मां अथवा जननी की व्याख्या संभव नहीं – शंकराचार्य नरेंद्रानंद 

 माता , कुमाता नहीं हो सकती – पूत,  कपूत हो सकता है      
 मां का कर्ज अपने शरीर की जूतियां पहना कर भी नहीं उतार सकते  

 फतह सिंह उजाला                                   

गुरुग्राम । सनातन धर्म जागरण अभियान के अन्तर्गत श्री काशी सुमेरु पीठाधीश्वर अनन्त श्री विभूषित पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज ने सनातन धर्म, संस्कृति, परम्परा के संरक्षण एवम् सम्वर्द्धन तथा सनातन धर्म और राष्ट्रद्रोहियों के समूल उन्मूलन की कामना से  मैहर स्थित माँ शारदा का दिव्य दर्शन एवम् पूजन किया ।  यह जानकारी शंकराचार्य के निजी सचिव स्वामी बृजभूषण आनंद सरस्वती ने मीडिया से सांझा की । 

  पूज्य शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती महाराज ने अंतरराष्ट्रीय मदर्स डे मातृ  दिवस के उपलक्ष पर कहा मां अथवा जननी इस ब्रह्मांड की सबसे अधिक शक्तिशाली सहनशील पूजनीय वंदनीय और प्रेरणा का पुंज है । भारतीय सनातन संस्कृति में नवरात्र प्रत्येक सनातनी और धर्मावलंबी व्यक्ति अथवा परिवार अनादि काल से मनाता आ रहा है । नवरात्रि में  मां के विभिन्न स्वरूपों का पूजन वंदन बड़ी श्रद्धा भाव के साथ किया जाता है । वास्तव में मां अथवा जननी की व्याख्या करना ब्रह्मांड में किसी के लिए भी संभव नहीं है । समुंदर की स्याही और पृथ्वी जितना कागज यह सब मां अथवा जननी के विषय में लिखने के लिए भी अपर्याप्त ही साबित होगा । कहां भी गया है माता कुमाता नहीं हो सकती लेकिन पूत कपूत हो सकता है । 

 मां अथवा जननी किसी भी हालात में किसी भी परिस्थिति में कितने भी कष्ट सहकर रहे । लेकिन कभी भी अपने परिवार और बच्चों का अहित नहीं चाहेगी और ना ही कभी अपने बच्चों को बद दुआ देगी । इसीलिए यह भी कहा गया है की मां का कर्ज हम अपने शरीर की चमड़ी की जूतियां बनाकर और पहना कर भी नहीं उतार सकते । मां की दुआ और आशीर्वाद जिस किसी व्यक्ति को मिल जाए , उसके जीवन के सभी कष्ट दूर होते चले जाते है । इस मौके पर स्वामी शंकराचार्य नरेंद्रानंद सरस्वती महाराज के साथ स्वामी बृजभूषणानन्द सरस्वती, स्वामी नरेशानन्द, अभिषेक पाण्डेय एवम् विपुल दूबे, राजेन्द्र कुमार सोनी, ऋषि सोनी आदि ने भी माता शारदा के दर्शन-पूजन का सौभाग्य प्राप्त किया ।  

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