अटेली विधानसभा : विधायक की चाह ‘एक अनार सौ बीमार’,  बाहरी की भरमार, हो रहा है विरोध 

भाजपा कांग्रेस में टिकटार्थी मधुमक्खियों के छत्ते मानिंद 

पंच का चुनाव जीत नहीं सकते विधायकी का ख्वाब 

अशोक कुमार कौशिक 

दक्षिणी हरियाणा अहीरवाल क्षेत्र की अहम सीट अटेली में आजकल विधानसभा चुनाव को लेकर काफी गहमागहमी है। विधानसभा में पड़ने वाले क़स्बे अटेली व कनीना में ही नहीं गांवों में टिकटार्थियों ने होर्डिंग, पोस्टर व दीवारों को प्रचार से पाट रखा है। चुनाव से पहले समाजसेवियों की बाढ़ सी आ गई है। भले ही यह लोग ‘पंची’ का चुनाव न जीत सके पर जनप्रतिनिधि बन क्षेत्र का ‘कायाकल्प’ करने का ‘ख्वाब’ अवश्य लेकर ‘सोते’ हैं। 

पहली बार इस सीट पर दावेदारों के ‘नए चेहरों की तादाद’ देखकर यह अनुमान लगाना मुश्किल हो रहा है कि जिन्हें अटेली विधानसभा के समस्त गांवों का नाम ठीक से याद नहीं, वह टिकट को लेकर दावा ऐसे जता रहे हैं जैसे बस या रेल की टिकट उनकी जेब में हो। ‘मनी एवं मसल्स पावर’ की राजनीति को अपनी ताकत बनाकर वह ‘जुगाड़’ बैठा रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि अटेली में भाजपा कांग्रेस की टिकट ‘शहद का छत्ता’ बन गई है जिसको पाने की चाहत में लोग मधुमक्खियों का झुंड बन उस पर टूट पड़े हैं। आम जनता भी हैरान है कि चुनाव लड़ने वाले केवल अपने ‘खास मकसद’ से ही उनके बीच में एकाएक दिखाई देने लगे। टिकट एक को मिलनी है किस मापदंड से मिलेगी, सर्वे से मिलेगी, धनबल या सिफारिश से यह समय तय करेगा। पर भाजपा कांग्रेस इस बार जीत के लिए ‘एक एक सीट’ पाने के लिए ‘फूंक फूंक’ कर कदम उठा रही है

अतीत की बात करें तो यहां पर राव निहाल सिंह व राव बीरेंद्र सिंह की तूती बोलती थी।‌ दोनों में आपसी राजनीतिक विरोध था। राव निहाल सिंह यहां से तीन बार राव बीरेंद्र सिंह दो बार, राव बंशी सिंह तीन बार तथा उनके पुत्र राव नरेंद्र सिंह दो बार निर्वाचित हुए। राव निहाल सिंह दो बार कांग्रेस से तथा एक बार निर्दलीय जीते वही राव बीरेंद्र सिंह दो बार विशाल हरियाणा पार्टी से विजयी रहे। राव बंसी सिंह एक दफा विशाल हरियाणा पार्टी तथा दूसरी बार कांग्रेस से जीते। उनके पुत्र राव नरेंद्र सिंह अपने पिता राव बंशी सिंह के देहांत के बाद चुने गए। दूसरी बार 2000 में वह निर्वाचित हुए पर 2005 में नरेश यादव ने उनको पटकनी दी। उसके बाद वह क्षेत्र छोड़कर नारनौल चले गए। उनका पैतृक गांव मंढ़ाना व उनका निवास नारनौल विधानसभा में है। अब फिर से अटेली से जीत की आस लगाए

