…अजीत सिंह

हिसार। जनवरी 07 – महान गायक मुहम्मद रफी के जन्मशताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में वरिष्ठ नागरिकों की संस्था वानप्रस्थ में उन्ही के अमर गीतों द्वारा उन्हें याद किया गया।

आज के वरिष्ठ नागरिकों की जवानी का वक्त साठ और सत्तर के दशक का दौर था और यही वक्त फिल्म संगीत के उभरते गायक मोहम्मद रफी के गायन के ऊरूज का था।

दिसंबर 1924 में अमृतसर ज़िले में जन्में मुहम्मद रफ़ी करीब 40 साल के संगीत जीवन के बाद केवल 56 साल की उम्र में 31 जुलाई 1980 को इस दुनिया को अलविदा कह गए। अपने पीछे वे हजारों फिल्मी गीतों का अनमोल खजाना छोड़ गए जो रहती दुनिया तक उन्हें जिंदा रखेगा।

वानप्रस्थ के अनेक सदस्यों ने न केवल रफी के गीत गाए बल्कि उनके जीवन से जुड़े अनेक किस्से भी सुनाए।

मुख्य प्रस्तुति प्रो रामकुमार सैनी की रही जो प्रदेश के जाने माने गायक हैं। उन्होंने कुछ फिल्मों में भी गीत गाए हैं।

प्रो सैनी ने शुरुआत “चेहरे पे गिरी जुल्फें, कहदो तो हटा दूं मैं, गुस्ताखी माफ”… गीत से की और फिर एक के बाद एक शानदार गीतों की प्रस्तुति कराओके आर्केस्ट्रा की धुन पर दी कि श्रोता वाह वाह ही करते रहे। गीतों की कुछ और बानगी देखिए:

“जब मोहब्बत जवान होती है,
हर अदा इक जबान होती है….
“ये जुल्फ अगर खुल के बिखर जाए तो अच्छा, इस रात की तक़दीर संवर जाए तो अच्छा।
वैसे तो तुम्ही ने मुझे बर्बाद किया है,
इल्जाम किसी और के सिर जाए तो अच्छा….”
“चेहरे पे गिरी जुल्फें, कह दो तो हटा दूं मैं, गुस्ताखी माफ,
एक फूल तेरे जुड़े में कह दो तो लगा दूं मैं, गुस्ताखी माफ….”

प्रो सैनी ने अंतिम प्रस्तुति फिल्म मेरा नाम जोकर के इस मर्मस्पर्शी गीत के साथ दी ,

“सदक़े हीर तुझ पे हम फ़क़ीर सदक़े,
तुझ से लूट कर तेरे ही द्वार आये,
तू तो फूलो की सेज पे जा बैठी
मेरे हिस्से में राहों के खार आये….”

प्रो सैनी के गीतों के बीच बीच में वानप्रस्थ के सदस्यों ने भी मोहम्मद रफ़ी के जीवन से जुड़े कई प्रसंग सुनाए व गीत पेश किए।
कार्यक्रम की संचालक वीना अग्रवाल ने मुहम्मद रफी के प्रति आनंद बक्शी के श्रद्धांजलि शब्दों को दोहराते हुए कहा,

*ना तुझ सा फनकार तेरे बाद आया, मोहम्मद रफी तू बहुत याद आया,
सुरों की सुरीली वो परवाज तेरी,
बहुत खूबसूरत थी आवाज़ तेरी,
ज़माने को जिसने दीवाना बनाया,
मोहम्मद रफी तू बहुत याद आया।”

प्रो शामसुंदर धवन व उनकी पत्नी कमल धवन ने एक युगल गीत पेश किया,

“अच्छा जी मैं हारी, चलो मान जाओ ना..”
प्रो सुरजीत जैन ने रफी द्वारा गई गई गुरु गोविंदसिंह की रचना पेश की,
“मित्र पयारे नू, हाल मुरीदान दा कहना…”

प्रो राजपाल व प्रो पुष्पा खरब दंपति ने गीत पेश किया, “मुझे प्यार की जिंदगी देने वाले, कभी गम न देना खुशी देने वाले…”

डॉ महासिंह राणा ने गाइड फिल्म का गीत प्रस्तुत किया, “दिन ढल जाए, हाय रात ना जाए…”

इनके इलावा प्रो एस के माहेश्वरी, डॉ आशा क्वात्रा, करतार सिंह, प्रेम केडिया, एम एम गांधी, योगेश सुनेजा व दूरदर्शन हिसार के पूर्व समाचार निदेशक अजीत सिंह , सहित सदस्यों ने भी रफी के गीत पेश किए।

सभा का आलम यह था कि जो भी गायक रफी का कोई गीत गाने लगता, श्रोता भी साथ ही गाने लगते। वानप्रस्थ के संयुक्त सचिव प्रो आर के जैन ने बताया कि इसी तरह के यादगारी कार्यक्रम आगे भी आयोजित किए जाएंगे।

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