पहला चुनाव जिसमें ने आंधी है न लहर, सिर्फ प्रचार …….. आम जनता गायब

हरियाणा में ज्यादा पुछा जाने वाला ‘के लागै है हरियाणा मै कौन आएगा?”

90% कांग्रेसी लोकसभा चुनाव में भी विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं

पर यह भी सत्य है कि भाजपा इस बार अगर सत्ता से उतरी , तो दोबारा चढ़ना कठिन

अशोक कुमार कौशिक 

कल चाय की दुकान पर एक पढ़े–लिखे पत्रकार और बीजेपी भक्त में जोरदार भिडंत हो गई। 

मैं चाय की चुस्कियां पीते हुए चुपचाप सुन रहा था। पत्रकार महोदय जितना मुद्दों पर बात करते भक्त टेढ़ा चलने लगता। 

निष्कर्ष यही कि भक्त हमेशा अपने प्रभु का बचाव करता है–चाहे वह कितना भी गलत हो। इसके लिए वह झूठे, अनर्गल तर्क गढ़ेगा। 

इस वक्त भारत की 60% अवाम के भीतर इस सवाल को लेकर उथल–पुथल है कि वोटिंग के दिन कौन सा बटन दबाएं। 

न कोई लहर है, न आंधी। है तो सिर्फ प्रचार, जिसमें आम जनता गायब है। उसके मुद्दे नदारद हैं। 

यह पहला चुनाव है, जिसमें भ्रष्टाचार लोगों को बेचैन कर रहा है। विपक्ष को दबाने का खेल सामने दिख रहा है। 

और यह भी कि मोदी सत्ता ने 10 साल में सिर्फ उनके लिए काम किया, जिन्होंने उसे चंदा दिया। 

गोबर पट्टी को छोड़कर, जहां फैसले दिमाग से नहीं दिल से होते हैं। 

और दिल वॉट्सएप के झूठ में घुसा है।

हरियाणा में आज के दिन सबसे ज्यादा पूछा जाने वाला सवाल है-

‘के लागै है हरियाणा मै कौन आएगा?”

ये सवाल दो नज़रिए से महत्वपूर्ण है।

प्रथम, हरियाणा में आमतौर पर लोगों के नज़रिए से भाजपा की राज्य सरकार लोगों में लोकप्रियता खो चुकी है।

दूसरा, हरियाणा के लोगों की या तो लोकसभा चुनावों में कोई विशेष रुचि नही है या फिर लोग ये मानकर चल रहे हैं कि केंद्र में मोदी तीसरी बार आ सकता है।

इस मुद्दे पर मेरा ये मानना है कि हरियाणा में हालांकि इस बार वो मोदी-मोदी वाली लहर कतई नही है लेकिन, ये भी गौरतलब है कि किसान और कर्मचारी वर्ग को छोड़कर हरियाणा में मोदी के खिलाफ कोई विशेष सत्ताविरोधी लहर भी नहीं है। विशेषकर दक्षिण हरियाणा में। यदि कांग्रेस ने टिकट भाजपा के निर्देशों के अनुसार नही बांटे तो इस बार हरियाणा में भाजपा कम से कम 4 सीटों पर कमजोर स्थिति में है और ये आंकड़ा बढ़ भी सकता है।

लेकिन, हरियाणा में ना जनता के मन मे लोकसभा चुनावों के प्रति हरियाणा को लेकर कोई विशेष जिज्ञासा है और ना ही खुद हरियाणा के कांग्रेसियों के मन में।

कोई माने या ना माने लेकिन, ये हकीकत है कि हरियाणा के 90% कांग्रेसी लोकसभा चुनाव में भी विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। इनकी लोकसभा चुनाव में कोई रुचि नही है।

जब लोग मुझसे ये सवाल पूछते हैं,”हरियाणा का के रहेगा?”

तो मैं उनसे सवाल पूछता हूँ , “केंद्र में क्या रहेगा?”

