अजीत सिंह

हिसार। मार्च 8.3.2024 –     रचनाशील वरिष्ठ नागरिकों की संस्था वानप्रस्थ में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर एक ओर जहां महिलाओं के मुद्दों को उठाया गया वहीं दूसरी ओर उन विदुषी महिलाओं को सम्मानित किया गया जिन्होंने ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान और सामयिक विषयों पर प्रभावशाली प्रस्तुतियां दे इसे एक वैचारिक मंच बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 

  प्रो सुनीता श्योकंद ने गोष्ठी का संचालन करते हुए कहा कि महिला दिवस महिला शक्ति के उत्सव का दिन है। नारी हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है पर कन्या भ्रूण हत्या , घरेलू हिंसा, समान वेतन और पहचान के मुद्दे आज भी हर गांव, शहर में देखने को मिल रहे हैं। पिछले साल देश में महिलाओं के प्रति अपराधों की संख्या चार लाख 45 हज़ार से ऊपर पहुंच गई यानि हर घंटे 51 अपराध।

  पुरुष प्रधान विश्व में केवल 18% महिलाएं ही लीडरशिप रोल में हैं जबकि महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी योग्यताएं प्रमाणित कर रही हैं।

  *प्रो पुष्पा सतीजा* ने कहा कि कामकाजी महिलाओं की स्थिति खराब है क्योंकि उन्हें नौकरी के इलावा घर का काम और बच्चों का पालन भी करना होता है और पुरुष सदस्य अक्सर उनकी मदद नहीं करते। उनका सुझाव था कि माताओं को बचपन से ही लड़कियों के समान लड़कों को भी घरेलू काम की ट्रेनिंग देनी चाहिए और उन्हें महिलाओं का आदर करना सिखाना चाहिए।

 *प्रो नीलम परुथी* का कहना था कि दुनिया में लड़कियों द्वारा शादी न करने और शादी के बाद बच्चे पैदा न करने का खतरनाक रुझान भी सामने आ रहा है।

गोष्ठी में इस संदेश पर भी चर्चा हुई जिसमे कहा गया था,  *क्यों औरत के हिस्से में उसका इतवार नहीं आता…*

*प्रो राज गर्ग* ने महिला जीवन पर दो कविताएं सुनाई। एक का शीर्षक था, 

*स्त्री तू पुरुष नहीं बन पाएगी, नरम दिल औरत, क्या पत्थर दिल बन पाएगी?*

दूसरी कविता का शीर्षक था,

*मैं, मैं ही रहूंगी, 

मैं सीता, राधा, उर्मिला, गांधारी, यशोधरा, मीरा नहीं बनूंगी…*

  महिलाओं को लेकर कई गीतों का भी संदर्भ लिया गया।

  *औरत ने जन्म दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाज़ार दिया..*

*हां, उठ मेरी जान, मेरे साथ चलना है तुझे..*

*औरत जीवन झूले की तरह, इस पार कभी, उस पार कभी..*

*एक कुड़ी जिस्दा नां मोहब्बत, गुम है, गुम है, गुम है..*

*नारी तुम अबला नहीं ..*

 दूरदर्शन के पूर्व समाचार निदेशक *अजीत सिंह* ने महिला दिवस पर उन 13 महिलाओं की एक सूचि प्रस्तावित की जिन्होंने वानप्रस्थ की गोष्ठियों को बौद्धिक वार्तालाप का मंच बनाने में उल्लेखनीय योगदान किया। इस सूचि में शामिल महिलाओं को उन्होंने *वूमेन ऑफ सब्सटेंस* कह कर संबोधित किया। यह अंग्रेज़ी विशेषण उन सशक्त महिलाओं के लिए उपयोग किया जाता है जो नैतिकता और चरित्र के साथ बौद्धिक गुणों की धनी होती हैं और समाज के लिए प्रेरणास्रोत होती हैं। इनमें *प्रो  पुष्पा खरब, प्रो सुनीता श्योकंद, सुनीता मेहतानी, प्रो सुनीता जैन, देवीना अमर ठकराल, राजरानी मल्हान , प्रो राज गर्ग, कौशल जैन, प्रो स्वराज कुमारी, प्रो पुष्पा सतीजा, डॉ सत्या सावंत, सुनीता रहेजा और प्रो नीलम परुथी* के नाम शामिल थे। सदस्यों के सुझाव पर और नाम भी शामिल किए जा सकते हैं । इन सभी के कार्यों का संक्षेप में उल्लेख किया गया और सदस्यों ने खूब तालियां बजा कर उनका स्वागत किया गया। उन्हें फूलों के गुलदस्ते भेंट किए गए। 

   इस अवसर पर उन मेहमान महिलाओं को भी उनकी अनुपस्थिति में सम्मानित किया गया जिन्होंने वानप्रस्थ जीवन को कोरोना महामारी के समय व अन्य अवसरों पर वानप्रस्थ के सदस्यों का उत्साहवर्धन, ज्ञानवर्धन व मनोरंजन कर महत्वपूर्ण योगदान दिया।

  इनमें पुणे की संगीतकार *डॉ दीपशिखा पाठक, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में संगीत की प्रोफेसर डॉ शुचिस्मिता, भोपाल की गायक भारती विश्वनाथन, कैंसर से बहादुरी जूझती सोनीपत वासी श्रीमती सावित्री, विदेशियों को भारत भ्रमण करा रही वन्यप्राणी फोटोग्राफर जया अय्यर व मीडिया विशेषज्ञ डॉ प्रज्ञा कौशिक* शामिल थीं।

इनके इलावा जीवन के कम से कम 77  वसंत देख चुकी कुछ उम्रदराज महिलाओं को भी सम्मानित किया गया जिनमें *श्यामा गोसाईं, संतोष डांग और वीना अग्रवाल* भी शामिल थीं

   संस्था में आज ही *प्रो जे के डांग व संतोष डांग* की शादी की सालगिरह तथा *प्रो एस के गर्ग* का जन्मदिन भी उन्हें फूलों के गुलदस्ते देकर सम्मानित किया।

  अन्त में वानप्रस्थ की सभी महिलाओं के सम्मान में *अजीत सिंह* ने मनभावन एवरग्रीन गीत पेश किया, 

  *यूं तो हमने लाख हसीं देखे हैं, तुमसा नहीं देखा, 

हो तुमसा नहीं देखा…*

   इस गीत को सभी साथ गाने लगे और हंसी खुशी के माहौल में महिला दिवस पर वानप्रस्थ की यह यादगार गोष्ठी संपन्न हुई।

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