भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा का 76वां जन्मदिन 15 सितंबर को था। 14 सितंबर को उनकी ओर से प्रेस विज्ञप्ति मिली, जिसमें लिखा था कि जन्मदिन की पूर्व संध्या पर ब्राह्मण समाज ने दिया हुड्डा को आशीर्वाद। मन में तभी प्रश्न आया कि ब्राह्मण समाज जो कभी एकजुट नहीं हुआ, उसने उनके निवास पर जाकर उनको आशीर्वाद दिया, क्या यह संभव है? इसी पर कुछ लोगों से बातचीत की और मनन किया तो जो कुछ निष्कर्ष सामने आया, वह कहता हूं।

हरियाणा में लगभग 12 से 14 प्रतिशत ब्राह्मण हैं और यदि उनमें जांगड़ ब्राह्मण आदि को मिला लिया जाए को उनका प्रतिशत 17-18 प्रतिशत हो जाता है। हरियाणा में एक करोड़ 40 लाख वोटर हैं और उस अनुमान से 18 से 20 लाख ब्राह्मण होंगे। उसमें ढ़ाई हजार ब्राह्मणों की संस्था और वह भी बंटी हुई यदि समर्थन देती है तो उसे कैसे ब्राह्मणों का समर्थन माना जाएगा, यह समझ से परे है?

विज्ञप्ति में लिखा कि विप्र फाउंडेशन और कार्यकारी अध्यक्ष जितेन्द्र भारद्वाज ने इस कार्यक्रम का आयोजन किया था और वहां पहुंचने वालों में जैसा कि विज्ञप्ति में लिखा था पार्टी विधायक नीरज शर्मा और कुलदीप वत्स, कुलदीप वशिष्ठ, पूर्व विधायक राधेश्याम शर्मा, सुमन शर्मा, राजकुमार शर्मा के नाम लिखे थे और ये सभी पुराने कांग्रेसी कार्यकर्ता हैं या दूसरे शब्दों में यह कहें कि ये भूपेंद्र सिंह हुड्डा के समर्थक हैं तो शायद अनुचित न होगा।

विप्र फाउंडेशन में लगभग ढ़ाई हजार सदस्य हैं और इसके सदस्यों की सर्वाधिक संख्या गुरुग्राम है। भाजपा के रामबिलास शर्मा, जीएल शर्मा और अनेक भाजपाई भी इस संस्था के सदस्य हैं। संस्था के सदस्यों से बात की तो उनका कहना था कि हमारे इस बारे में कोई बात नहीं हुई और न हम हुड्डा साहब का समर्थन कर रहे हैं।

अकेले गुरुग्राम में ब्राह्मणों की 31 संस्थाएं हैं। अब आप अनुमान लगा लीजिए कि ऐसी स्थिति में विप्र फाउंडेशन का कितना स्थान है और विप्र फाउंडेशन भी आधी-अधूरी है। ऐसे में यह कहना कि ब्राह्मण समाज ने हमें घर आकर समर्थन दे दिया, कितना उचित है? अर्थात .08 प्रतिशत ब्राह्मण भी संस्था में नहीं हैं और उसके समर्थन से ब्राह्मणों का आशीर्वाद हो गया।

भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अपने जीवन के 76 वर्ष पूरे कर लिए हैं। 10 वर्ष मुख्यमंत्री भी रहे हैं और उसके पश्चात भी कांग्रेस की ओर से एकछत्र नेता बने हुए हैं। अत: ऐसी स्थिति में यह तो माना ही जा सकता है कि वह राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं। अत: लगता है कि ब्राह्मण समाज को प्रभावित करने के लिए यह खेल खेला गया है लेकिन लगता ऐसा है कि इसका प्रभाव उल्टा पड़ सकता है। यह मैं इस आधार पर कह सकता हूं कि मैंने कुछ स्थापित ब्राह्मणों से बात की तो उनका कहना था कि जन्मदिन की बधाई देना अलग बात है और आशीर्वाद और समर्थन देना अलग बात है। ब्राह्मण स्वाभिमानी होते हैं। वे बिन बुलाए किसी के घर जाकर आशीर्वाद देने की परंपरा पर विश्वास नहीं रखते। यह सब भूपेंद्र सिंह हुड्डा और जितेंद्र भारद्वाज का मिलकर ब्राह्मणों को बरगलाने का काम है परंतु ब्राह्मण समाज इतना नासमझ भी नहीं कि ऐसी बातों से भ्रमित हो जाए।

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