लोगों को विपक्ष ये यकीन ही नही दिला पा रहा कि मोदी इस बार केंद्र में बचाव की मुद्रा में है।

जिन लोगों के वहम है कि केंद्र में तीसरी बार मोदीजी के आने के बावजूद भी हरियाणा में कांग्रेस जीत जाएगी उनको अपने दिमाग से ये वहम तुरन्त निकाल देना चाहिए। केंद्र में बदलाव के बिना अक्टूबर हरियाणा में बदलाव की उम्मीद ही नही है।

हरियाणा ही क्यों?

यदि केंद्र में मोदीजी ने तीसरी बार शपथ ले ली तो हरियाणा क्या पूरे देश मे कहीं भी भाजपा को बदलकर दिखा देना।

दो बार जीतने में ही सभी संवैधानिक संस्थाएं घुटनो पर ला दी, मीडिया को अपना दरबारी बना लिया, न्याय व्यवस्था को दयनीय हालत में पहुंचा दिया।

अगर तीसरी बार मोदी जी आ गए तो भाजपा ही पक्ष, भाजपा ही विपक्ष, आरएसएस ही संविधान, आरएसएस ही न्यायपालिका, आरएसएस ही भगवान।

जो भी मित्र ये चाहता है कि केंद्र में तीसरी बार भी मोदी आ जाए, उसको देश मे ‘पुतिन मॉडल’ के लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार कर लेना चाहिए।

मोदीजी के तीसरी बार आने के बाद देश मे परिस्थितियां कैसी होंगी ये एक बार बैठकर शांति से सोचना, खुद ही समझ आ जाएगा।

इस बार का चुनाव मुफ्त के 5 किलो सरकारी चून का चुनाव नही है। 

इस बार का चुनाव कांग्रेस या भाजपा में से किसी एक को चुनने का चुनाव भी नही है। ये चुनाव इस बात का है कि देश मे लोकतंत्र रहेगा या ‘पुतिन मॉडल’ लागू होगा।

जो आदमी चुनाव से महीना पहले विपक्ष के 2 चुने हुए मुख्यमंत्रियों को पद पर रहते हुए, उठाकर जेल में डाल सकता है क्या तीसरी बार जीतने के बाद वो व्यक्ति विपक्ष से किसी व्यक्ति को मुख्यमंत्री बन लेने देगा या विपक्ष के एक भी मुख्यमंत्री को जेल से बाहर रहने देगा?

इसलिए हरियाणा के जिन कांग्रेसी भाइयों को ये वहम है कि केंद्र में बदलाव चाहे हो या ना हो, राज्य में बदलाव होगा। 

उनको अपने कॉन्सेप्ट क्लियर कर लेने चाहिएं।

भाजपा और विपक्ष में से जो भी केंद्र में सरकार बनाएगा वही अक्टूबर में हरियाणा में भी आएगा…

पर यह भी सत्य है कि भाजपा इस बार अगर सत्ता से उतरी , तो दोबारा चढ़ना कठिन है। आने वाली सरकारें बीजेपी  पर ऐसी नकेल डालेंगी, की इसका दोबारा पूर्ववत ताकत पाना कठिन होगा। मोदीराज की मूर्खताएं, अहंकार, और विनाश की नजीरें, अगले पचास सालों तक भाजपा को हॉन्ट करने वाली हैं। 

तो अबकी बार, सत्ता से उतरना, भाजपा के खात्मे की ओर कदम होगा। मोदी और संघ के बीच जो कुछ चल रहा है वो नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। भाजपा के भीतर एक बड़ा तबका दम साधे, मोदी ब्रांड में क्रैक की प्रार्थनाएं कर रहा है। 

कांग्रेस मुक्त भारत का अभियान फेल हो चुका। राहुल गांधी का असर बढ़ रहा है। और याद रहे, नेहरू, इंदिरा, राजीव के उलट ये पीढ़ी ऐसी है, जिसने बीजेपी सत्ता के सबसे ज्यादा घाव झेले हैं, सबसे ज्यादा नफरत की है। तमाम अर्थों में इनका रेजीम बीजेपी पर गहरा वार करेगा।

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