बाहरी प्रत्याशियों को लेकर उठ रही विरोध की आवाज 

कांग्रेस और भाजपा में टिकट की चाह रखने वाले अनेक लोग अटेली क्षेत्र के बाहर से है। कुछ बाहरी लोग निर्दलीय के रूप में भी भाग्य आजमाने के चक्कर में है। कांग्रेस से राव नरेंद्र सिंह, अनीता यादव, हेमंत कृष्ण शर्मा एडवोकेट, लवली यादव वहीं भाजपा से आरती राव, संतोष यादव, मनीष यादव, सुनील राव, एडवोकेट नरेश यादव भी स्थानीय नहीं है। लेकिन लोगों का यह भी मानना है कि जो नेता लगातार यहां सक्रिय है और यहां से चुनाव जीत चुके हैं इसलिए उनको बाहरी नहीं माना जा सकता। इतना ही नहीं निर्दलीय के रूप में कमल यादव रेवाड़ी, राव अभिजीत सिंह यादव रेवाड़ी भी मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। हालांकि बाहरी प्रत्याशियों को लेकर क्षेत्र में लगातार बैठकर हो रही है। बैठकों में सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया की बाहरी प्रत्याशियों का विरोध किया जाएगा। यह भी कटु सत्य है की राव निहाल सिंह व राव बीरेंद्र सिंह को छोड़कर अभी तक कोई बाहरी प्रत्याशी विजेता नहीं बना है। 1962 में हरियाणा बनने से पूर्व बनवारी लाल जनसंघ से  तथा 2009 में कोसली से आई अनीता यादव जरुर अपवाद बने।

हरियाणा में कांग्रेस की लहर अहीरवाल में भाजपा का दबदबा

3 माह बाद हरियाणा विधानसभा चुनाव का ‘बिगूल’ बजने वाला है। लिहाजा सभी प्रमुख राजनीतिक दल अपने-अपने हिसाब से चंडीगढ़ का रास्ता तय करने की तैयारी में जुट गए हैं । कांग्रेस लोकसभा चुनावों में 10 में से 5 सीटे लेकर बेहद उत्साहित है। हरियाणा में भले ही कांग्रेस के नाम पर ‘बड़ी लहर’ चल रही हो पर अहीरवाल में अभी भी भाजपा व राव इंद्रजीत सिंह का ‘दबदबा’ है। यह कटु सत्य है कि जिला महेंद्रगढ़ में कांग्रेस बुरी तरह पिछड़ी है और जनता ने भाजपा प्रत्याशी चौधरी धर्मवीर सिंह को तीसरी बार अपना समर्थन दिया। अटेली विधानसभा से चौधरी धर्मवीर को 76198 राव दान सिंह को 56695 मत मिले। अटेली ने 19503 की बड़ी लीड दी, जिसे राव दानसिंह नहीं तोड़ पाए। कांग्रेस के भावी टिकटार्थी इस लीड के पीछे दलील देते हैं कि लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी व राव इंद्रजीत सिंह के कारण लीड मिली। 

2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के सीताराम को 55 793 मत मिले जबकि बसपा के ठाकुर अतरलाल को 37387 मत मिले। व दूसरे नंबर पर रहे तीसरे नंबर पर सम्राट यादव जेजेपी को 13191 तथा कांग्रेस के स्वर्गीय राव अर्जुन सिंह को 9238 मत मिले। भाजपा में सीताराम को लेकर आम जनता में नाराजगी है, वही ठाकुर अतर लाल हार के बावजूद जनता के बीच लगातार संपर्क में है।

आभार यात्रा के बहाने ‘राव राजा’ ने टटोला अटेली के लोगों का मन 

यह कटु सत्य है कि राव इंद्रजीत सिंह के ‘बेबाक बोल’ का असर चुनाव में पड़ा। चौधरी धर्मवीर सिंह के चुनाव जीतने के बाद अटेली विधानसभा सभा के गांवों तथा अटेली कस्बे में राव राजा इन्द्रजीत सिंह ने 5 जुलाई को आभार रैलियां कर जनता से संवाद किया। इन आभार सभाओं में भाजपा के लोग तो गिने-चुने शामिल हुए पर उनके टिकटार्थी  समर्थकों की भरमार थी। राव इंद्रजीत सिंह ने वर्तमान अटेली से विधायक सीताराम की मौजूदगी में उनकी काबिलियत को लेकर प्रश्न चिन्ह लगाया। उन्होंने अपने संबोधन में अहीरवाल के साथ भेदभाव के दर्द को यहां भी उजागर किया। अटेली की रैली में चौधरी धर्मवीर सिंह ने भी अपने संबोधन में कहा कि सरपंचों की नाराजगी, पोर्टल व दूसरे कर्म के चलते लोकसभा चुनाव में भाजपा आधी सीटों पर सिमट गई।

