अनुज अग्रवाल ,संपादक, डायलॉग इंडिया

1) अपनों (येदियुरप्पा एवं जगदीश शेट्टियार) को दरकिनार कर पराये (बासवराव बोम्मई) को मुख्यमंत्री बनाने का संदेश पार्टी व वोटरो में बहुत ख़राब गया। पार्टी कार्यकर्ता भी हाशिए पर आते गए और नवआगंतुकों का पार्टी पर कब्जा हो गया।

2) बासवराव बोम्मई कभी भी येदियुरप्पा के साए से बाहर नहीं निकल पाए और अपनी बड़ी व अच्छी छवि नहीं बना पाए। साथ में येदियुरप्पा की समानांतर सरकार चलती रही। मोदी – शाह का राज्यो में मैनेजर बैठाकर अपनी छवि के भरोसे चुनाव जीतने की रणनीति इस बार बिखर गयी।

3) अटल आडवाणी युग के नेताओ को किनारे करने व भक्तों और लाभार्थी जाति के भरोसे बैठे मोदी शाह की जोड़ी ने जब जगदीश शेट्टियार को भी पार्टी छोड़ने पर मजबूर कर दिया तो पार्टी के परंपरागत समर्थकों व संघ के स्वयंसेवकों का मनोबल टूट गया और वे चुनाव प्रचार से अलग हो गए या पार्टी के विरुद्ध खड़े हो गए।

4) भ्रष्टाचार चुनावों में बड़ा मुद्दा था लोग रोज़मर्रा के कामों में भी भारी रिश्वत के चलन से तंग आ गए थे तो खनन माफिया भी नियंत्रण से बाहर हो चला था। मोदी सरकार की भ्रष्टाचार के विरुद्ध मुहिम वोटर को बनावटी व एकतरफ़ा लगी।

5) अपनी ख़ामियों व कुशासन को छिपाने के लिये धार्मिक विभाजन का कार्ड बार बार चला गया जिसके प्रति वोटर में अरुचि पैदा हो गईं। जाति के आधार पर भी वोट बंट गए और बीजेपी अपना प्रभाव क्षेत्र नहीं बढ़ा पायी। बीजेपी सरकार महंगाई व बेरोज़गारी पर जनता को फ़ौरी राहत देने में असफल रही।

6) टिकिट बंटबारे में पैसों का बढ़ता चलन व कुछ नेताओ की मनमानी ने भी आग में घी का काम किया और अनेक जगह पर विद्रोही उम्मीदवार पार्टी के लिए मुसीबत व हार की वजह बन गए।

7)कांग्रेस पार्टी का माइक्रो मैनेजमेंट इस बार बहुत अच्छा रहा और उसने बजरंग बली आदि मुद्दों पर डैमेज कंट्रोल भी बहुत अच्छा किया। पार्टी की गुटबाज़ी को भी नियंत्रण में रखा व स्थानीय नेताओ को पूरा सम्मान दिया व आगे रखा। चुनाव प्रबंधन व बूथ मैनेजमेंट भी पार्टी ख़ासी आगे रही।