– सुरेश सिंह बैस “शाश्वत” कार्तिक अमावस्या के दिन सुख समृद्धि का पर्व दीपावली मनाया जाता है। इसकी तैयारी एक पखवाड़े पूर्व से शुरू हो जाती है। दीपावली पूरे पांच दिन चलती है जो धनतेरस से प्रारंभ होती है और भाई दूज के साथ समाप्त होती है। यह हिन्दुओं का मुख्य त्यौहार है इसको अब सभी धर्म के लोग मनाने लगे है। इसलिये इसको राष्ट्रीय पर्व की भी संज्ञा दी जाती है। दीवाली के पूर्व घर की साफ सफाई, रंग रोगन कर उसे झकाझक कर आकर्षक रूप दिया जाता है। नये कपड़े, पटाखे, मिठाईयां, लाई, बताशे की खरीदारी कर लक्ष्मी पूजा की तैयारी की जाती है। फिर दीवाली के दिन शाम होते ही चारो तरफ दीप की रौशनी अमावस्या की काली रात्रि को चीरती हुई जगमगा देती है। दीवाली पर्व का संबंध कई पौराणिक गाथाओं से भी जुड़ा हुआ है। लंकापति रावण को मारकर राम चौदह वर्षों के वनवास के बाद जब अयोध्या पहुंचते है तब अयोध्या वासियो ने उनका दीप जलाकर स्वागत किया था ! इसी दिन राजा बलि ने जब लक्ष्मीजी को बंदी बना लिया था तो, भगवान विष्णु ने वामन का रूप धारण कर उन्हें छुड़वाया था ! दीपावली के दिन नरकासुर भी मारा गया था! इसी दिन भारत के तीन महान विभूतियों महावीर स्वामी, स्वामी दयानंद सरस्वती और स्वामी रामतीर्थ ने अपने शरीर का त्याग किया। इन तीनों महानुभाव ने मनुष्यों को ज्ञान का प्रकाश दिया ! स्वामी रामतीर्थ का जन्म भी इसी दिन हुआ था ! स्वतंत्रता की अलाव जगाने वाली महारानी लक्ष्मी बाई ने अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते दीपावली के दिन ही अपने प्राणों की आहूति दे दी थी ! वहीं दीपावली कार्तिक अमावस्या के दिन आदि शंकराचार्य के निर्जीव शरीर पर पुनः प्राणों का संचार होने के कारण हिन्दुओं ने इस खुशी में दीपोत्सव मनाकर अपनी भावनाओं का प्रदर्शन किया ! भूदान आंदोलन के महान संत विनोवा भावे का निधन भी दीपावली के दिन हुआ था। भारत के ऐतिहासिक, धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक गतिविधियों में अनेकता में एकता के लिये दीपावली पर्व का बड़ा महत्त्व है। दीपावली सुख समृद्धि, रिद्धि-सिद्धि-बुद्धि का प्रतीक समझा जाता है। इसके दूसरे दिन अन्नकूट (गोवर्धन पूजा) का पर्व मनाया जाता है। लक्ष्मी को वैभव और धन की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। “लक्ष्यति इति लक्ष्मी” अर्थात लक्ष्मी वह है, जो स्वयं को लक्षित करती है। “लक्ष्मी सम्पत्ति -शौभ्यो” लक्ष्मी शोभा, संपत्ति प्रदायिनी है। लक्ष्मी वह शक्ति है जो हमारी समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। ये परिश्रमी व कर्मठ व्यक्ति को ही प्राप्त होती है आलसी को नहीं ! जो एकाग्रचित हो अपने कर्म में लगा रहता है, लक्ष्मी उसी पर प्रसन्न रहती है। आलसी लोगों को लक्ष्मी वरदान नहीं शाप देती है, चाहे वह लक्ष्मी की नित्य प्रार्थना ही क्यों न करते हों ! उनकी वास्तविक प्रार्थना तो परिश्रम ही है। वे इसी की भेंट मांगती है। मानस मर्मज्ञ तुलसीदास ने कहा है कि कामधेनु और कल्पतरुण चित्र टांगने से ही कठिनाई दूर नहीं हो जाती ! चाणक्य ने भी कहा हैकि धन से ही धन की उत्पत्ति होती है। लक्ष्मी मिथ्यावादी, कृतघ्न, दुशील, अविश्वासी, चिन्ताशील, भयग्रस्त, पापी, ऋणी आदि के घर निवास नहीं करती ! विष्णु स्मृति में लक्ष्मी स्वयं कहती है कि. मेरा निवास धर्म में परायण, साधु प्रकृति वाले मनुष्य, आचार के सेवी में, नित्यशास्त्र में विनीत वेश में, अच्छे वेश में, उमनशील में, मलरहित में, मिष्ट भोजन में, अतिथियों के भोजन में, अतिथियों की पूजा करने वालों में, अपनी स्त्री में संतुष्ट रहने वालों, धर्म में रत रहने वालों में, अत्यधिक भोजन न करने वालों में, सत्य में स्थिर रहने वालों में, प्राणियों का भला चाहने वालों में, क्षमाशील में, क्रोध रहित में, अपने कार्य में कुशल व्यक्ति में, सर्वथा नम्रभावी में, पवित्रता और मृदु वचन कहने वाली नारियों में, स्वच्छ घर रखने वालों में, जितेन्द्रिय, कलरव रहित, अलोलुप, दयालु और धार्मिक लोगों के यहां ही मैं निवास कर सकती हूँ।” वेद अभ्यासी ब्राम्हणों, धर्मप्रिय क्षत्रियों, कृषि से मन लगाने वाले वैश्यों और सेवारत शूद्रों में लक्ष्मी रहती है। जिस तरह लक्ष्मी सदैव विष्णु के पास निवास करती है उसी तरह उसका अपेक्षित साधक भी वैसा ही सौभाग्य प्राप्त कर सकता है। दीपावली का धार्मिक महत्त्व ही लक्ष्मी पूजा से जुड़ा हुआ है। रात्रि के प्रथम पहर में, घर के पूजा गृह में बेदी बनाकर या चौकी अथवा पाटे पर अक्षतादि से अष्ट दल बनायें और उस पर लक्ष्मीजी की स्थापना करें। साथ में गौरी गणेश, इन्द्र और कुबेर की स्थापना कर यथा विधि से पूजा करें। अंत में इस मंत्र का जाप कर लक्ष्मी का आव्हान करें : “नमस्ते सर्व देवानां वरदासि या गतिस्त्वत् प्रन्नानां सा हरिप्रिया मेभूयात्वदर्चनात् । । पश्चात” इंद्र तथा कुबेर एवं श्री गणेश की भी विधिपूर्वक प्रार्थना करें। दीपावली जीवन में सौंदर्य पक्ष का उत्थान भी करती है। घरों की सजावट से हम इस भावना को प्रगट करते हैं। इस अवसर पर खरीदारी करने से संपत्तियों का राष्ट्र में वितरण होता है। यह लक्ष्मी की वास्तविक पूजा है जो राष्ट्र को समृद्ध बनाने में पूर्णतः सहायक होती है। दीपावली और राष्ट्र की ‘समृद्धि की देवी को शतशः प्रणाम । Post navigation नरक चतुर्दशी का व्रत अक्षम्य पाप से मुक्ति दिलाता है मिलिए गुरूग्राम के जतिंदर चोबे से जिन्होंने शर्लक होम्स को पछाड़ दिया।