यह सर्व विदित है कि राव इंद्रजीत सिंह अपनी बेटी आरती राव के लिए लंबे समय से राजनीतिक जमीन तलाश रहे हैं। अहीरवाल की अनेक विधानसभा सीटों पर जनसभा करके जनता का ‘मन’ आरती राव टटोल चुकी है। इसके बाद उन्हें दो सीट ही सेफ नजर आ रही है। खुद आरती राव ने अपने भाषण में कहा कि उनके ‘मन’ में दो सीटे हैं, जहां वह चुनाव लड़ना चाहती है। उसमें से अटेली विधानसभा पहली पसंद है। अन्य मे बादशाहपुर, नारनौल व कोसली है।

परिवार जंग का अखाड़ा बन सकती है अटेली 

आरती राव अगर अटेली से चुनाव लड़ती है तो यह अहीरवाल की सबसे हॉट सीट होगी। अगर राव याज्ञवेन्दर सिंह उर्फ बलजीत को कोसली से टिकट नहीं मिलती तो वह अटेली से लड़ सकते हैं। रामपुरा हाउस के राजकुमार राव अभिजीत सिंह ने अपने भाई स्वर्गीय राव अर्जुन सिंह की मौत के बाद यहां से चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। वह इसको लेकर यहां कार्यकर्ताओं की मीटिंग भी ले चुके हैं। देवीलाल व बंसीलाल परिवार की तरह राव बीरेंद्र सिंह परिवार की आपसी जंग यहां देखने को मिल सकती है? 

कांग्रेस को सिफारिश की बजाय मजबूत उम्मीदवार मैदान में उतारना होगा। आरती राव के सामने कांग्रेस से उम्मीदवार के रूप में राव नरेंद्र सिंह व अनीता यादव को ज्यादा मजबूत नहीं माना जा रहा। वैसे ईडी के खतरे को भांपकर कांग्रेस बिल्कुल नए चेहरे को मैदान में उतार सकती है, जिस पर किसी जांच एजेंसी का भय ना हो। इस सीट पर भाजपा कांग्रेस के साथ बसपा के अतरलाल के बीच तिकोना मुकाबला होगा।

विधानसभा अटेली 68 दो बड़े कस्बों कनीना व अटेली से मिलकर बनी है। इसमें सेहलंग, नौताना, खेड़ी तलवाना, धनौंदा, भोजावास, दौंगड़ा अहीर, बाछौद, बिहाली, कांटी व खेड़ी जैसे बड़े गांव है। जिसमें 215 बूथ पर कुल 202007 वोट है। इस सीट पर अब तक तेरह विधानसभा चुनाव में 6 बार कांग्रेस जीती है। खास बात यह है कि इस सीट पर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री राव बीरेंद्र सिंह भी यहां से दो बार चुने जा चुके हैं। यह अलग बात है कि यहां से उनके पुत्र राव अजीत सिंह दो बार तथा उनके दिवंगत पौते राव अर्जुन सिंह 2019 में यहां से शिकस्त खा चुके हैं।

