आखिर अशोक गहलोत के समर्थक ही भाजपा में शामिल क्यों हो रहे हैं? क्या अब अशोक गहलोत की कांग्रेस में रुचि नहीं रही? अशोक कुमार कौशिक कमलनाथ के भाजपा में शामिल होने की चर्चा के बीच राजस्थान में कांग्रेस को पार्टी को विधायकों और वरिष्ठ नेताओं के पार्टी छोड़ने का डर सता रहा है। प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज है कि सोनिया गांधी के राज्यसभा सांसद का प्रत्याशी बनने के बाद से ही भाजपा बड़े उलटफेर की तैयारी में लगी है। कांग्रेस के आधा दर्जन से अधिक वरिष्ठ नेता-विधायक दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं। इसी बीच सीडब्ल्यूसी सदस्य और पूर्व कैबिनेट मंत्री महेंद्रजीत सिंह मालवीय सोमवार को भाजपा में शामिल हो गए। अब गहलोत सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे लालचंद कटारिया, उदयलाल आंजना और राज्य मंत्री रहे राजेंद्र यादव सहित 7 से अधिक विधायक-नेताओं के कांग्रेस का दामन छोड़ने की चर्चाएं चल रही हैं। नेताओं की पार्टी छोड़ने की इस हलचल से प्रदेश के पूर्व सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट समेत कई नेताओं की धड़कनें बढ़ गई हैं। यहां सवाल यह खड़ा हो रहा है कि आखिर अशोक गहलोत के समर्थक ही भाजपा में शामिल क्यों हो रहे हैं? दरअसल, कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी का राजस्थान से राज्यसभा का प्रत्याशी बनने के बाद से ही कांग्रेस के लिए यह चुनाव प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है। विधायकों की संख्या के लिहाज से कांग्रेस के पास फिलहाल 19 वोट अधिक हैं, लेकिन सोनिया गांधी के नामांकन दाखिल करने के बाद से ही नेताओं के पार्टी छोड़ने और बयानबाजियों से कांग्रेस को शर्मिंदगी झेलना पड़ रही है। प्रदेश के राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कांग्रेस के एक बड़े नेता व पूर्व कैबिनेट मंत्री और गहलोत के करीबी महेंद्रजीत सिंह मालवीय भाजपा में शामिल हो गए हैं। जबकि पूर्व कैबिनेट मंत्री लालचंद कटारिया, पूर्वी राजस्थान से राज्य मंत्री रहे राजेंद्र यादव सहित अर्जुनसिंह बामनिया, नानालाल निनामा और रमीला खड़िया जैसे विधायकों के भाजपा से संपर्क में होने की चर्चाएं हैं। इसी बीच सोनिया गांधी के करीबी अशोक गहलोत डैमेज कंट्रोल में जुट गए हैं। वे लगातार विधायकों को जोड़े रखने के लिए उनसे मेल-मुलाकात करते हुए दिख रहे हैं। मीडिया से चर्चा में स्थनीय कांग्रेस नेता कहते हैं कि इन दिनों राजस्थान कांग्रेस में भी उठापटक का दौर जारी है। कई नेता मेल मुलाकात करते हुए नजर आ रहे हैं। लेकिन पार्टी को ये अंदाजा नहीं था कि सोनिया गांधी के राज्यसभा चुनाव के नामांकन दाखिल के बाद ऐसा सियासी संकट खड़ा हो जाएगा। गहलोत ने पिछले दिनों विधायक अर्जुन सिंह बामनिया, नानालाल निनामा और रमीला खड़िया को जयपुर बुलाकर बातचीत भी की थी। हालांकि विधानसभा के अंक गणित के हिसाब से जीत के लिए सोनिया गांधी को 51 विधायकों का साथ चाहिए, जो कोई मुश्किल नहीं लग रहा। अगर तीन से चार विधायक पार्टी छोड़ते भी हैं, तो भी कांग्रेस के पास पर्याप्त संख्या में विधायक रहेंगे। क्या गहलोत के इशारे पर हो रहा है सबकुछ? राजस्थान के आदिवासी क्षेत्र के दिग्गज नेता महेंद्रजीत सिंह मालवीय के भाजपा में शामिल होने के बाद पूर्व