-कमलेश भारतीय

साहित्य हमारी आत्मा को झकझोरता है और उत्सव इसे नयी पीढ़ी तक पहुंचाते हैं । कुछ कुछ ऐसा ही जादू कर दिखाया कुल्लू साहित्योत्सव ने ! इसने न केवल झकझोरा, आत्मा को जगाया बल्कि विचार के लिए अनेक बिंदु दिये । साथ ही साहित्य को नयी पीढ़ी तक पहुंचाया भी ।अभी चार दिन मैं धर्मशाला ( हिमाचल) में बिता कर हिसार लौटा ही था बल्कि लौटा भी नही था कि हिमतरु प्रकाशन समिति के समन्वयक व चार साल पहले मिले मनाली में मिले बने मित्र किशन श्रीमान् व रमेश पठानिया ने कुल्लू के साहित्योत्सव का निमंत्रण दिया तब मैंने एक बार तो असमर्थता जताई कि लम्बी अस्वस्थता के बाद दूसरी लम्बी यात्रा करना मुश्किल लग रहा है । पहले पता होता तो मैं एकबार ही कार्यक्रम बना लेता । फोन नीलम ने भी सुना और पूछा-आपका दिल है कुल्लू जाने का?

-हां, है तो ! मैंने उदास होकर कहा ।

-फिर फोन करो उनको कि हम आयेंगे । और मैंने श्रीमान् को फोन कर आने की सहमति दे दी । धर्मशाला से लौटते ही कुल्लू की तैयारियों में जुट गये हम तीनों और इच्छा थी कि 27 फरवरी को ही पहुंच पाऊं और उद्घाटन में भी मौजूद रहूँ लेकिन ऐसा हो न सका । हम 28 को ही निकल पाये और बीच में मंडी में तीन बजे से साढ़े चार बजे तक रुकना पड़ा क्योंकि कोई विकास कार्य चल रहा है और यह रोज़ ही होता है । आखिर हम सात बजे के करीब पहुंचे तब किशन श्रीमान् ने कहा कि आप एक बार सीधे देव सदन आ जाओ और अभी चल रहे सांस्कृतिक कार्यक्रम का आनंद उठाओ । थके होने के बावजूद इस सांस्कृतिक कार्यक्रम ने हमारी थकावट उड़न छू कर दी । पहले कुछ काव्य पाठ चल रहा था और फिर कबीर के दोहे और अंत में आज जाने की जिद्द न करो के साथ यह शाम सिमट गयी । आज ही तो साहित्योत्सव का उद्घाटन हुआ था, आज जाने की जिद्द कौन करता पर इस मधुरता से पहले दिन की शाम संपन्न हुई । संचालन रेखा ठाकुर और डाॅ हेमराज ने किया ।

वैसे जो पहले दिन मैं आ न सका उसमे प्रसिद्ध पर्यावरणविद व पहाड़ पर भरपूर काम करने वाले शेखर पाठक ने पहाड़ व जीवन को एक होकर साहित्य में पर्यावरण को बचाने का संदेश दिया और दिल्ली से आईं प्रो नीलम ने नारी अस्मिता पर बात रखी, जिसमें तीन देवियों लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा का उदाहरण देते कहा कि असल में इन पर पुरुष का ही कब्ज़ा है और इनकी शक्तियों का नियंत्रण पुरुष के ही हाथ में है, जिसके कारण नारी पर अपराध बढ़ते जा रहे हैं । हेमा माहेश्वर ने आदिवासी जनजीवन की व्यथा को सामने रखा और उनकी तीजन बाई के बहाने लिखी कविता भी बहुत मार्मिक रही और उनकी आदिवासी जीवन पर अध्ययन की गहराई की ओर संकेत कर गयी । इस तरह पर्यावरण, स्त्री विमर्श और आदिवासी विमर्श पहले दिन की चर्चाओं के विषय रहे । सबसे बड़ी बात कि विभिन्न क्षेत्रों से, विभिन्न जगहों से युवा बड़ी स़ख्या में इसमें भागीदारी निभाने आये यानी साहित्य और आज की चिंताओं को बड़ी ही गंभीरता के साथ नयी पीढ़ी तक पहुंचाने में यह साहित्योत्सव कामयाब कहा जा सकता है और सफल भी रहा भी ।

