आचार्य डॉ महेन्द्र शर्मा “महेश” परम शक्ति ने जगत के संचालन का दायित्व ब्रह्मा, विष्णु और महेश को दे रखा है, जो अपने अपने कार्यों का सृजन करते हैं। जगत का उद्भवकर्ता ब्रह्मा जी है और पालन और संहार क्रमशः भगवान विष्णु और शिव के पास है। चतुर्मास्य में भगवान विष्णु आषाढ शुक्ल एकादशी को पाताल लोक में शयन के लिए चले जाते हैं और आषाढ शुक्ल पूर्णिमा के दिन भगवान शिव भी शयन के लिए चले जाते हैं तो आदि शक्ति दुर्गा संसार के पालन और विसर्जन के कार्यों का संचालन करती हैं। हरि शयनी एकादशी पर श्री भगवान विष्णु शयनोत्सव होता है और गुरु पूर्णिमा पर श्री भगवान शिव शयनोत्सव। चार माह पश्चात कार्तिक शुक्ल एकादशी श्री हरि प्रबोधिनी एकादशी पर भगवान विष्णु और कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को बैकुंठ चतुर्दशी को भगवान शिव जागते हैं। मूल विषय यह है कि जब भगवान विष्णु और शिव निद्रामग्न होते हैं संसार के नियमन प्रशासन को कौन चलाता है तब जगत की प्रशासिका आदि शक्ति होती हैं। श्रावण भाद्रपद आश्विन और कार्तिक माह के मुख्य पर्वों का बाहुल्य स्त्रीसंज्ञक है। दीपावली पर श्री लक्ष्मी जी का पूजन श्री गणपति जी के साथ होता है न कि भगवान विष्णु के संग। श्री गणपति को ही रिद्धि सिद्धि का दाता और अधिष्ठाता माना गया है। श्री लक्ष्मी जी उन्हें धन ऐश्वर्य का स्वामी बनाया और धनाध्यक्ष श्री कुबेर जी को, दीपावली पर इनकी पूजा होती है। चतुर्मास्य प्रारंभ होने से पूर्व ही आषाढ शुक्ल प्रतिपदा को गुप्त नवरात्र में आदि शक्ति सिंहासन पर आरूढ़ हो जाती है। चतुर्मास्य के अधिकतर पर्व स्त्री संज्ञक हैं। मंगलागौरी व्रत, श्रृंगार तृतीया, हरितालिका तीज, छिन्नमस्तिका जयंती, संतान सप्तमी, दुर्गाष्टमी, आशून्यशयन व्रत, गायत्री जयंती, कालाष्टमी, धूमावती जयंती, वत्स द्वादशी, भुवनेश्वरी जयंती, जीवितपुत्रिका व्रत महालक्ष्मी व्रत, मातृ नवमी, भद्रकाली जयंती, करक चतुर्थी, अपराजिता जयंती, अहोई अष्टमी, दीपावली, अक्षय नवमी, यम द्वितीया, शाकंभरी देवी व्रत, शरद पूर्णिमा, महारास, इंद्र लक्ष्मी पूजा आदि आदि। श्रावण माह में पावन शिवरात्रि श्री कृष्ण जन्माष्टमी, गणपति जयंती ऋषि पंचमी वामन जयंती दशहरा आदि पर्व भी आते हैं। यह सब ईश्वर की माया है। उत्तर भारत में विवाह गृह प्रवेश आदि शुभ कृत्यों को श्रद्धा से सम्पादित किया जाता है। उत्तर भारत में भगवान विष्णु और शिव के शयन अवस्था में चले जाने पर चतुर्मास्य में किसी प्रकार की कोई मनाही नहीं है, क्यों कि शिवरात्रि पर्व पर भगवान शिव का शुभ विवाह हुआ था दूसरे विजय दशमी पर भगवान श्री राम ने रावण का वध किया था और तीसरे दीपावली के पावन दिवस पर भगवान श्री राम का राज्याभिषेक हुआ था। आश्विन कृष्ण पक्ष में श्रद्धा श्राद्ध पक्ष में हमारे पितृ जागृत होते हैं उनको हम जलांजलि अर्पित करते हैं। सब से बड़ी बात यह है कि आदि शक्ति दुर्गा ही इस प्रकृति सृष्टि की स्वामिनी हैं जो ब्रह्मा विष्णु और शिव की भी धात्री और आराध्या हैं। इसलिए उत्तर भारत में चतुर्मास्य में समस्त शुभ कार्य किए जाते हैं। इन का प्रमाण उत्तर भारत के समस्त पंचांगों में दिया गया है। जो ब्राह्मण इस काल खण्ड में विभिन्न प्रकार की वर्जनाओं का विषय उठाते हैं, इन्हीं के कन्धों पर इस चतुर्मास्य में होने वाले विवाह मुहूर्त आदि शुभ कृत्यों को सम्पादित करने के पूजा का बैग लटका मिलेगा … संशय हो तो देख लेना , सच कह रहा हूं यह लोग मुस्करा भर देंगे। ॐ नमो देव्यै महादेव्यै शिवाय सततं नमः।नमः प्रकृत्ये भद्राय नियता प्रणता समताम्।। श्री निवेदनश्री गुरु शंकराचार्य पदाश्रित………..आचार्य डॉ महेन्द्र शर्मा “महेश” Post navigation कौन जाने किस घड़ी वक्त का बदले मिजाज़ …….. वक्त के दिन और रात देवशयनी एकादशी से मांगलिक कार्य क्यों नहीं होते ? डॉ. सुरेश मिश्रा