-कमलेश भारतीय इधर तीन चार दिन आप सबसे मुलाकात न कर सका! आपने नये कथा संग्रह- सूनी मांग का गीत के फाइनल प्रूफ देखने के काम में व्यस्त हो गया! चलिए आपको फिर जालंधर लिए चलता हू। आज कुछ और मित्रों से आपका परिचय करवाता हूँ और कुछ साहित्यिक संस्थाओं से जुड़ी बातें भी करूंगा! पंजाब साहित्य अकादमी और बड़े भाई सिमर सदोष की यादें पहले आपको सुना चुका हूँ। आज अवतार जौड़ा और हम सभी मित्रों की संस्था विचारधारा की बात करूँगा, जिसकी बैठक हर माह में एक बार होती थी और इसमें भी दिल्ली से रमेश उपाध्याय,आनंद प्रकाश सिंह जैसे अनेक वरिष्ठ रचनाकारों को विशेष तौर पर आमंत्रित किया जिससे कि हमें न केवल अपने विचार बल्कि विचारधारा को समझने का अवसर मिल सके। यानी मीरा दीवानी की तरहसंतन डिग बैठि केमैं मीरा दीवानी हुई! अपने से ज्यादा अनुभवी रचनाकारों से सीखने समझने की कोशिश रही। मुझे अपनी एक कहानी -देश दर्शन का पाठ करने का सुअवसर मिला था और वहाँ मौजूद मित्र व उन दिनों ‘लोक लहर’ पंजाबी समाचारपत्र से आये सतनाम माणक ने वह कहानी तुरंत मांग ली जिसे उन्होंने पंजाबी में अनुवाद कर अपने समाचारपत्र में प्रकाशित किया! इस तरह समझ लीजिये कि हम अगर इकट्ठे बैठ कर कुछ विचार विमर्श करते हैं तो हमारी समझ बनती है और नयी राहें खुलती हैं। आज सतनाम माणक जालंधर से निकलने वाले अजीत समाचारपत्र में संपादक हैं और बीच बीच में उनकी ओर से कुछ विषयों पर लिखने का न्यौता आ जाता है। पंजाबी अजीत में भी मेरी रचनायें आज भी प्रकाशित होकर आती हैं जिन पर फोन नम्बर होने के चलते पंजाब से अनेक मित्रों की प्रतिक्रिया सुनने को मिलती है। इस तरह जालंधर से जुड़े रहने का अवसर सतनाम माणक बना देते हैं। आगे मुझे जनवादी लेखक संघ की याद है जिसके अध्यक्ष प्रसिद्ध आलोचक व सौंदर्य शास्त्र के लिए जाने जाते डाॅ रमेश कुंतल मेघ थे और यही प्रिंसिपल रीटा बावा से मुलाकातें हुईं। मुझ जैसे नये रचनाकार को भी इसकी कार्यकारिणी में स्थान मिला! इसमें एक खास विचारधारा से जुड़े साहित्य पर आयोजन किये जाते! इसमें प्रसिद्ध आलोचक डाॅ शिव कुमार मिश्र की कही बात आज भी स्मृतियों में एक सीख की तरह गांठ बांध रखी है कि प्रेमचंद ऐसे ही प्रेमचंद नहीं हो गये, उन्होंने अपने समय की खासतौर पर किसान और गांव की समस्याओं को गहरे समझ कर गोदान जैसा बहुप्रशंसित उपन्यास लिखा जो विश्व की 127 भाषाओं में अनुवादित हुआ। प्रेमचंद ने बहुत सरल भाषा में बड़ी बातें कही हैं और इस तरह कठिन को सरल बनाना बहुत ही मुश्किल काम है। यह भी कहा कि काले ब्लैक बोर्ड पर सफेद चाॅक से ही कोई नयी इबारत लिखी जा सकती है यानी लेखक काले समाज को अपनी कलम से कल्याणकारी बना देता है! कितनी बातें सीखने समझने को मिलतीं ! कुछ समय पूर्व ही पंचकूला में डाॅ रमेश कुंतल मेघ ने आखिरी सांस ली और रीटा बावा को महाविद्यालय में मिले आवास में बड़ी बेरहमी से मौत के घाट सुला दिया गया। वे एक बार हिसार के फतेह चंद कन्या महाविद्यालय यूजीसी की टीम की सदस्यता के रूप में आई दी तब प्रिंसिपल डाॅ शमीम शर्मा ने मुझे बुलाया था और इस तरह वर्षों बाद जनवादी लेखक संघ के दो पुराने साथी मिल पाये थे! आज के लिए शायद इतना ही काफी! वे विचार विमर्श के ताप के ताये हुए दिन आज भी याद हैं! 9416047075 Post navigation “मुहम्मद रफी तू बहुत याद आया…”वानप्रस्थ में कार्यक्रम पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा 17 जनवरी को हिसार की नई सब्जी मंडी से शुरू करेंगी कांग्रेस जनसंदेश यात्रा