बजाय ‘शारीरिक रक्षा’ के लिए मनाया जाने लगा। फिर जब देश पर विधर्मियों तथा विदेशियों ने आक्रमण किये तब विरांगनायें अपने-अपने पति को देश की रक्षार्थ रणभूमि में भेजते समय भी उन्हें ‘रक्षा सूत्र’ बांधने लगी। ताकि वह दृढ़ प्रतिज्ञ होकर संग्राम में कूद पड़े और पत्नी व संतान के मोह में वहाँ से भाग न आये। इस प्रकार राखी बांधे जाने से उन वीरों को युद्ध के लिए बहुत प्रेरणा मिलती थी।

परन्तु आज की परिस्थिति बहुत भिन्न है। आज तो मानव काम, क्रोधादि शत्रुओं से बुरी तरह पीड़ित और आहत है। अतः अब परमपिता परमात्मा शिव जो मानव मात्र के कल्याणकारी और रक्षक हैं। सभी नर-नारियों को पुनः इस आदि रहस्य से राखी बांधते हैं। अब विश्व के लिए संकट का समय है। विकारों की सूक्ष्माग्नि में दुनिया झुलस रही है। अतः अब सृष्टि को इन विकारों रूपी महाशत्रुओं से बचाना है। पवित्रता की प्रतिज्ञा की प्रतीक ‘राखी’ को बांधकर परस्पर भाई-बहन या भाई-भाई की शुद्ध दृष्टि और वृत्ति को धारण करो। इस वास्तविक अर्थ के साथ आज रक्षा बन्धन बांधने की जरूरत है।

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