कहा: भक्ति हर वो सेवा और कर्तव्य है जो आप ईमानदारी से करते हो।

दिनोद धाम जयवीर फौगाट,

07 मई, सन्तों के दर्शन से मन को शांति मिलती है। सन्तो के सत्संग में बार बार जाने से मन की उसी भांति सफाई होती रहती है जैसे हम घर में प्रतिदिन झाड़ू लगा कर घर की सफाई करते हैं। यह सत्संग वचन परम् संत सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने दिनोद गांव में स्थित राधास्वामी आश्रम में फरमाया। हुजूर ने कहा कि परमात्मा का मूल्यांकन करने की भूल इंसान कर रहा है। हम भूल जाते हैं कि उसकी बही में सबका खाता है। वो लाखो करोड़ो आंखों वाला है। वो किसी को कौड़ी ज्यादा नहीं देता और ना ही किसी को पाई कम।

हुजूर महाराज जी ने फरमाया कि जब हम रोजमर्रा की जिंदगी में हमारे दैनिक कार्य रोजाना करते है तो परमात्मा का भजन भी रोजाना करना चाहिए। दैनिक भागदौड़ भरी जिंदगी में अनेको विक्षेप हमारे मन पर आते हैं जिनका इलाज केवल सतगुरु रूपी वैद ही कर सकता है। नाम रूपी दवा भी तभी कारगर है जब सतगुरु के बताए परहेज करें। उन्होंने फरमाया कि सत्संग तन और मन दोनों का सुधार करता है। हमारी इन्द्रीया तरह तरह की मांग करती है जो हमें मानसिक शारीरिक और आत्मिक रूप से रुग्ण करती हैं। तन को स्वस्थ रखने के लिए अन्न ठीक होना चाहिए। अन्न ठीक होगा तो तन ठीक रहेगा। स्वस्थ तन में पवित्र मन का वास होता है। भक्ति में संयम की सबसे ज्यादा आवश्यकता है। भक्ति में मनमुखता नहीं चलती क्योंकि जब तक आप मन अपने गुरु को सौंप कर गुरुमुखता धारण नहीं कर सकते वो इस मार्ग पर नही चल सकते।

गुरु महाराज जी ने कहा कि गुरुवाई भेख धरने से नहीं आती गुरु बनने से पहले तो आपको शिष्य बनना पड़ेगा। चार दोहे याद करने से फकीरी नहीं आती। फकीरी तो आपा मारने से आती है। उन्होंने कहा कि क्यों किसी को धोखा देते हो। क्या आपने अपना चरित्र ठीक किया। किस के लिए छल कपट धारते हो। जब अंत समय आएगा तब ये छल प्रपंच धोखा किया हुआ काम नहीं आएगा। तब तो आपका कमाया हुआ विवेक ही काम आएगा। गुरु महाराज ने हैरानी जताते हुए कहा कि सब जग बहा जा रहा है। सब दनियादारी रूपी कुए में पड़ी भांग को पी कर झूठे आनंद में गाफिल हैं। गुरु के पास जाकर दनियादारी मत मांगो। गुरु से तो गुरु को ही मांग लो। सच्ची पुकार के लिए किसी विज्ञान की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने बताया कि माँ बाप की सेवा ही असली भक्ति है। दूसरे की छोड़ कर अपनी सोचो। औरो की बुराई ना देख कर अपने अंतर में झांको। भक्ति हर वो सेवा और कर्तव्य है जो आप ईमानदारी से करते हो।

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