कहा: इंसानी चौले को बिना परमात्मा की भक्ति बर्बाद ना करो
पवित्र ह्रदय में ही परमात्मा का वास होता है : हुजूर कंवर साहेब
कहा: सच्चाई और ईमानदारी से हक हलाल की कमाई करते हुए दूसरे के कष्टों को ध्यान रखा करो

चरखी दादरी हिसार जयवीर फौगाट,

30 अप्रैल, जो बीत गया उसे भूल जाओ। अब भी उत्तम अवसर है इस इंसानी चौले की सार्थकता सिद्ध करो। अपने तन मन धन का गुरु मौज में अर्पण कर दो। हृदय में प्रेम प्रीत और प्रतीत पैदा करो। राधास्वामी मत आपको यह अवसर प्रदान करता है। इस मत में प्रचलित नाम भक्ति को आठ साल का बच्चा भी कर सकता है और साठ साल का बुजुर्ग भी। किसी चीज को बर्बाद करने के लिए एक पल भी नहीं लगता लेकिन आबाद करने में जीवन लग जाता है। यह सत्संग वचन परम संत सतगुरु हुजूर कंवर साहेब जी महाराज ने हिसार के कैमरी रोड पर स्थित राधास्वामी आश्रम में फरमाये। हुजूर महाराज जी ने हिसार के वार्षिक सत्संग में उमड़ी हजारों की हाजरी में वचन फरमाते हुए कहा कि आज दुनिया में प्रेम का अभाव है और अशांति का पसारा है। सबके मन में एक अजीब सी रिक्तता है।

इसका एकमात्र कारण इस कलयुग में परमात्मा के प्रति विरक्तता है। कुल मालिक इस सृष्टि के कर्ता को बिसार कर हम सुख कैसे पा सकते हैं। हम औरो को ठीक करने की कोशिश करते हैं लेकिन स्वयं को बिगाड़ रहे हैं। हम प्रकृति के विरुद्ध काम करेंगे तो सुख कैसे पाएंगे। अपने आप को जान लो खुदा को भी जान जाओगे। अपने आप को जानोगे किसी पूर्ण गुरु की शरणाई से। गुरु गुरु में भी भेद है। गुरु वो धारण करना जो करनी का धनी हो। गुरु वो जो तत्ववेत्ता हो। गुरु वो जिसमें तप त्याग अनुशाशन हो। गुरु वो जो शरण में आये जीव के भर्म दूर कर दे। गुरु ज्ञान की वो भट्ठी है जिसमें वो अपने शिष्य को तपाता है। हुजूर महाराज जी ने कहा कि जब मुसीबत आती है तब आपका विवेक काम आता है। विवेक आता है गुरु की पूर्णता से। विवेक आता है अमिरस पीने से। यह स्थिति तब आती है जब मान गुमान अहंकार छूट जाएगा। जब हम अपनी हस्ती मिटा कर गुरु की शोहबत को अंगीकार कर लेंगे। हुजूर महाराज जी ने कहा कि अन्न का एक दाना अपने आप को मिट्टी में मिला कर अपनी हस्ती मिटा कर ही करोड़ो दाने पैदा करता है। आग की तपिश का सही मायने में तभी पता लगता है जब उसमें हम जलते हैं।

इस संसार में दो तरह के जीव हैं एक नास्तिक और दूसरा आस्तिक। इनसे अलग एक और वो हैं जो गुरु की शरण में रह कर भी नास्तिक रह जाते हैं। गुरु की शरण में आ कर भी जो दुनियादारी से ही प्रीत करते हैं उनका कल्याण किस विध हो। उन्होंने कहा कि दो घोड़ो का सवार तो निश्चित रूप से गिरेगा। एक घोड़ा गुरु भक्ति का है और दूसरा सांसारिक। दोनों एक दूसरे की विपरीत दिशा में भागते हैं। कोई बिरला ही इस बात को समझ पाता है वरना तो इस दुनिया के रेले में एक आता है तो दूसरा जाता है। हुजूर महाराज जी ने कहा कि अपना यकीन और धर्य को बनाये रखो। गुरु के वचन में रहो तो भक्ति के रास्ते से सुगम कोई और रास्ता नहीं है। जिसका हृदय पवित्र है उसी हृदय में परमात्मा का वास है। आपको केवल सच्चाई और ईमानदारी से हक हलाल की कमाई करते हुए दूसरे के कष्टों को ध्यान में रखना है। विषयो से दूर रहो; विषय वह जो हमारी आध्यात्मिक उन्नति में आड़े आएं। उन्होंने फरमाया कि स्वयम स्वम का निरीक्षण करो लेकिन ईमानदारी से। आत्मग्लानि होगी और यही आत्मग्लानि आपकी निरख परख करेगी। यह अभ्यास आपको गलत कामो से तौबा कराएगा। गुरु अंग संग रह कर आपकी संभाल करते हैं। गुरु के पास सांसारिक चाह लेकर मत जाओ। गुरु के पास तो गुरु को ही मांगने जाओ। जब गुरु आपका हो गया तो सब कुछ आपका हो गया। उन्होंने कहा कि गुरु तो उनको भी पार करता है जो छल कपट से उनके पास आता है फिर यदि आप सच्चे मन से आओ तो समझो आपका कल्याण निश्चित है। हुजूर ने कहा कि फरीद की भांति विश्वास पैदा करो। परमात्मा की चाह में फरीद किसी के मजाक पर कुए में लटक गया। वो हरि के आसरे हो गया, कौवों को भी कहता है कि बेशक मेरे शरीर की बोटी बोटी खा लेना लेकिन मेरी आँखें मत फोड़ना क्योंकि इनमें हरि मिलन की आस है। गुरु महाराज जी ने कहा कि ज्ञान रूपी हाथी की सवारी करो ताकि संसार रूपी कुतों की भौंक आपको विचलित ना कर पाए। उन्होंने फरमाया कि कोई साथ नहीं जाएगा केवल आपके सतकर्म ही आपके साथ जाएंगे। गुरु आपका साथ कभी नहीं छोड़ेगा क्योंकि गुरु नाम ज्ञान का है। भक्त बनने से पहले सदाचारी बनो, ईमानदार बनो, इंसान बनो। परमात्मा को खुश करने से पहले अपने माँ बाप को खुश करो। परमात्मा को भोग लगाने से पहले किसी भूखे की भूख मिटाओ।

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