राजनीतिक दलों की जगह चुनाव जनता लड़ रही है

भाजपा पिछड़ी कांग्रेस भुनाने में नाकाम

आपसी गुटबाजी से अछूती नहीं बीजेपी कांग्रेस

मोदी गारंटी के साथ उतरी भाजपा का हरियाणा में सियासी एजेंडा बदला, धारा 370, पाकिस्तान, राम मंदिर तक सीमित-कांग्रेस के पास मुट्ठी भरके मुद्दे पर राज्य स्तर पर भाजपा के खिलाफ माहौल नहीं बना पाई

रेलवे स्टेशन, बस अड्डों, पेट्रोल पंप और शौचालयों तक पर छपा एक चेहरा 10 साल आम जनता की तकलीफों पर हंसता रहा: राहुल गांधी 

अशोक कुमार कौशिक 

हरियाणा में चुनाव प्रचार का आज अंतिम दिन है। पिछले पखवाड़े में भाजपा जहां मुद्दों की सियासत में पिछड़ गई है, वहीं, कांग्रेस भी मुद्दों को भुनाने में कामयाब नहीं हो सकी। ‘मोदी गारंटी’ के साथ लोकसभा चुनाव मैदान में उतरी भाजपा का सियासी एजेंडा हरियाणा में आते-आते बदल गया। अगले पांच साल का एजेंडा बताने के बजाय भाजपा हिंदुत्व, पाकिस्तान, राम मंदिर और धारा 370 की पिच के इर्द-गिर्द घूमती दिखी। वहीं, कांग्रेस के पास किसानों व पहलवानों की नाराजगी, अग्निवीर, फैमली आईडी, प्रॉपर्टी आईडी, पोर्टल व महंगाई जैसे मुद्दे थे, मगर पार्टी इनको लेकर भाजपा के खिलाफ उतना माहौल नहीं बना पाई, जितनी उम्मीद की जा रही थी। हालांकि इसके पीछे सबसे बड़ी वजह राज्य में कांग्रेस का संगठन न होना और शीर्ष नेताओं के बीच गुटबाजी का हावी होना रहा है।

बीजेपी पिछले दो चुनाव से हरियाणा में अपना सियासी दबदबा बनाए रखने में सफल रही है। मगर, इस बार सियासी राह आसान नजर नहीं आ रही। भाजपा केंद्र के साथ राज्य में दस साल से सत्ता में है। भाजपा के पास बताने के लिए बहुत कुछ था, मगर 15 मई के बाद भाजपा के आए स्टार प्रचारकों ने चुनाव प्रचार को पूरी तरह से बदल कर रख गया। पीएम मोदी ने 18 मई को अंबाला व गोहाना में रैली कर अपने भाषण को धारा 370, पाकिस्तान, राम मंदिर और कांग्रेस के खिलाफ अपने लगाए पुराने आरोपों के आसपास टिके रहे। 

पिछले कुछ महीनों में राज्य में दो बड़े बदलाव देखने को मिले हैं। इसमें पहले मनोहर लाल खट्टर की जगह नायब सिंह सैनी को सत्ता की कमान सौंपना और फिर बीजेपी-जेजेपी का गठबंधन टूटना। पीएम मोदी के नाम पर दो बार चुनाव जीत चुकी बीजेपी को इस बार जातीय समीकरण खासकर जाटों की लामबंदी, किसानों का विरोध और अग्निवीर का मुद्दा परेशान कर सकता है? हरियाणा में बीजेपी में भी जबरदस्त गुटबाजी देखने को मिल रही है जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतान होगा।

वहीं, शाह राहुल गांधी और हुड्डा को घेरते दिखे। वही कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी लगातार बीजेपी और पीएम मोदी पर हमलावर हैं। इसी कड़ी में उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट किया है। इसमें उन्होंने कहा कि रेलवे स्टेशन से लेकर बस अड्डों और पेट्रोल पंप से लेकर शौचालयों तक पर छपा एक चेहरा 10 साल आम जनता की तकलीफों पर हंसता रहा। कल हरियाणा के दौरे पर आए राहुल गांधी ने ऐलान कर दिया यदि इंडिया गठबंधन की सरकार बनी तो अग्नि वीर योजना को कूड़ेदान में डाल दिया जाएगा। इसके साथ उन्होंने किसानों के कर्ज माफी कभी ऐलान किया। वह महिलाओं को दी जाने वाली सम्मान राशि के बारे में भी खुलकर बोले।

दूसरी तरफ, कांग्रेस किसी एक बड़े मुद्दे पर सरकार को घेरने में कामयाब नहीं हो सकी। कांग्रेस पार्टी प्रदेश में मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में है और 30 विधायक कांग्रेस के हैं। कांग्रेस समय-समय पर किसानों पर लाठीचार्ज, एमएसपी, प्रदेश पर बढ़ते कर्ज, महंगाई, बेरोजगारी, प्रॉपर्टी आईडी फैमिली आईडी और खिलाड़ियों के साथ किए गए बर्ताव के मामलों को विधानसभा में उठा चुकी है, लेकिन कोई एक मुद्दा तय नहीं कर पाई, जिसके दम पर सरकार को घेरा जा सके। 

चुनाव विश्लेषक कहते हैं कि हरियाणा कांग्रेस के नेताओं में गुटबाजी किसी से छिपी नहीं है। हर कोई अपनी गोटियां फिट करने में लगा हुआ है। कांग्रेस नेता लोकसभा चुनाव के बजाय विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस नेता पार्टी के न्याय पत्र को ही घर-घर तक पहुंचा देते तो आज चुनाव पूरी तरह से कांग्रेस के कब्जे में होता 

