–कमलेश भारतीय मुझे स्वांग, संगीत और संस्कृति बचपन से ही मिले। पिता ढोलक बजा लेते थे, मांं गा लेती थी और पिता जी स्वांग भी निकालते थे । इस तरह हरियाणवी संस्कृति व स्वांग से बचपन से ही जुड़ गया और फिर यही मेरा शौक और पैशन हो गया । यह कहना है प्रसिद्ध कलाकार, काॅमेडियन और शिक्षक से थियेटर और थियेटर से फिल्मों तक का सफर तय करने वाले जनार्दन शर्मा का । आज उनके जन्मदिन पर बधाई देते देते मन बन गया कि विशेष बातचीत कर उपहार में इंटरव्यू दिया जाये । वे भी सहर्ष मान गये । -कहां के रहने वाले हैं आप?-मेरा गांव वधनाना अब तीन तीन जिलों में आ चुका । पहले महेंद्रगढ़, फिर भिवानी और अब चरखी दादरी में। -पढ़ाई लिखाई कहां और कितनी?-जींद में ग्रेजुएशन और कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरूक्षेत्र से एम ए दर्शनशास्त्र और बीएड। प्रयाग समिति, इलाहाबाद से संगीत, नृत्य व प्रभाकर । -स्कूल कॉलेज के दिनों में कौन सी गतिविधियों में हिस्सा लेते रहे?-संगीत, थियेटर और नृत्य में और बहुत बार । -पहली पहली नौकरियां?-देश के पूर्व प्रधानमंत्री गुलज़ारी लाल नंदा की मानव धर्म प्रेस में काम किया । फिर गीता हाई स्कूल में शिक्षक । डी ए वी काॅलेज, अमृतसर में प्राध्यापक और कालका के गवर्नेमेंट काॅलेज में भी प्राध्यापक रहा। -फिर महर्षि दयानंद विश्विद्यालय, रोहतक में कब और कैसे?-सन् 1976 में सुपरवाइजर और रिटायर हुआ छात्र कल्याण निदेशक के रूप में सन् 2006 में । -आपको कौन से पुरस्कार मिले?-कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय का आल राउंडर आर्टिस्ट अवार्ड। सन् 1972 में कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय में पहली बार जनार्दन शर्मा नाइट किसी पुरस्कार से कमल नहीं। एच एफ डी सी, दिल्ली से बेस्ट कॉमेडियन का सम्मान। इनके समेत अनेक सम्मान मिलते रहे । -हरियाणवी फिल्मों से कैसे जुड़े और कब?-हरफूल जाट जुलानी का, फिल्म में बैकग्राउंड में सहयोग किया । सन् 1984-1985 में छैल गेल्यां जांगी के गीत लिखे। काॅमेडी भी की । -कुल कितनी फिल्मों में काम किया?-बाइस । अभी लेटेस्ट मोहे रंग दे, हरियाणवी फिल्म में काम किया । -आपके प्रिय एक्टर?-दिलीप कुमार, संजीव कुमार और कामेडियन महमूद। -आपके प्रेरक गुरु कौन?-जींद से प्रो पी ए शर्मा और कुरूक्षेत्र से प्रो हिम्मत सिंह सिन्हा । -चंद्रावल के बाद वैसी लोकप्रियता कोई हरियाणवी फिल्म क्यों नहीं पा सकी?-चंद्रावल की सफलता के बाद अपने स्वार्थ में बिना फिल्म तकनीक जाने पैसे कमाने के चक्कर में फिल्म बनाने की होड़ लग गयी, जिससे नुकसान हुआ। दस साल का समय तो ऐसा आया जब कोई फिल्म ही नहीं बनी । फिर आई़ं पगड़ी-द ऑनर, सतरंगी और दादा लखनऊ, इन फिल्मों ने नयी लहर बनाई। -क्या कहेंगे आप दादा लखमी के बारे में?-इसे मैं सूर्य किरण कहता हूं। यह संस्कृति पर आधारित श्रेष्ठ फिल्म है और इसकी सूर्य किरणें फैलती जा रही हैं । -लक्ष्य?-हरियाणवी संस्कृति और सिनेमा की सेवा।हमारी ओर से जनार्दन शर्मा को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं। आप इस नम्बर पर अपनी प्रतिक्रिया दे सकते हैं -9992022015 Post navigation ऐसे बढ़ने लगा आईपीएल का बुखार …….. किसानों के लिए जितना काम भाजपा ने किया किसी ने नहीं किया : नायब सैनी