गुस्ताख़ी माफ़ हरियाणा – पवन कुमार बंसल

गुरुग्राम – चुनावी बांड के माध्यम से प्राप्त फंडिंग के प्रकटीकरण (या गैर-प्रकटीकरण) के पक्ष और विपक्ष में लगभग सभी चीजें सार्वजनिक डोमेन में हैं, देने वाले और प्राप्तकर्ता की पहचान और उनके बांड को छोड़कर।

गुप्त “बंधन” भी एक उल्टा प्रश्न पूछता है; ऐसा क्यों है कि भारत में लोग गुप्त रूप से लोकतंत्र के लिए योगदान देना पसंद करते हैं? ऐसे देश हैं जहां लोग गर्व से और खुले तौर पर राजनीतिक दलों (जैसे अमेरिका में राजनीतिक कार्रवाई समितियों) को दान देने का दावा करते हैं, जो लोकतांत्रिक व्यवस्था के महत्वपूर्ण साधन हैं।

आख़िरकार लोकतंत्र जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण संरक्षण या बेघरों और अशक्तों की देखभाल करने जैसा ही एक सार्थक मुद्दा है l एक ईमानदार नागरिक को ऐसे मुद्दे से जुड़कर खुशी होगी। क्या ऐसे योगदान को कर छूट के लिए पात्र बनाने के पीछे यही सिद्धांत नहीं है? एक समाज के रूप में हम यह क्यों सोचते हैं कि जो लोग इसे पाते हैं वे अपना योगदान छिपाना चाहते हैं और हमारी राजनीतिक व्यवस्था इसका समर्थन क्यों करती है? समाज आत्ममंथन करे जबकि सुप्रीम कोर्ट गहराई से विचार करे ।

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