जजपा-इनेलो भी अपने इलाके तक सीमित रहे 

साढ़े चार साल भाजपा के साथ गठबंधन में शामिल रही जजपा भी किसी बड़े मुद्दे को नहीं उठा पाई है। सबसे अधिक दिक्कत जजपा को झेलनी पड़ रही है, वह सरकार में रहते समय अपने कामों का गुणगान कर रही है, लेकिन जनता में गठबंधन को लेकर जबरदस्त विरोध है, इसलिए जजपा नेता न तो खुलकर किसी मुद्दे पर सरकार को घेर पा रहे हैं और न ही जनता उनकी उपलब्धियां सुन रही हैं। जजपा का मुख्य फोकस हिसार लोकसभा क्षेत्र में ही रहा है। वहीं, इनेलो ने किसानों और पलायन कर रहे युवाओं के मुद्दे को कई बार उठाया है, लेकिन केवल एक विधायक होने के नाते प्रदेश में यह बड़ा मुद्दा नहीं बन पाया है। 

हुड्डा को निशाने पर लेते रहे भाजपा के केंद्रीय नेता 

भाजपा हाईकमान के नेताओं ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को निशाने पर लेना शुरू कर दिया है। गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने हुड्डा को दिल्ली दरबार के दामाद का दरबारी तक कह डाला। एक-एक करके भाजपा के नेता हुड्डा को निशाने पर ले रहे हैं। विपक्षी दल कांग्रेस सरकार पर हमला बोलने के बजाय अब भाजपा ने ही कांग्रेस की घेराबंदी शुरू कर दी है। कांग्रेस समय में नौकरियों, तबादलों और खर्ची पर्ची को लेकर निशाना साध रहे हैं। खास बात ये है कि हुड्डा भाजपा के केंद्रीय नेताओं पर हमला करने से बचते नजर आ रहे हैं। वह केंद्र सरकार की विफलताओं पर जरूर पलटवार करते हैं कि लेकिन व्यक्तिगत रूप से मोदी और शाह के बारे में बोलने से बचते रहे हैं। इस मामले को लेकर हुड्डा विरोधी कांग्रेसी नेता कई बार हाईकमान के सामने भी यह मामला रख चुके हैं।

फैमिली आईडी, प्रॉपर्टी आईडी, पलायन, एसवाईएल के मुद्दे गायब 

ग्राउंड पर जाने पर पता चलता है कि लोग फैमिली आईडी, प्रॉपर्टी आईडी, नौकरियों के लिए विदेशों में पलायन, बेरोजगारी से परेशान हैं। वह इस पर चर्चा भी करते हैं। सोनीपत लोकसभा के जींद के कई गांवों से युवा नौकरियों के लिए विदेशों में पलायन कर गए हैं। एक दो गांव ऐसे हैं जो पूरी तरह से खाली हो चुके हैं। यही हालात कुरुक्षेत्र और यमुनानगर के भी हैं। दक्षिण हरियाणा में पानी का मुद्दा आज भी गर्म है, मगर राज्य के किसी भी नेता के पास एसवाईएल को लेकर भविष्य का कोई एजेंडा नहीं है। फैमिली आईडी वह प्रॉपर्टी आईडी से भी लोग बहुत परेशान हैं। 

कांग्रेस के उम्मीदवार इन मुद्दों को अपने-अपने लोकसभा क्षेत्र में उठाते तो हैं, मगर यह मुद्दे उनके ही क्षेत्र में सीमित रह जाते हैं। पूरे चुनाव के दौरान कांग्रेस के दो बड़े नेता जयराम रमेश और मल्लिकार्जुन खड़गे आए, मगर उनका ज्यादा फोकस भी मोदी के आसपास ही रहा। इसके अलावा राज्य के अन्य नेता न तो कोई प्रेस कांफ्रेंस की और न ही अभियान या आंदोलन चलाया। इसकी पीछे एक बड़ी वजह यह है कि राज्य में कांग्रेस के पास कोई संगठन नहीं है। आंदोलन या अभियान चलाए तो किसके भरोसे चलाएं।

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो हरियाणा में इस बार का चुनाव कई मायनों में बदला हुआ है। किसान आंदोलन का असर राज्य की सियासत पर साफतौर पर पड़ता दिख रहा है, जिसे कांग्रेस भुनाने की कोशिश में है। राहुल गांधी किसानों को फसल पर एमएसपी गारंटी कानून लाने का भरोसा दे रहे हैं। हरियाणा की सियासत पूरी तरह से किसानों के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है।

हरियाणा में चुनाव में सबसे अजीब बात यह देखने को मिल रही है कि इस बार चुनाव राजनीतिक दलों की बजाय जनता चुनाव लड़ रही है। जनता के बीच महंगाई, बेरोजगारी, अग्निवीर योजना, फैमिली आईडी, प्रॉपर्टी आईडी, किसान आंदोलन, एमएसपी, एसवाईएल, राजनीतिक दलों द्वारा पार्टी कार्यकर्ताओं की अपेक्षा के साथ स्थानीय मुद्दे चुनाव पर हावी है। इस चुनाव में हरियाणा में बड़ा करिश्मा देखने को मिल सकता है। यह करिश्मा किसके पक्ष में होगा इसका पता तो 4 जून को ही लगेगा।

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