टिकट कटने के बाद भाटिया रेस से बाहर, लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद खट्टर हो सकते हैं प्रभावहीन 

विपुल गोयल ने अपने को बताया प्रदेशाध्यक्ष, होर्डिंग लगाए 

सुभाष बराला ओमप्रकाश धनखड़ के बाद जाट पर दांव असम्भव 

अशोक कुमार कौशिक 

हरियाणा में लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद भाजपा को नया प्रदेशाध्यक्ष भी मिल जाएगा। फिलहाल पार्टी प्रधान की जिम्मेदारी सीएम नायब सिंह सैनी के पास ही है। भाजपा के राष्ट्रीय सचिव ओमप्रकाश धनखड़ की जगह नायब सिंह सैनी को प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया था। भाजपा ने अब प्रदेश में संगठन को फिर से मजबूती प्रदान करने और विधानसभा चुनाव के दृष्टिगत नए प्रदेश अध्यक्ष के लिए मंथन शुरू कर दिया है। वहीं दूसरी ओर विपुल गोयल ने फरीदाबाद में लगाए होर्डिंग में अपने आप को प्रदेशाध्यक्ष घोषित कर दिया है। 

नायब सिंह सैनी को मनोहर लाल की जगह प्रदेश का सीएम बना दिया गया। इसी दौरान लोकसभा चुनावों का ऐलान हो गया। ऐसे में पार्टी ने सैनी के नेतृत्व में ही चुनाव करवाने का निर्णय लिया। चार जून को चुनाव के नतीजों के बाद प्रदेशाध्यक्ष पद पर भी फैसला होगा। माना जा रहा है कि चुनावी नतीजों के हिसाब से भाजपा नये प्रधान का निर्णय करेगी। प्रदेशाध्यक्ष चयन को लेकर जातिगत समीकरण साधे जाएंगे। ब्राह्मण, वैश्य, पंजाबी या अनुसूचित जाति से किसी को प्रधान बनाए जाने पर मंथन चल रहा है। गैर जाट की राजनीति करने वाली भाजपा सुभाष बराला व ओमप्रकाश धनखड़ से अनुकूल परिणाम में मिलने के बावजूद इस जाति पर दांव लगाती नहीं दिखाई दे रही।

दलित ब्राह्मण पर फोकस क्यों?

भाजपा सुत्र बताते हैं कि इस बार पार्टी ब्राह्मण, वैश्य, पंजाबी और दलित में से एक पर दांव लगा सकती है। की मुख्य वजह इन जातियों का मत प्रतिशत बताया जा रहा है। हरियाणा में दलित व ओबीसी बड़ा वोट बैंक है जिसमें से ओबीसी 30% तथा दलित 21% है। दोनों को मिला दिया जाए तो यह 51% बैठता है। वहीं प्रदेश में ब्राह्मणों का 8% मतों पर अधिकार है। भले ही यह प्रतिशत कम है पर दो लोकसभा सीट ऐसी है जिस पर सीधा इस जाति का प्रभाव है। इनकी विशेषता है कि ब्राह्मण हर जाति को साथ लेकर चलने का माद्दा रखता है।

पंजाबी चेहरे 

यहां सबसे अहम बात यह है कि करनाल लोकसभा से टिकट कटने के बाद संजय भाटिया का नाम प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में था, लेकिन नए समीकरणों को देखते हुए अब वह दौड़ से बाहर हो गए। हालांकि वह अभी लाबिंग करने में जुड़े हुए हैं लेकिन उन्हें कोई सफलता नहीं मिल पाई। इसका एहसास भाटिया को भी हो चुका है इसलिए वह करनाल लोकसभा चुनाव में एक्टिव नजर नहीं आए। वह केवल मनोहर लाल खट्टर के नामांकन के अवसर पर दिखाई दिए उसके बाद वह चुप बैठ गए। पंजाबी चेहरों में दूसरा नाम पूर्व मंत्री मनीष ग्रोवर का है। पंजाबी समुदाय से पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर वह पूर्व गृहमंत्री अनिल विज जैसे बड़े चेहरे हैं। इसलिए भाजपा पंजाबी समुदाय पर दांव नही लगाएंगी। ऐसे में भाजपा अब पंजाबियों के अलावा अन्य वर्ग पर फोकस करना चाहती है।

वैश्य चेहरे 

हरियाणा में भाजपा वैश्यों को साधने के लिए इस समुदाय के चेहरे को आगे ला सकती है। यदि पार्टी वैसे समुदाय से प्रदेश अध्यक्ष बनना चाहती है तो इसमें पूर्व उद्योग मंत्री विपुल गोयल और सीएम के पूरा मीडिया सलाहकार राजीव जैन को प्रमुखता दी जा सकती है। 

दलित चेहरे

दलित चेहरों में सबसे ज्यादा नाम राज्यसभा के सांसद कृष्ण लाल पंवार का आता है। लेकिन उनके साथ यह समस्या है कि वह इनेलो से भाजपा में आए हैं और संघ की पृष्ठभूमि से नहीं है। इसके बाद नंबर आता है पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के मीडिया कोऑर्डिनेटर व पूर्व प्रदेश प्रवक्ता सुदेश कटारिया का। वह भी मनोहर लाल खट्टर के अजीज हैं और उनको लोकसभा चुनाव में अहम जिम्मेवारियां दी गई थी। इसके साथ मुख्यमंत्री के पूर्व राजनीतिक सचिव एवं पूर्व मंत्री कृष्ण कुमार बेदी का नाम भी चर्चा में है। 

ब्राह्मण चेहरे

सुत्र बताते हैं कि यदि ब्राह्मण चेहरे को प्रमुखता दी गई तो पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर अपने अजीज अजय गौड़ को इस पद पर बैठने का भरपूर प्रयास करेंगे। उनकी गिनती प्रदेश के रणनीतिकारों में होती है। फरीदाबाद लोकसभा सीट के जीएल शर्मा प्रभारी और प्रदेश उपाध्यक्ष भी है। उनकी लोकप्रियता का पैमाना इस बात पर रहेगा कि फरीदाबाद सीट बीजेपी की झोली में आती है या नहीं? दूसरा बड़ा चेहरा पंडित रामबिलास शर्मा का है इस पर भाजपा दांव खेल सकती है। वह पूर्व में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं राजनीति में लंबे समय से है। उनका नाम केवल इस आधार पर अनदेखा किया जा सकता है कि वह उम्र दराज हो गए। उनके बाद नंबर आता है कि सोनीपत सीट से चुनाव लड़ रहे हैं मोहनलाल बड़ोली का। यदि बड़ोली चुनाव हारते हैं तो उनको प्रदेशाध्यक्ष बनाया जा सकता है।

वैसे लोकसभा चुनाव परिणाम तय करेंगे कि आगामी प्रदेशाध्यक्ष बनाने में पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की कितनी भूमिका रहेगी? यदि चुनाव परिणाम अनुकूल नहीं रहे तो शायद उनको दरकिनार किया जा सकता है। वैसे अब तक संगठन में और सरकार में मनोहर लाल खट्टर की काफी हस्तक्षेप रहा है। भाजपा हाई कमान ने उनको खुला हाथ दिया था।

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