मंत्री लालचंद कटारिया, रिछपाल मिर्धा, रामलाल जाट, रतन देवासी आदि कांग्रेस नेताओं के भाजपा में शामिल होने की चर्चा है, यह सभी नेता पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समर्थक रहे हैं। गहलोत ने मुख्यमंत्री रहते हुए सत्ता की मलाई सबसे ज्यादा इन्हीं नेताओं को चटाई है। महेंद्रजीत सिंह मालवीय को मंत्री बनाने के साथ साथ कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति का सदस्य भी बनाया। इतना ही नहीं मालवीय की पत्नी रेशमा देवी को बांसवाड़ा का जिला प्रमुख भी बनाया। सवाल उठता है कि आखिर गहलोत के समर्थक ही भाजपा में शामिल क्यों हो रहे हैं? वह भी तब जब लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस को मजबूत किए जाने की सख्त जरूरत है। गत विधानसभा के चुनावों में राजस्थान के 25 संसदीय क्षेत्रों में 11 में कांग्रेस को ज्यादा वोट मिले। इसलिए भाजपा ने इन 11 संसदीय क्षेत्रों में लोकसभा चुनाव जीतने के लिए विशेष फोकस किया है, इसके मद्देनजर मालवीय को भाजपा में शामिल करवाया गया। आदिवासी क्षेत्र के बांसवाड़ा-डूंगरपुर और जालौर-सिरोही संसदीय क्षेत्रों में मालवीय का खास प्रभाव है। भाजपा ने इन दोनों संसदीय क्षेत्रों में मालवीय के दम पर अपनी स्थिति को मजबूत कर लिया है। जानकार सूत्रों की मानें तो पूर्व सीएम गहलोत चाहते तो मालवीय को भाजपा में जाने से रोक सकते थे, लेकिन गहलोत ने मालवीय को रोकने में कोई रुचि नहीं दिखाई। गहलोत के रुचि न दिखाने के कारण ही लालचंद कटारिया, रिछपाल मिर्धा, रामलाल जाट, रतनदेवासी जैसे दिग्गज कांग्रेसी भी भाजपा में शामिल हो सकते हैं। मालूम हो कि 2020 के सियासी संकट में ये सभी नेता गहलोत के समर्थक थे। इतना ही नहीं 25 सितंबर 2022 को इन नेताओं ने गहलोत के समर्थन में विधायक पद से इस्तीफा भी दिया था। कहा जा सकता है कि इन नेताओं को कांग्रेस में मजबूत करने में गहलोत ने कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन अब गहलोत ने इन नेताओं को खुला छोड़ दिया है। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस हाईकमान ने गहलोत को अभी तक भी संगठन में कोई दायित्व नहीं दिया है। इस वजह से गहलोत नाराज बताए जाते हैं। यही वजह है कि गहलोत ने अपने समर्थकों को खुला छोड़ दिया है। जिन कांग्रेस नेताओं ने गहलोत के शासन में सबसे ज्यादा सरकार का फायदा उठाया अब वे ही भाजपा शामिल होने को उतावले हो रहे हैं। ये नेता सरकार में रहते हुए भी गहलोत को ही अपना नेता मानते थे। शांति धारीवाल ने तो मंत्री रहते हुए सार्वजनिक तौर पर कहा था कि उनके लिए अशोक गहलोत ही हाईकमान है। यह बात अलग है कि गहलोत ने जिन सचिन पायलट को गद्दार धोखेबाज और मक्कर कहा उन पायलट का एक भी समर्थक कांग्रेस नहीं छोड़ रहा है। पायलट के समर्थक विधायक और नेता अभी भी पूरी तरह कांग्रेस के साथ खड़े हैं। सूत्रों के अनुसार यदि कांग्रेस हाईकमान ने अशोक गहलोत को राजनीतिक दृष्टि से संतुष्ट नहीं किया तो आने वाले दिनों में गहलोत समर्थक कई नेता भाजपा में शामिल हो जाएंगे। Post navigation नारनौल के समीप कोरियावास में निर्माणाधीन राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय, का नाम महर्षि च्यवन रखा जाएं: श्री गौड़ ब्राह्मण सभा महेंद्रगढ़ जिले के संजय यादव राज्यसभा के लिए निर्विरोध निर्वाचित