छठ पर्यावरण व भाईचारा सौहार्द को बढ़ावा देने बालों में से एक पर्व है: जायसवाल

मारुतीकुंज सहित ग्रुरूग्राम के चालीस जगहों पर तैयारी

ई.आर.के.जायसवाल

ग्रुरूग्राम – छठ पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिन्दू पर्व है। सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। वहीं देश के अन्य राज्यों सहित विदेशी लोग भी आस्था व मन्नत के साथ-साथ छठ पुजा में शरीक होने लगें हैं। बिहार में हिन्दुओं द्वारा मनाये जाने वाले इस पर्व को इस्लाम सहित अन्य धर्मावलम्बी भी मनाते देखे जाते हैं। धीरे-धीरे यह त्योहार प्रवासी भारतीयों के साथ-साथ विश्वभर में प्रचलित हो गया है। वहीं पर्यावरणविदों का दावा है कि छठ सबसे पर्यावरण-अनुकूल हिंदू त्यौहार है साथ ही साम्प्रदायिक सौहार्द व भाईचारा को बढ़ावा देने बालों से एक पर्व है।

शुक्रवार से नहाय-खाय के साथ आरंभ हुए लोक आस्था के इस चार दिवसीय छठ महापर्व ब्रतियो के उत्साह के साथ शूरू हो चुकी है। वहीं शनिवार कि शाम सभी व्रती सपरिवार के साथ खरना कि पुजन अपने-अपने घरों में किया। ग्रुरूग्राम के पूर्वांचली संगठनो के द्वारा मारुतीकुंज सहित लगभग चालीस छठ घाटों पर तैयारी कि गई है, वहीं श्रधालुओं द्वारा अनेकों सोसाइटी के प्रांगण में तैयारी किया गया है। उन्नीस नवंबर को संध्या काल तथा बीस नवंबर को प्रातः काल को सूर्य को अर्घ्य देने के साथ छठ पूजा का समापन होगी ।

आस्था है कि जो छठ पर्व पर भगवान सूर्य और छठी माता की पूजा- अर्चना पूरे विधि विधान से करते हैं, उन्हें षष्ठी देवी संतान की प्राप्ति, संतान की दीर्घायु, संतान की कुशलता प्राप्त होती है। हिन्दु समाज में जब बच्चा जन्म लेता है और बच्चे के जन्म के छठे दिन मनाई जाने वाली छठी पर भी षष्ठी देवी की ही पूजा की जाती है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, छठी मैईया बच्चों को बीमारियों और समस्याओं से बचाती हैं और उन्हें लंबी उम्र और अच्छा स्वास्थ्य देती हैं। किंवदंतियों के अनुसार, छठ पूजा प्रारंभिक वैदिक काल से चली आ रही है, जहां ऋषि कई दिनों तक उपवास करते थे और ऋग्वेद के मंत्रों के साथ पूजा करते थे। छठ पूजा को लेकर कई कथाएँ प्रचलित हैं, उनमें से एक कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गये, तब श्री कृष्ण द्वारा बताये जाने पर द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। तब उनकी मनोकामनाएँ पूरी हुईं तथा पांडवों को उनका राजपाट वापस मिला। लोक परम्परा के अनुसार सूर्यदेव और छठी मइया का सम्बन्ध भाई-बहन का है।

छठ आस्था का महापर्व माना जाता है। माना जाता है कि इस पर्व का पालन करने से मन की हर मनोकामना पूरी होती है और परिवार में सुख-समृद्धि बरसती है। छठ पर्व को समृद्धि और पूर्णता की प्रतीक बताते है।

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