भाजपा कांग्रेस में कुकरमुत्ते की तरह टिकटार्थी 

भाजपा में  विधायक बनने वालों की लालसा कम नहीं है। वह चाहे वर्तमान विधायक हो या पूर्व, धनबली अथवा किसी नेता का चाटूकार। सब रात को विधायक बनने का सपना लेकर सोते हैं। वर्तमान विधायक सीताराम, पूर्व विधायक एवं डिप्टी स्पीकर रह चुकी संतोष यादव, ओबीसी प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य कुलदीप यादव, अजीत कलवाड़ी, मनीष राव (आरपीएस स्कूल के चेयरमैन महेंद्रगढ़ से भी दावेदारी), जसवंत यादव बबलू कनीना, प्रोफेसर रोशन लाल दौड़ में आगे हैं। वही राष्ट्रपाल यादव, महिला नेत्री एसएसबी सदस्य ममता यादव, एडवोकेट नरेश यादव, संदीप हिन्दुस्तानी, सुनील राव कोसली, यतेंद्र राव, महिला नेत्री विजेश यादव, सुंदरलाल सुंदरह, दिनेश अग्रवाल गुजरवास, विकास यादव पूर्व चेयरमैन, प्रदीप यादव सराय, विकास यादव सैदपुर, विक्रम सरपंच, अशोक लांबा गढ़ी, दिनेश जैलदार श्यामपुरा भी टिकट की लाइन में खड़े हैं।

अगर आरती राव को यहां से टिकट मिल जाती है तो सबकी दावेदारी धरी रह जाएगी। अगर आरती राव को टिकट नहीं मिलती है तो ओबीसी मोर्चा प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य कुलदीप यादव यहां से बाजी मार सकते हैं।

कांग्रेस से भी टिकटार्थियों की भीड़ देखने को मिल रही है। पूर्व मंत्री राव नरेंद्र सिंह, पूर्व सीपीएस अनीता यादव, याज्ञवेन्दर सिंह(कोसली से भी दावेदारी), राधेश्याम गोमला, एडवोकेट हेमंत कृष्ण शर्मा आदि प्रबल दावेदारों में है। वही सुरेंद्र नंबरदार, प्रोफेसर प्रवीण यादव, महेंद्र राता, सुनीता मावता, सुरेंद्र पटवा, लवली यादव, राजकुमार यादव कनीना, एडवोकेट हिम्मत यादव कनीना, नीरज यादव,  संदीप यादव रामबास व शांतनु चौहान भी अपने को टिकट की लाइन में दिखाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं।

हरियाणा में फेल हो चुकी है जजपा से भी अटेली से कुछ नेता यहां उसकी टिकट की लाइन में है। इनमें अभिमन्यु राव, वेदु राता, कुलदीप यादव कलवाड़ी व सुविधा शास्त्री प्रमुख है। इनेलो से अभी दावेदार सामने नहीं आए हैं।

निर्दलीयों में ‘रामपुरा हाउस के राजकुमार’ राव अभिजीत सिंह रेवाड़ी, पूर्व विधायक नरेश यादव, ओमप्रकाश इंजीनियर, डॉक्टर विकास यादव, कमल यादव रेवाड़ी, सुमन यादव व पत्रकार सत्येंद्र यादव भी चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं।

अटेली में 2009 में हुआ था त्रिकोणीय मुकाबला

इस सीट पर तिकोना मुकाबला होगा। 2019 के चुनाव में दूसरे नंबर पर रहे ठाकुर अतरलाल  गंभीर उम्मीदवार हैं। अटेली में 11 बार सीधे मुकाबले में जीत हार का फैसला हुआ। इसमें साल 1967, 1968, 1972, 1977,1982, 1987, 1991, 1996, 2000, 2005 व 2014 में दो प्रत्याशियों के बीच जीत-हार का मुकाबला हुआ था। वहीं साल 2009 में तीन प्रत्याशियों के बीच कांटे की टक्कर हुई। इसमें कांग्रेस प्रत्याशी अनीता यादव 22.44, बीजेपी की संतोष यादव को 21.53 व इनेलो के अजीत सिंह को 20.85 फीसदी वोट मिले थे।

