कमलेश भारतीय

दसवाँ रंग आंगन नाट्योत्सव कल बाल भवन में रोहतक से आई रंग मंडली ‘हरियाणा इंस्टिट्यूट ऑफ परफार्मिंग आर्ट्स’ द्वारा प्रस्तुत ‘अंधेर‌नगरी’ व राखी जोशी के ‘आओ मन की गांठें खोलें’ की प्रस्तुतियों के साथ संपन्न हो गया ।

‘अंधेर नगरी’ का निर्देशन हरियाणा के प्रसिद्ध रंगकर्मी विश्व दीपक त्रिखा ने किया और यह हास्य ही नहीं व्यंग्य नाटक भी है । इसके लेखक हैं भारतेंदु हरिश्चंद्र, जिनके नाम से हिंदी साहित्य में वह पूरा समय ‘भारतेंदु युग’ कहलाता है और उन्होंने नयी विधाओं में लेखन की शुरुआत की, जिनमें नाटक विधा भी एक है । यह नाटक भारतेंदु हरिश्चंद्र की अपने समय पर चोट थी तो अब वरिष्ठ रंगकर्मी विश्व दीपक त्रिखा ने भी इसमें अपने समय पर चोट मारने के लिए इसे चुना है और एक प्रकार से इसकी आत्मा तो जस की तस रखी है लेकिन इसको एक घंटे तक फैलाने के लिए काफी कल्पना की उड़ान भरी है । इस नाटक में इनके बहुचर्चित नाटक ‘गधे की बारात’ जैसी शुरुआत देखकर भ्रम होने लगता है कि कहीं वही नाटक तो नहीं ! पर यह नया नाटक है और ‘गणेश वंदना’ पुरानी है । ‌

नाटक अपने रंग में आने से पहले काफी डांस प्रस्तुत करता है, यहाँ तक कि चौपट राजा भी चाइनी सुंदरी की डांस आइटम गर्लदेखकर अपनी थकान मिटाता है और अंधेर नगरी में तो जैसे हर दुकानदार डांस आइटम के साथ अपना सामान बेचता है ! इतनी लम्बी चौड़ी भूमिका के बाद कहीं जाकर नाटक अपनी आत्मा में प्रवेश करता है और हमारे वर्तमान समय और राजनीतिक हालातों पर चोट दर चोट करता है । जब चेले के गले में फांसी का फंदा पूरी तरह फिट आ जाता है तब गोवर्धन एक प्रकार से आज के दिनों में जी रहे आम आदमी का प्रवक्ता बन जाता है और सब तरह से कानूनों- नियमों की पालना करके भी फांसी का फंदा क्यों ! कोरोना और नोटबंदी को भी लपेटे में लिया है त्रिखा ने । अंधेर नगरी के चौपट राजा का तो अंत हो गया, सवाल यह है कि यह संदेश कहां तक पहुंचा पाने में सफल हुए विश्व दीपक त्रिखा ! इतने डांस और आत्मा में प्रवेश करने में देर या चूक तो नहीं गये त्रिखा ! यह सोचने की जरूरत महसूस होती है ।

गोवर्धन की भूमिका में अविनाश सैनी खूब जंचे और अपने अभिनय व भाव भंगिमाओं से खूब हंसाया ! इसमें अन्य पात्रों की भूमिकाओं में सुरेंद्र शर्मा, अनिल शर्मा, उर्वशी, समीर, मनीष खरे आदि ने भी अपनी छाप छोड़ी। सबसे ज्यादा छाप छोड़ी सुभाष नगाड़ा ने अपने नगाड़े के साथ, जिसने अकेले नगाड़े से ही नाटक का संगीत संभाल‌ लिया! विश्व दीपक त्रिखा ने रंगकर्मियों को आने वाली आर्थिक कठिनाइयों का जिक्र करते मनोज बंसल की तारीफ की कि यदि ऐसे व्यक्ति सभी रंगकर्मियों को मिल जायें तो क्या बात है हमारे!

खैर, राखी जोशी के ‘ आओ मन की गांठें खोलें’ की प्रस्तुति के साथ दसवाँ रंग आंगन नाट्योत्सव संपन्न हो गया ! राखी जोशी की मेहनत झलकती है और नयापन भी बनाये रखा !

बहुत याद आयेंगे नाटक – वेलकम ज़िंदगी और ‘अग्ग दी इक बात’ और फिर अगले साल तक इंतज़ार ! आज से बाल भवन फिर खाली खाली!

error: Content is protected !!