अशोक कुमार कौशिक

बीजेपी की नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के नौ साल पूरे होने का जश्न मना रही है. इस जश्न में भी पार्टी का ध्यान लोकसभा चुनाव में जीत की हैट्रिक, संगठन की खामियों और गठबंधन की गांठें दुरुस्त करने पर है. बीजेपी का फोकस उन राज्यों पर, उन सीटों पर अधिक है जहां गठबंधन में खटपट की खबरें हैं या पार्टी की स्थिति कमजोर होने की आशंकाएं जताई जा रही हैं.

लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी के अभियान का आगाज माने जा रहे इस जश्न में पार्टी ने बड़े नेताओं को मैदान में उतार दिया है. बड़े नेताओं की रैलियों का कार्यक्रम उन राज्यों, उन इलाकों में है जहां पार्टी को मजबूत फाइट की उम्मीद है. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह उन इलाकों में मोर्चा संभालेंगे जहां पार्टी की स्थिति नेतृत्व के नजरिए से उम्मीदों के अनुरूप नहीं है. अमित शाह 18 जून को सिरसा में जनसभा को संबोधित करेंगे.

हरियाणा में होने जा रही अमित शाह की ये जनसभा सियासी दृष्टि से इसलिए भी खास है क्योंकि आयोजन के लिए सिरसा को चुना गया है. अब सवाल ये भी उठ रहे है कि अमित शाह ने हरियाणा में चुनाव अभियान का आगाज करने के लिए सिरसा को ही क्यों चुना? हरियाणा बीजेपी के नेता अपने बड़े नेता की रैली के लिए आयोजन स्थल के चयन पर कुछ भी बोलने से बच रहे हैं.

वहीं, राजनीति के जानकार इसके पीछे मुख्य रूप से तीन कारण बता रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने इसे लेकर कहा कि अमित शाह की रैली के लिए सिरसा के चयन के पीछे रणनीति साफ है. एक तो सिरसा हरियाणा के सबसे कद्दावर राजनीतिक परिवारों में से एक चौटाला परिवार का गृह जिला है. दूसरी वजह किसान आंदोलन से पनपी नाराजगी को दूर करने की कोशिश और तीसरी वजह है सिरसा का राजस्थान की सीमा से सटा होना.

दुष्यंत से गठबंधन पर साफ हो सकती है तस्वीर

हरियाणा की सरकार में बीजेपी के साथ जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) गठबंधन साझीदार है. बीजेपी और जेजेपी में इन दिनों सबकुछ ठीक नहीं नजर आ रहा है. चौटाला परिवार से ही आने वाले दुष्यंत चौटाला की पार्टी जेजेपी और बीजेपी के नेताओं के बीच बयानबाजियों का दौर चल रहा है जिसके बाद गठबंधन के भविष्य को लेकर भी अटकलों का दौर तेज हो गया है.

बीजेपी नेताओं की मानें तो जेजेपी के साथ गठबंधन रहेगा या नहीं, अमित शाह की 18 जून की रैली से पहले इसे लेकर भी तस्वीर साफ हो जाएगी. जेजेपी से गठबंधन के भविष्य पर चर्चा के लिए बीजेपी की दिल्ली में बैठक होनी है. कहा जा रहा है कि ये बैठक अमित शाह की रैली से दो-तीन पहले होगी जिसके बाद गठबंधन को लेकर स्थिति काफी हद तक स्पष्ट हो जाएगी.

लोकसभा चुनाव में अकेले उतरेगी बीजेपी?

जेजेपी के साथ गठबंधन के भविष्य पर बीजेपी के नेता भले ही कुछ भी बोलने से बच रहे हों, लेकिन दबी जुबान ये भी कह रहे हैं कि पार्टी लोकसभा चुनाव में सूबे की सभी 10 सीटों पर लड़ने की तैयारी कर रही है. जेजेपी लोकसभा चुनाव में तीन सीटों पर दावेदारी कर रही है. अमिताभ तिवारी कहते हैं कि गठबंधन का भविष्य चाहे जो भी हो, सिरसा में शाह की रैली दुष्यंत चौटाला के लिए भी संदेश है. बीजेपी नेताओं ने हाल के दिनों में जिस तरह के बयान दिए हैं और अब सिरसा में शाह की रैली, इसके संकेत साफ हैं कि पार्टी एक भी सीट छोड़ने के मूड में नहीं है. भले ही गठबंधन रहे या न रहे.

