भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। धनतेरस के दिन मुख्यमंत्री ने गुरुग्रामवासियों को वाटिका चौक पर अंडरपास की सौगात दी। उसी दिन व्यक्तिगत निमंत्रण पर पर्यावरण सचिव नवीन गोयल के यहां चाय पर भी पहुंचे।

नवीन गोयल की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार उस दौरान गुरुग्राम की स्थिति के बारे में भी चर्चाएं हुईं लेकिन यह स्पष्ट कुछ नहीं हुआ कि किन स्थितियों के बारे में चर्चा हुई। वर्तमान में तो गुरुग्राम सफाई और पर्यावरण की समस्याओं से जूझ रहा है। पता नहीं इस बारे में चर्चा हुई या नहीं?

उस चाय पर नवीन गोयल के साथ सीएसआर के वाइस चेयरमैन बोधराज सीकरी, जिला अध्यक्ष गार्गी कक्कड़, जिला उपाध्यक्ष महेश चौहान आदि उपस्थित थे लेकिन गैरउपस्थित होने वालों में संसदीय कमेटी की सदस्य डॉ. सुधा यादव और मुख्यमंत्री के ओएसडी जवाहर यादव का नाम विशेष चर्चा में है। बाकी भी भाजपा कार्यकर्ता और नेताओं की वहां अनुपस्थिति देखी गई। हां, आप नेता अभय जैन की उपस्थिति भी चर्चा में है।

इस बारे में अनेक भाजपाईयों से चर्चा हुई। कुछ जो समझ आया वह यह है कि कुछ का तो कहना था कि नवीन गोयल तो अपनी निष्ठाएं बदलते ही रहते हैं। कभी चौ. धर्मबीर के साथ होते हैं, कभी राव इंद्रजीत के तो कभी धनखड़ के चहेते होते हैं तो कभी सुधा यादव के लेकिन अब प्रदेश अध्यक्ष नायब सैनी के बनने के पश्चात उन्हें लगा कि नायब सैनी तो मुख्यमंत्री की छाया हैं। अत: पार्टी में अपना अस्तित्व कायम रखना है तो मुख्यमंत्री की शरण में जाना ही चाहिए। उसी प्रयास में यह कदम है।

कुछ प्रतिक्रियाएं बड़ी भिन्न सी आईं, जो विचित्र सी लगीं लेकिन विचित्र बात पाठकों से सांझा करनी चाहिए इसलिए लिख रहा हूं कि कहना था कि मुख्यमंत्री का शायद गुरुग्राम से चुनाव लडऩे का विचार बन रहा है और गुरुग्राम में वैश्य नेताओं में उमेश अग्रवाल या वर्तमान विधायक सुधीर सिंगला से उनका तालमेल दिखाई नहीं दे रहा है, जिसका प्रमाण है कि उमेश अग्रवाल तो पार्टी छोडक़र जा चुके हैं और विधायक सुधीर सिंगला भी अपने विधानसभा क्षेत्र में हुए मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में उपस्थित नहीं थे। यह तो वही जानें कि आमंत्रित नहीं थे या जाना उचित नहीं समझा।

तात्पर्य यह कि मुख्यमंत्री वैश्यों को अपनी ओर करने के लिए नवीन गोयल जो साथ आना चाहते हैं, के घर चाय पर चले गए परंतु बाजार में वैश्य समाज के लोगों से इस बो में बात की तो उनका कहना था कि हमारे स्थानीय वैश्य कम हैं, जो हम नेता के रूप में बाहर से आए हुए वैश्य को अपनाएंगे। अब यह तो समय ही बताएगा कि चुनाव के समय कौन चुनाव लड़ेगा और कौन किसके साथ आएगा। अब चर्चाएं तो चर्चाएं हैं, चलती ही रहती हैं। खैर आगे की चर्चाओं के बारे में फिर लिखेंगे।

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