गुरुग्राम। कांग्रेस द्वारा बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाना और उसकी पी.एफ़.आई. से तुलना करना उनकी हताशा का ज्वलन्त उदाहरण है। एक अमेरिकन एजेन्सी द्वारा हाल ही में सर्वे करवाया गया, जिससे यह सिद्ध हुआ कि 97% हिंदू भगवान में आस्था रखते हैं यानि आस्तिक हैं। 45% लोग शिव जी को इष्ट मानते हैं, जहां एक ओर 15% लोग मर्यादा पुरुषोत्तम राम-भक्त हैं, वहीं दूसरी ओर राम जी के अनन्य भक्त हनुमान जी के 35% अनुयायी हैं। इसी प्रकार अलग-अलग प्रतिशत योगीराज श्री कृष्ण और शक्ति स्वरूपा माँ में आस्था रखते हैं। जैसे कांग्रेस और सपा को अली पर विश्वास है, वहीं भाजपा के कार्यकर्ता को बजरंगबली पर विश्वास है। कई लोग बाहुबली पर विश्वास करते हैं और हम बजरंगबली पर। एक ओर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के अनुसार जो कांग्रेस से है, वहाँ उन्हें बजरंगदल से कोई समस्या नहीं है वहीं कर्नाटक की कांग्रेस को फिर क्या ख़तरा है। यह क्या विडम्बना है?

इस प्रकार की तुलना बजरंग दल की पी.एफ़. आई. से करना निम्न स्तर की सोच और हताशा का जीता जागता उदाहरण है। जहाँ पी.एफ़.आई. कट्टरपंथी विचारधारा और अलगाववादियों का संगठन है वहीं बजरंग दल जोड़ने की प्रक्रिया में लगा है।

बजरंग दल की स्थापना 8-10-1984 में अयोध्या में हुई थी जिसका काम शोभायात्रा की रक्षा के लिए था। बाद में उनकी आस्था को देखते हुए विश्व हिंदू परिषद ने उनको कई और उत्तरदायित्व दिए। बजरंग दल धर्मांतरण को रोकता है और घुसपैठियों को रोकता है। सकारात्मक सोच के दल को प्रतिबंधित करना अशोभनीय कार्य है। चुनाव के नतीजे उनकी इस हताशा का परिणाम सिद्ध कर देंगे। इस समय एक अनुमान के आधार पर 22 लाख कार्यकर्ता और 25 लाख बजरंग दल के सदस्य हैं। उनके लिए राष्ट्र सर्वोपरि है। आओ, स्वार्थी तत्वों को कर्नाटक के चुनाव में मजा चखाएँ और हार का इनाम ऐसे लोगों को दिया जाए।

बोधराज सीकरी ने इस पूरे मामले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि जिस देश का आधार ही सनातन संस्कृति है वहां अगर कोई पार्टी बजरंबली के नाम से घृणा करे, अपने घोषणापत्र में बजरंगबली बोलने वालों को ताले में बंद करने का निर्णय ले। तो यह देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। ऐसी सोच ही हम कड़े शब्दों में निंदा करते हैं।

error: Content is protected !!