अटल सदन में रात्रिभोज में सबसे थोड़ा थोड़ा मिलना हुआ लेकिन यह भांपने में देर नहीं लगी कि सुबह बहुत शानदार और भव्य उद्घाटन हुआ होगा । हमारी व्यवस्था सर्किट हाउस में थी तो हम वहाँ पहुंचे और दिन भर की थकान ने हमें अपनी बाहों में लेकर सुख सपनों में ले जाने में देर नहीं लगाई ।

दूसरी सुबह नाश्ते पर फिर अटल सदन में सभी इकट्ठे हुए और पहले सत्र की शुरुआत दो जुड़वां बहनों पूर्वा और प्राची की बीस मिनट की फिल्म ‘रजस्वला’ से हुई, जिसमें पहाड़ में रजस्वला के तीन दिन के दौरान हर उम्र की नारी को जिन स्थितियों का सामना करना पड़ता है, उनका खूबसूरत फोटोग्राफी के साथ फिल्मांकन किया इन युवाओं ने ! बीस मिनट की फिल्म ने विचार के लिए झकझोरा और प्रश्नोत्तर भी हुए । इनके बाद बंजार से देश दुनिया तक पहुंचे वरयाम सिंह ने हिमाचल की भाषाओं पर सारगर्भित व्याख्यान दिया और बताया कि आजकल वे इस पर काम कर रहे हैं । वरयाम सिंह ने रुसी भाषा और हिंदी के बीच एक पुल‌ का काम किया, जिस योगदान को भुलाया नहीं जा सकता । हिमाचल के वरिष्ठ लेखक डाॅ सुशील कुमार फुल्ल ने अध्यक्षता की इस सत्र की और प्रसन्नता व्यक्त की कि कुल्लू की हिमतरु प्रकाशन समिति और भाषा व सस्कृति विभाग ने ऐसा कार्यक्रम किया ।

इनके बाद गाजियाबाद से आमंत्रित फिल्म विशेषज्ञ संजय जोशी ने विनोद कुमार शुक्ल की कविता के प्रभावशाली पाठ के बाद भुवन शोम, पाथेर पंचाली और एक अन्य फिल्म के अंश दिखाकर फिल्म, फिल्मांकन, विचार और सिनेमा की ताकत के बारे में विस्तार से बताया । उनका कहना था कि बिना संवाद के खूबसूरत फिल्मांकन कैसे दर्शकों पर असर छोड़ता है और कि साहित्य से फिल्म तक, का माध्यम कैसे एकदम अलग हो जाता है । यदि वनमाली की कहानी पढ़ें और फिल्म देखें तो निराशा हाथ लगेगी क्योंकि सिनेमा एक अलग माध्यम है । यह संकेत था कि साहित्यिक कृतियों पर फिल्म बनाना आसान काम नहीं । इस प्रभावशाली सत्र के बाद दोपहर का भोजन और भी स्वादिष्ट लगा। किताबों की प्रदर्शनी में कुछ पुस्तकों के कवर देखे, पन्ने पलटे और फिर दोपहर बाद का सत्र काव्य पाठ को समर्पित रहा, जिसका संचालन शिमला से आईं युवा रचनाकार दीप्ति सारस्वत प्रतिमा ने किया । इसमें नयी प्रतिभाशाली कवयित्री रोमिता शर्मा मीतू की कविता ‘ रोपनी’ ने खूब ध्यानाकर्षित किया ।

शाम सात बजे के बाद अटल सदन का आंगन खूब भर गया, अलग अलग समूहों में सभी बैठ कर जान पहचान के साथ बतियाते लगे। हम प्रसिद्ध पर्यावरणविद् शेखर पाठक, दिल्ली से आईं प्रो नीलम, हेमा माहेश्वर, हिमाचल के चर्चित कवि गणेश गयी आदि के साथ बतियाते रहे कि बीच में से अचानक गायब होकर गणेश गणी प्रकट हुए कुल्लू के प्रसिद्ध सिड्डू के तीन पैकेट के साथ कि इनका स्वाद चखिये ! गर्मागर्म सिड्डु खूब भाये और सबने खूब खाये स्वाद ले लेकर ! इतने में बेटी रश्मि आई और बताया कि पापा, अंदर तो कवि गोष्ठी चल रही है। आप भी आ जाओ । सभी अंदर चल दिये ।

