भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। भारत विश्व के बड़े प्रजातंत्र में माना जाता है परंतु वर्तमान में राजनीति की दिशा यह सोचने पर विवश कर रही है कि क्या हम वास्तव में प्रजातंत्र में जी रहे हैं? यह प्रश्न मन में क्यों आया, उसका कारण है कि देखा जा रहा है राजनीति में वही व्यक्ति उन्नति कर रहे हैं, जो किसी शीर्ष राजनेता की जी-हुजूरी करते हैं। मेरा अर्थ किसी दल विशेष से नहीं है। भाजपा हो, कांग्रेस हो या आप ये राष्ट्रीय पार्टियां हैं और इनकी स्थिति भी यही है और प्रादेशिक दल तो गठन के समय से ही व्यक्ति विशेष पर आधारित होते हैं। अत: उनकी बात करना तो निरर्थक है।

सत्तासीन दल भाजपा की बात करें तो यह सब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुण गाते हैं। यदि मैं गलत नहीं सोच रहा तो यूं कहें कि इन्होंने अपनी बुद्धि का प्रयोग बंद कर दिया है और उनके कथनों को उचित ठहराने के लिए बुद्धि का प्रयोग करते हैं। और यूं कहें कि वही व्यक्ति आगे बढ़ रहे हैं तो शायद अनुचित न होगा।

अब कांग्रेस की बात करें तो हरियाणा कांग्रेस में भी स्थिति यही है कि हरियाणा में जो हुड्डा के दरबारी हैं, वे टिकट या पद के दावेदार माने जा रहे हैं। दरबारी शब्द मैं इसलिए प्रयोग कर रहा हूं कि पत्रकार के नाते हर पार्टी के नेताओं से बात करने का अवसर प्राप्त होता है तो उनका कथन यही होता है कि यदि हम ऐसा करेंगे तो हमें आगे लाभ होने की संभावना है। यदि सच पर चलेंगे तो राजनीति में किसी मुकाम पर पहुंचना संभव नजर नहीं आता।

वर्तमान समय में जनसंवाद की बड़ी चर्चा है। सत्तारूढ़ दल भाजपा भी जनसंवाद कर रही है तो उसकी तारीफों के पुल बांध रही है। इसी प्रकार कांग्रेस भी जनसंवाद कर रही हैं और कह रहे हैं कि हम जनता की बातें जानना चाह रहे हैं। तो कोई यदि इनसे पूछे कि जो भी जनप्रतिनिधि है, वे चुनाव लडऩे के समय से ही चीख-चीखकर वादे करते हैं कि हम हर समय जनता के बीच रहेंगे। कोई कभी भी हमसे मिल सकता है, हमारे दरवाजे 24 घंटे जनता के लिए खुले हैं। कोई यदि इनसे पूछे कि जब इनका पहले ही वादा यह था कि हर समय हम जनता से संवाद स्थापित रखेंगे तो अब जनसंवाद की बात करना क्या स्वयं में यह नहीं सिद्ध करता है कि आप अपने पुराने किए हुए वादे नहीं निभा पाए। पर इनका कहना है कि हमें अपने शीर्ष नेताओं के आदेश का पालन करना है तभी हमारी आगे की राह सुगम होगी।

ऐसी अनेक बातें हैं जिक्र करेंगे। वर्तमान में तो यही कहना चाहूंगा कि जनता को स्वयं जागृत होना होगा और अपनी कसौटी पर बिना किसी दबाव के इन राजनैतिक दलों के क्रिया-कलापों पर मनन कर आगामी रणनीति तय करनी होगी।