-शुभ वाटिका में सत्संग कार्यक्रम में कही यह बात

-श्रद्धालुओं से खचाखच भर गया शुभ वाटिका प्रांगण

गुरुग्राम। आनंमूर्ति गुरूमां ने फरमाया कि-शरीर है तो प्राण है, प्राण है तो श्वांसों का चलना है। इन्हीं श्वासों के साथ इंद्रियों का व्यवहार है। इस व्यवहार के पीछे मन की मंशा यह है कि हमारा मन सुख ढुंढता है। मन दुख से घबराता है और सुख पाना चाहता है। यही हमारे दुखों का कारण बन जाता है। यह बात उन्होंने गुरुवार से गुरू द्रोण की नगरी गुरुग्राम में शुरू हुई कथा में प्रवचन करते हुए कही। आनंदमूर्ति गुरूमां ने यहां शीतला माता रोड स्थित शुभ वाटिका में आयोजित सत्संग कार्यक्रम में अपनी मधुर, ओजस्वी वाणी से श्रद्धालुओं के समक्ष प्रवचन दे रहीं थी। पहले दिन मुख्य अतिथि के रूप में डीसीपी यातायात विरेंद्र विज पहुंचे और गुरूमां से आशीर्वाद लिया।

इससे पूर्व मंच संचालन करते हुए आनंदमूर्ति गुरूमां आश्रम के ट्रस्टी बोधराज सीकरी ने बताया कि वेदान्त के वचनों की ज्ञाता गुरूमां अपने अनुभव एवं आत्मज्ञान के उपहारों को जनमानस से सांझा करती हैं। गुरूमां दयालुता की प्रतिमूर्ति हैं। पर्यावरण संरक्षक हैं। शांति और सद्भाव की राजदूत हैं। मानवीय मूल्यों की संस्थापक हैं। बेटियो के लिए मां का वात्सल्य हैं।

अपने प्रवचनों में आनंदमूर्ति गुरूमां ने कहा कि जब आप तुलना करने लग जाते हैं तो चिंता का कारण बन जाता है। यह मन को दुखी करने का बहुत बड़ा कारण बन जाता है। भारत के गुरूओं को सब कुछ अदा करना पड़ता है। हम आचार्य भी हैं। ज्योतिष आचार्य भी हैं। मोटिवेशनल स्पीकर भी हैं। मनोचिकित्सक भी हैं। आयुर्वेदाचार्य भी हैं। योग वेदांत हमारा मुख्य काम है। शास्त्रों, भगवद्गीता, वेदों, कबीर की बाणी, संतों की बाणी, गुरू ग्रंथ साहिब से अवगत कराना है। गुरूमां ने बताया कि श्रीमद् भागवत में कलयुग का लक्षण बताया गया है। समय से पहले दैहिय सुख की इच्छा आनी शुरू हो जाएगी। ऐसा हो रहा है। प्रदूषित भोजन से शारीरिक विकारं आ रहे हैं। भोजन में पेस्टिसाइड के रूप में जहर परोसा जा रहा है। वह फसलों में डाला जा रहा है। इसके कारण खाद्य पदार्थ दूषित हो गए हैं। दूषित भोजन के सेवन से कन्याओं में रजस्व की उम्र कम होती जा रही है। ऐसे परिवर्तन लडक़ों के शरीर में भी हो रहे हैं। जैसे शरीर बदलता है, वैसे मन बदलता जाता है। जो इच्छाएं 16 साल की आयु में आनी चाहिए थी, वह कम उम्र में आ रही हैं।

मोबाइल फोन के कारण फैल रही नकारात्मकता पर गुरूमां ने कहा कि फोन को पढ़ाई के लिए उपयोग में लिया जाए तो सही है, लेकिन आज फोन का दुरुपयोग हो रहा है। इसके गलत नतीजे निकल रहे हैं। उन्होंने इसमें मां-बाप का भी योगदान बताया। मां-बाप अपनी पार्टियों के लिए बच्चों को छोडक़र चलते जाते हैं। बच्चे क्या कर रहे हैं, उन पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा। मोबाइल पर बच्चे वह सब देखते हैं जो उनको उस उम्र में नहीं देखना चाहिए और यहीं से समस्याएं शुरू हो जाती हैं। गुरूमां ने कहा कि मनुष्य की इच्छा सुख, प्रेम पाने की होती है। इसमें कोई बुराई नहीं है। पर इसका एक समय होता है। उन्होंने एक-दूसरे की तुलना के कारण आ रहे विकारों पर कहा कि तुलना करना सबसे बड़ी बीमारी है। अच्छी सूरत, अच्छे कपड़े, अच्छा घर, रुपये, जमीन-जायदाद की तुलना होती है। अब तो भाइयों के बीच भी यह तुलना होने लगी है। इसी चिंता का रोग हम अपने मन को लगा लेते हैं। यह सब भौतिक सुख हमारे जीवन में दुख पैदा कर रहे हैं। उन्होंने उदाहरण देकर कहा कि प्रकृति में हम देखें कि सूरजमुखी का फूल यह नहीं सोचता मैं कमल क्यों नहीं हूं। गुलाब यह नहीं सोचता ेिक वह कमल क्यों नहीं है। ऐसा इसलिए कि उसके पास बुद्धि नहीं है। हमें तो बुद्धि मिली है। यह बुद्धि हमें तुलना के लिए नहीं दी गई। हमारे बीच प्रतिस्पर्धा की हौड़ लगी हुई है। इस दौड़ ने अंधा बना दिया है।

भजन-बीत गए दिन भजन बिना रे, भजन बिना रे…के माध्यम से गुरूमां ने भगवान की भक्ति के लिए प्रेरित किया। जब जीवन में भजन नहीं होता, भोजन होता है। भोजन वह नहीं जो हम खाते हैं। भोजन वह भी है जो आंख से देखते हो। कानों से सुनते हो। नाक से सूंघते हो। जब विषयों का भोजन मन में चलता है। तुलना की बीमारी हो तो मन शांत नहीं रह सकता। इस चिंता के निवारण के लिए भोजन की जगह भजन को जगह दें। जब मन में भजन होने लगता है तो बहुत कुछ ठीक हो जाता है। गणमान्य व्यक्तियों में श्रीमती सुरेश सीकरी, श्रीमती पूजा खेतरपाल, जगदीश ग्रोवर महानगर संघ चालक, शिक्षाविद् डा. अशोक दिवाकर, अनिल यादव सह संयोजक स्थानीय निकाय प्रकोष्ठ भाजपा हरियाणा, शेखर तनेजा उद्योगपति, ओमप्रकाश कथूरिया चेयरमैन ओम स्वीट्स, समाजसेवी प्रमोद सलूजा एडवोकेट, सुभाष अरोड़ा बिल्डर, सुभाष ग्रोवर एडवोकेट, अशोक आर्य प्रधान श्री केंद्रीय आर्य सभा, एचएस चावला समाजसेवी, प्रदीप गोदारा समाजसेवी ने शिरकत की और गुरूमां का स्वागत, सत्कार किया।

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