यह अनौपचारिक कवि गोष्ठी थी, जिसका संचालन संभाला चर्चित कवि अजेय ने और यह अनौपचारिक कवि गोष्ठी एक यादगार गोष्ठी बन गयी । इसमें शेखर पाठक ने पहाड़ की चिंता को लेकर बहुत छोटी सी लेकिन बहुत गहरी कविता सुनाई कि बस ड्राइवर हम तुम्हें पहाड़ का सब कुछ देंगे पर तुम हमें राजधानी लेकर चल क्योंकि हमने राजधानी से अपना गांव छुड़ाकर लाना है । इसी प्रकार प्रो नीलम की कविता- सबसे खराब लड़की भी याद रहने वाली है कि यदि लड़की तर्क वितर्क करती है तो वह सबसे खराब लड़की है । रमेश पठानिया की घर को लेकर सुनाई कविता भी साथ रहेगी।

तीसरे और अंतिम दिन हरिपुर में पेंटर आर्टिस्ट डाॅ संजू पाॅल की आर्ट गैलरी माइंडस्केप का उद्घाटन करते लिखा अपना संदेश कि पहाड़ हमें मनुष्य बनाने हैं। फिर सबने आर्ट गैलरी की विविध पेंटिग्स का अवलोकन किया । इतने में बारिश ने जोर मारना शुरू कर दिया, फिर भी वाटरप्रूफ शामियाने ने लाज रख ली और गर्मागर्म चाय के बाद कुल्लू व आसपास की महिला पत्रकारों को कुल्लू प्रेस क्लब की ओर से शेखर पाठक ने सम्मानित करने के बाद कहा कि यह सम्मान पुरुषों को नारी की गरिमा और सम्मान देने से सचमुच पुरुष बनाता है और कि महिला पत्रकारों पर भी खतरे बढ़ रहे हैं । डाॅ संजू पाॅल की आर्ट गैलरी पर कहा कि इनकी पेंटिंग्स मे विचार, यथार्थ और रंगों के साथ साथ हिमालयी विरासत दिख रही है। यह रोरिक की अगली कड़ी है । हमें इस हिमालयी विरासत को बचाना ही नहीं आगे भी बढ़ाना है । तेज़ बारिश के बीच ही स्वादिष्ट दाल भात परोसा गया और फिर यह काफिला चला नग्गर की रोरिक आर्ट गैलरी की ओर । जैसे ही नग्गर पहुंचे बारिश हिमपात में बदल चुकी थी, जिसके चलते जिन्होंने हिम्मत की, वे तो आर्ट गैलरी का आनन्द ले आये पर मैं अपनी ताज़ा अस्वस्थता से और डाॅ सुशील कुमार फुल्ल अपनी उम्र के पड़ाव से डरते आर्ट गैलरी देखने ही नहीं उतरे और बस में ही बर्फबारी का आनंद लेते रहे । हमारे साथ रमेश मस्ताना और प्रभात शर्मा भी थे, जिन्होंने पहाड़ी कविताएँ सुनाईं । इस तरह अटल टनल का कार्यक्रम रद्द कर कुल्लू की वापसी करनी पड़ी। अटल सदन पर आते ही उत्सव के साथी एक एक कर बिछुड़ने लगेगी और हल्की सी उदासी ने घेर लिया । कल यही आंगन कितना भरा भरा और खिला खिला था और आज सूना हो गया। सन्नाटा छा गया। बाज़ार घूमने का एक बार कदम उठाया पर ठंड का इतना तेज़ झोंका आया कि विचार बदल लिया और हम अटल सदन और देव सदन में आयोजित साहित्योत्सव की मधुर स्मृतियों के साथ सर्किट हाउस लौट गये ।

इस साहित्योत्सव से मैं अनेक नये पुराने मित्रों की यादें लेकर लौट रहा हूं । कुछ पुराने मित्र जैसे डाॅ सुशील कुमार फुल्ल, शेखर पाठक, संजय जोशी, हेमा माहेश्वर, रत्न चंद निर्झर, किशन श्रीमान्, रमेश पठानिया, निरजन शर्मा, प्रतिमा शर्मा, डाॅ राजेन्द्र पाॅल, पौमिला ठाकुर, रमेश मस्ताना, प्रभात शर्मा, प्रो नीलम, प्रदीप सैनी, रोमिता शर्मा मीतू, अनंत आलोक और भी नये मधु, स्मृति, रेखा ठाकुर, प्रवीण आदि आदि…. सब बहुत याद आते रहेंगे और सबसे बढ़कर वे विचार और संस्कार मिले इस उत्सव से, वे सदैव साथ रहेंगे और इंतज़ार रहेगा कुल्लू साहित्योत्सव का !

बहुत याद आयेगा किशन श्रीमान् और रमेश पठानिया और समग्र हिमतरु प्रकाशन समिति का यह आयोजन ।

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