जहां सबसे खराब स्थिति, वहां सबसे मजबूत नेता

हरियाणा के पिछले विधानसभा चुनाव में सिरसा बीजेपी की सबसे कमजोर कड़ी के रूप में उभरा था. बीजेपी सिरसा जिले में खाता भी नहीं खोल पाई थी. 2019 के चुनाव में सिरसा जिले की पांच में से दो सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार जीते थे जबकि हरियाणा लोकहित कांग्रेस और चौटाला परिवार की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल को एक-एक सीटें मिली थीं. एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार विजयी रहा था.

अमिताभ तिवारी कहते हैं कि बीजेपी की रणनीति साफ है. जहां भी बीजेपी की स्थिति कमजोर है या लोगों में नाराजगी अधिक है, वहां पार्टी अपने मजबूत चेहरे को आगे करेगी. अमित शाह की सिरसा रैली भी इसी रणनीति का हिस्सा है. वे कहते हैं कि सिरसा किसान आंदोलन के दौरान हरियाणा में सबसे बड़ा केंद्र बनकर उभरा था. सिरसा में डिप्टी स्पीकर की गाड़ी पर पथराव की घटना हुई थी और बीजेपी के कई नेताओं को किसानों के आक्रोश का सामना करना पड़ा था. किसानों की नाराजगी दूर करने की कोशिश में हरियाणा सरकार ने आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों के परिजनों को पांच-पांच लाख रुपये का मुआवजा भी दिया था.

चौटाला परिवार का मजबूत गढ़ है सिरसा

हरियाणा की सियासत का सबसे रसूखदार परिवार है पूर्व उपप्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल का परिवार. चौधरी देवीलाल का गांव चौटाला, सिरसा जिले में ही है. सिरसा जिले को देवीलाल की सियासी विरासत संभाल रहे ओमप्रकाश चौटाला और उनके परिवार का मजबूत गढ़ माना जाता है. पिछले चुनाव के नतीजे भले ही आईएनएलडी के लिए उतने अनुकूल न रहे हों, लेकिन चौटाला की पार्टी को जो एक सीट मिली थी वह भी सिरसा से ही आई थी. सिरसा की ऐलनाबाद विधानसभा सीट से आईएनएलडी के अभय सिंह चौटाला विजयी रहे थे.

बीजेपी के साथ हरियाणा की गठबंधन सरकार में शामिल जेजेपी के दुष्यंत चौटाला भी इसी परिवार से आते हैं. आईएनएलडी भले ही एक सीट पर सिमट गई थी लेकिन दुष्यंत चौटाला की जेजेपी को 10 सीटों पर जीत मिली थी. जेजेपी किंगमेकर की भूमिका में आ गई और बीजेपी ने दुष्यंत चौटाला के समर्थन से सरकार बनाई. अमित शाह की सिरसा रैली को गठबंधन साझीदार दुष्यंत चौटाला के लिए संदेश के रूप में भी देखा जा रहा है.

चुनावी राज्य राजस्थान की सीमा पर है सिरसा

सियासत में कहा जाता है कि एक जिले का माहौल आसपास के कई जिलों में सियासी माहौल को प्रभावित करता है. हरियाणा का सिरसा जिला राजस्थान की सीमा पर स्थित है. अमिताभ तिवारी कहते हैं कि अमित शाह की रैली के जरिए बीजेपी की कोशिश राजस्थान के सीमावर्ती जिलों की सियासत को साधने की भी है. हरियाणा के सिरसा जिले से लगते राजस्थान के श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिले में विधानसभा की 11 सीटें हैं.

बीजेपी ने जीती थीं हरियाणा की सभी 10 लोकसभा सीटें

बीजेपी ने पिछले लोकसभा चुनाव में हरियाणा की सभी 10 सीटें जीतकर क्लीन स्वीप किया था. हालांकि, तब हालात अलग थे और अब अलग. तब हरियाणा में बीजेपी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार थी, अभी बीजेपी की ही सरकार है लेकिन निर्दलीयों और जेजेपी विधायकों का समर्थन जरूरी है. 2019 चुनाव के बाद किसान आंदोलन से पनपी नाराजगी को बीजेपी दूर करने की कवायद में जुटी ही थी कि पहलवानों के आंदोलन ने पार्टी की चुनौती और बढ़ा दी. इसके अलावा सूरजमुखी के बीज की खरीदारी पर भी टकराव देखने को मिल रहा है.

बीजेपी को गठबंधन सहयोगी जेजेपी भी आंख दिखा रही है. राजनीति के जानकार भी ये कह रहे हैं कि बदले हालात में बीजेपी के लिए अपना पिछला प्रदर्शन (2019) दोहरा पाना आसान नहीं होगा. इन सबको देखते हुए ही पार्टी ने चुनावी हुंकार भरने के लिए अमित शाह और जगह के रूप में सिरसा को चुना है जहां पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी खाता तक नहीं खोल पाई थी.

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