कहा: असल भक्ति माँ बाप की सेवा है 

चरखी दादरी/रूपावास जयवीर सिंह फौगाट

07 सितंबर, सत्संगी होने का अर्थ केवल भक्ति करना ही नहीं है अपितु सच्चा इंसान होना है। भक्ति का अर्थ ध्यान साधना ही नहीं है। भक्ति का अर्थ तो जीवन में परोपकारी होना, नेक दिल होना, सच्चा होना है। समाज सुधारना चाहते हो तो सबसे पहले अपने आप को सुधारो। नेक कार्य स्वयं के घर से ही प्रारम्भ होते हैं। सत्संगी हो तो सबसे पहले चरित्रवान बनो। गुणग्राही बनो। दुनिया को सुधारने से पहले अपने बच्चों को सुधारो। आप अपने माँ-बाप की सेवा करोगे तभी आपके बच्चे आपकी सेवा करेंगे। यह सत्संग वचन परमसन्त सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने सिरसा जिला के रूपावास गांव में स्थित राधास्वामी आश्रम में फरमाए। हुजूर ने साध संगत को जन्माष्टमी की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि आज अवतारी पुरुष श्री कृष्ण जी का जन्म हुआ था। जब जब धर्म की हानि होती है तब तब परमात्मा देह धार कर प्रकट होते हैं। कलयुग में सन्त के रूप में परमात्मा ने देह धारी और जीवो को चेताने का काम किया।

उन्होंने कहा कि जब जब धर्म का प्रचार होता है बुराइयों का अंत होता है। सत्संग इंसान को अच्छे बुरे में फर्क करना सिखाता है। आज के युग में तो सत्संग ही इंसान का एकमात्र सहारा है। सत्संग का एक वचन ही आपके जीवन को बदल देता है। सत्संग इंसान के जीवन को सँवारता है लेकिन गुरु पूरा होना चाहिए। भोले जीव ये मान लेते हैं कि सतगुरु एक बार धारण करने के बाद कभी छोड़ना नहीं चाहिए। मैं कहता हूं कि जो गुरु धर्म को व्यापार बनाता है उसे छोड़ने में एक पल भी ना लगाओ। अब सवाल ये है कि पूरा गुरु कौन। पूरा गुरु वो जो आपके भर्म मिटा दे। आपकी कामनाओ को, बुरे विचारों को मिटा दे। जो स्वयं कामनाओ में डूबा हुआ है वो दुसरो को क्या उबारेगा। पूरा सतगुरु निज स्वार्थ से परे होता है। वो परमार्थ और परोपकार को ही अपना ध्येय बनाता है। जो दया और प्रेम का सागर है वो सतगुरु है।

गुरु जी ने फरमाया कि भक्ति बिना दया और प्रेम के संभव नहीं है। ध्यान भी तभी लगेगा जब हृदय साफ होगा। धर्म दिखावा नहीं है। धर्म अपने प्रत्येक कर्तव्य का निष्ठा से निभाना है। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि मत भूलो कि आम के पेड़ के आम ही लगेंगे और बबूल के कांटे। जैसे आपके कर्म होंगे वैसे ही आपको फल मिलेंगे। गुरु सबको एक दृष्टि से देखते हैं लेकिन फायदा वही उठा पाता है जो वचन में रहना सीख लेता है। उन्होंने फरमाया कि ये हमारा पहला जन्म हो ये जरूरी नहीं है लेकिन हम अपने कर्मो से इसे आखिरी जरूर बना सकते हैं। गुरु की शरणाई लेकर अपने आप को भले कर्मो में लगाओ और इस आवागमन से छुटकारा पा लो। हुजूर ने कहा कि हमारा मन सबसे बड़ा चोर है ये सतगुरु रूपी थानेदार के ही काबू आता है। मन मे मलिनता के साथ आप अच्छाई के मार्ग पर नहीं चल पाओगे। गुरु मन को बुराई से निकाल कर अच्छाई के रास्ते पर लाता है। परमात्मा किसी को कर्म करने से नहीं रोकता। सबको कर्म करने की आजादी है लेकिन वो मुजरा सबका ले रहा है। गुरु महाराज जी ने कहा कि असल भक्ति माँ बाप की सेवा है। असल भगवान हमारे घरों में बैठे हैं यदि वो आपसे खुश हैं तो आपका इष्ट भी आपसे खुश हो जाएगा। नेकी को कभी मत त्यागो ओर नेकी वही कर सकता है जो हर पल नेक रहता है।

परोपकार तो फिर भी हर कोई कर सकता है लेकिन परमार्थ कोई बिरला ही कर पाता है। मत भूलो की दुनिया के नियम तोड़ोगे तो दुनिया का कानून ही सजा देता है लेकिन जो परमात्मा के नियम तोड़ता है उसे सजा भी परमात्मा ही देगा। जीव हत्या और दूसरों की आत्मा दुखा कर क्या हासिल कर लोगे। कोई अपना पेट चलाने के लिए किसी दूसरे जीव की जान कैसे ले सकता है। अगर लेता है तो वो इंसान नहीं पशु ही है। गुरु जी ने कहा कि दो नियम जीवन मे अपना लोगे तो सुख ही सुख है। गलती हो जाए तो तुरंत माफी मांग लो और किसी और से गलती हो जाये तो उसे तुरंत माफ कर दो। उन्होंने कहा कि सेवा वही कर सकता है जिसमें अभिमान नहीं होता। सेवा वो कर सकता है जो शिष्य हो। सेवा में सबसे उत्तम सेवा मानव सेवा है क्योंकि मानुष देह दुर्लभ प्राप्ति है। नर के रूप में साक्षात नारायण ही जन्म लेते हैं इसलिए नर सेवा ही नारायण सेवा है। दुसरो को हानि पहुचा कर आप अपने ही भविष्य में कांटे बोते हो। ये कांटे एक दिन आपको ही चुभेंगे। नेकी करना सीखो और नेकी करके भी उसे दरिया में डाल दो। नेकी के बदले में स्वार्थ की चाहना मत करो।

पूजा करो तो गुरु की करो क्योंकि गुरु से बढ़ कर कोई दूजा देव नहीं है। गुरु आपको करनी का मार्ग बताता है गुरु ऐसा दुर्लभ रत्न है जिसकी कोई कीमत नहीं लगाई जा सकती। इसलिए गुरु भक्ति दृढ़ कर करो क्योंकि गुरु ही आपको सत्य का ज्ञान करवाता है। हुजूर ने कहा कि मन को सतगुरु को सौप कर हर पल उनकी अधिनी में रहो आप घर बैठे ही फकीरी को पा सकते हो।

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