10 वर्षों के बाद अभी भी हम कुंठाओं से आजाद नहीं हुए !

78 वां भारतीय स्वतंत्रता दिवस राष्ट्रहित में मंगलमय हो

डॉ महेन्द्र शर्मा “महेश” पानीपत

मेरी माता श्री कहती हैं कि ऊंट अपने मन से कभी भी वैर बाहर नहीं निकलता, अवसर मिलने पर एक न एक दिन वह ऊंट अपने अपमान का बदला अवश्य लेता है, वह प्रतिशोध में अपने प्रतिद्वंद्वी को गले से पकड़ कर ऊंचाई से नीचे पटक देता है।

स्वतन्त्रता की 78 वीं वर्षगांठ पर आज प्रधान मंत्री के भाषण में कहीं भी वह प्रभावी तेजस्वी वाणी (killer instinct) नहीं सुनाई नहीं दी जिस के लिए वह जाने जाते रहे हैं। शायद कहीं शब्दों में ऐसी सावधानी रखना इस लिए जरूरी होगा कि कहीं कोई वैशाखी ही नहीं खींच ले और एक से अगले क्षण में अभूतपूर्व से भूतपूर्व न हो जाएं।

राहुल गांधी द्वारा लोकसभा में बार बार प्रश्न करने से सत्ता पक्ष हताश, निरूतर और असहाय नजर आता है। सत्ता पक्ष ने आज उस खुन्नस को ऊंट की तरह निकाला। राष्ट्रपति भवन से जारी प्रोटोकॉल के अनुसार प्रतिपक्ष के नेता की सीट अग्रिम पंक्ति में उप – राष्ट्रपति, शीर्ष मंत्रियों और मुख्यन्यायाधीश के साथ होती हैं। आज उन्हें पांचवी कतार में सीट दी गई कि वह नजर न आए और ऐसा कर के उन्हें अप्रासंगिक करने की जो कोशिश हुई वही घटना राहुल को हाईलाइट कर गई कि बिना कुछ कहे करे धरे राहुल सोशल मीडिया में छा गए। अब यह तो उसपर भगवान श्री राम की कृपा मानना चाहिए कि जो यश किसी को मंदिर बना कर नहीं दिया वह सम्मान किसी को बिना कुछ किए करे दे दिया। भारत की जनता भगवान श्री राम का ही स्वरूप हैं , 1977 में जिस भगवान (जनता ) ने श्रीमती इंदिरा गांधी को सत्ता से हटाया था और 1981 में फिर वहीं बिठा दिया। कोई भी व्यक्ति पूरी रात सीधा नहीं सो सकता , समय करवट बदलता रहता है। किस्मत की हवा कभी गर्म कभी नर्म … प्रजातंत्र में यह सब चलता है, इस से डरना नहीं चाहिए। यहां इस घटनाक्रम का विश्लेषण करें तो यह निष्कर्ष निकलता है कि और किसी के अच्छे दिन आएं हो या नहीं लेकिन निश्चित ही राहुल गांधी के तो आ गए हैं।

भाषण में परिवारवाद बड़ा जोर दिया जा रहा था, जिस महानुभाव को यह परिवार शब्द बार बार सुनाया जा रहा था उसके नाना श्री, दादी मां और पिताश्री में कुल मिला कर 78 ध्वजारोहण समारोहों में (17+16+5 = ) 38 बार लालकिले की प्राचीर से राष्ट्रीय फहरा चुके हैं। वैसे भाजपा को एक परिवार वाद पर एक श्वेतपत्र जारी कर के भारत की जनता को यह अवश्य बताना चाहिए कि कौन कौन सी राजनैतिक पार्टी में कितने सांसद या विधायक हैं जिन के परिजन सक्रिय राजनीतिज्ञ और मंत्री रहे हैं।

प्रजातंत्र में यह तो सभी को स्वीकार करना चाहिए की भ्रष्टाचार इसकी छोटी बहिन है जिससे वह बहुत स्नेह रखता हैं। कोई भी किसी भी पार्टी का नेता आज की राजनीति में दूध का धुला नहीं है। यदि ऐसा कोई कहता या उसके संदर्भ में ऐसा कहा जाता है तो वह सफेद झूठ है। आज के दिन और स्वच्छ राजनीति कदापि सम्भव ही नहीं है। राजनीति में कानून के मकड़जाल में छोटे लोग ही फंसते रहे हैं और बड़े लोग तो जाल ही फाड़ कर बाहर निकल आते हैं। राजनीति में ऐसी कम्बखती बहुत ही कम लोगों पर आई है जिस में वह फंसे हों। 2013 ईo में देश में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले अन्नाह (blind) हजारे को अब कहीं भी और कुछ भी नजर आता, इसी को अमृतकाल कहते हैं। सभी छोटे से बड़े अफसर शाही से लेकर पार्षदों ने खूब चांदी काटी है। इन सब के लिए दस वर्ष से अमृत बरस रहा है।

भगवा पहनने से और मंदिर निर्माण से देश का विकास नहीं होता, विकास के लिए निर्माण कार्य शिक्षा ग्रहण करनी पड़ती है ताकि लोग शिक्षा ग्रहण कर कोई न कोई व्यवसाय करें। गली कूचों में धार्मिक नारे लगाने से केवल अशिक्षा और बेरोजगारी का प्रसार होता है। कमोबेश सत्ता भी यही चाहती है कि यदि लोग अभावग्रस्त रहेंगे तो सब से पहले दो जून रोटी का इंतजाम करेंगे या अपने बच्चों को शिक्षा दिलवाएंगे। यदि शिक्षा नहीं होगी तो सरकार को इन्हें रोजगार नहीं देना पड़ेगा और न ही यह लोग सत्ता से प्रश्न करने की स्थिति में होंगे। यह सरकार मारवाड़ी स्टाइल में काम कर रही है कि पैसे खर्च न हों चाहे इन पैसों को लेकर कोई भाग जाए। दस वर्षों से सरकार के बहुधा विभागों में कोई नई भर्तियां नहीं हुई है, हर विभाग को निजी क्षेत्र के हाथों में दिया जा रहा है कि सरकार को केवल टैक्स मिलें तनख्वाह न देनी पड़े। विद्यार्थियों से नौकरी के लिए फार्म्स भरवा कर पैसे इकट्ठे किए जाते हैं और विरोध करने पर उनको पुलिस द्वारा भगाया जाता है। नीट परीक्षाओं में भी कुछ नीट नहीं रहा।

देखो ऊंट से बात शुरू की है तो उसी से ही समाप्त करें की राजनीति का ऊंट किस करवट बैठता है। बाकी खरीद फरोख्त में यह लोग अच्छे व्यापारी हैं, हमारे ज़माने में स्कूल की क्लास में जब कमजोर विद्यार्थी को सबक देना होता था तो अध्यापक किसी होशियार बच्चे की पिटाई करते थे कि कमजोर के मन में भी भय पैदा हो जाए कि कहीं कल उस का नम्बर न लग जाए, आज की राजनीति में ई डी सी बी आई आयकर एजेंसियों के हाथ में मास्टर जी का हंटर है। कुछ भी हो सकता है, यदि हो गया तो यही , अगर न हुआ और नहीं और सही। निष्कर्ष तो यह है कि आज हम 78 वें वर्ष में प्रवेश कर चुके हैं, हम जितना मर्जी स्वयं को विकासशील कहते रहे हैं लेकिन सत्य यह है कि 10 वर्ष के शासन के बाद भी हम राजनैतिक कुंठाओ से मुक्त नहीं हुए हैं।

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