हरियाणा के आस्तित्व में आने के बाद 1966 के चुनाव में राव निहाल सिंह कांग्रेस से, 1967 में फिर राव निहाल सिंह कांग्रेस से, 1968 में राव बीरेंद्र सिंह विशाल हरियाणा पार्टी से, 1972 में राव बंसी सिंह विशाल हरियाणा पार्टी से, 1977 में राव वीरेंद्र सिंह विशाल हरियाणा पार्टी से, 1982 में राव निहाल सिंह निर्दलीय, 1987 उपचुनाव मे कांग्रेस से राव बंशी सिंह, 1989 में राव लक्ष्मी नारायण इनेलो से, 1991 में राव बंसी सिंह कांग्रेस से, 1996 में बंसी सिंह के देहांत के बाद राव नरेंद्र सिंह कांग्रेस से, 2000 में कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में फिर राव नरेंद्र सिंह जीते, 2005 में निर्दलीय नरेश यादव, 2009 में कांग्रेस से कोसली से आई अनीता यादव, 2014 में भाजपा से संतोष यादव तथा 2019 में सीताराम यादव भाजपा से चुनाव जीते।

अटेली में लगातार चुनाव हारने वाले प्रत्याशी को ‘बेचारा’ मान जिताने का भी रिवाज है। इस कड़ी में संतोष यादव व नरेश यादव रहे। अगर यही रिवाज कायम रहा तो इस बार ठाकुर अतरलाल का नंबर पड़ सकता है? संतोष यादव व नरेश यादव यहां से तीसरी बार के प्रयास में सफल हुए । संतोष यादव ने 1996 इनेलो से महेंद्रगढ़ से चुनाव लड़ा। इसके बाद अटेली से 2005 में इनेलो से, 2014 और 2014 में बीजेपी से चुनाव लड़ा। उनको सफलता 2009 में मिली थी। 2014, 2019 के बाद ठाकुर अतर लाल का भी यह तीसरा चुनाव होगा। नरेश यादव ने 1996, 2000, 2005, 2009, 2014 तथा 2019 का चुनाव लड़ा। सफलता उन्हें 2005 में मिली थी। ओमप्रकाश इंजीनियर ने अभी पास 1996 में चुनाव लड़ा वह दूसरे नंबर पर रहे इसके बाद 2000 में बसपा से चुनाव लड़ा। बीच में उन्होंने निकटवर्ती राजस्थान की बहरोड सीट से तीन चुनाव लड़े। उन्हें दोनों स्थानों पर सफलता नहीं मिली। वह 2024 में फिर से अपना भाग्य अटेली से आजमा रहे हैं।

पूर्व में अटेली विधानसभा का गांव कुकसी (नारनौल विधानसभा) अब तक एक मंत्री, विधानसभा की डिप्टी स्पीकर और जिला परिषद की चेयरपर्सन दे चुका है। लक्ष्मी नारायण इनेलो के कर्मठ सिपाही रहे हैं। 1987 से पहले वे अटेली विधानसभा से राव बंशी सिंह के विरुद्ध उप चुनाव लड़े और हार गए थे। 1989 में इनेलो ने दोबारा उन पर विश्वास जताया। इस चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार बाबा खेतानाथ को अटेली से पराजित किया था। इस दौरान देवीलाल सरकार में वे परिवहन मंत्री रहे। 1987 से 1991 तक इनेलो सरकार में छह बार मुख्यमंत्री बदले गए। पहले ताऊ देवीलाल मुख्यमंत्री बने। उसके बाद तीन बार चौटाला तथा एक-एक बार बनारसी दास गुप्ता तथा हुकम सिंह मुख्यमंत्री बने। इन सब की सरकार में राव लक्ष्मी नारायण परिवहन, मछली पालन, तकनीकी शिक्षा तथा वन मंत्री रहे। इसके बाद 1991 में अटेली से तथा 1996 में महेंद्रगढ़ विधानसभा से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े जिसमें वे हार गए थे। उपचुनाव सहित उन्होंने चार चुनाव लड़े जिनमें एक में विजयी रहे थे।

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