परमात्मा एक ही समय में सगुण और निर्गुण दोनों  स्वरूप में मौजूद  –  शंकराचार्य नरेंद्रानंद

आदि शंकराचार्य ने मंदिरों मंदिरों एवं शक्तिपीठों की पन: स्थापना की    
भगवान शंकराचार्य के विचारोपदेश आत्मा और परमात्मा की एकरूपता पर आधारित   
आदि शंकराचार्य साक्षात भगवान शिव का अवतार माना गया       
आदि शंकराचार्य ने वेदों में लिखें ज्ञान को एकमात्र ईश्वर का संबोधन समझा    

फतह सिंह उजाला                                       

गुरुग्राम । श्री काशी सुमेरु पीठाधीश्वर अनन्त श्री विभूषित पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज के पावन सानिध्य में वाराणसी के डुमराँव बाग कालोनी अस्सी स्थित श्री काशी सुमेरु पीठ के सभागार में श्री आदि जगद्गुरु शंकराचार्य भगवान की जयन्ती वैदिक विधि-विधान एवम् परम्परानुसार  मनाई  गई । यह जानकारी शंकराचार्य के निजी सचिव बृजभूषणानंद स्वामी के द्वारा मीडिया से सांझा की गई ।

इस अवसर पर आदि जगद्गुरु शंकराचार्य के चित्र पर माल्यार्पण कर संगोष्ठी हुई, उपस्थित साधु-संयासियों एवम विद्वत् मनानुभावों को सम्बोधित करते हुए शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि भगवान शंकराचार्य  के विचारोपदेश आत्मा और परमात्मा की एकरूपता पर आधारित हैं, जिसके अनुसार परमात्मा एक ही समय में सगुण और निर्गुण दोनों ही स्वरूपों में रहता है । भगवान शंकराचार्य साक्षात् भगवान शिव के अवतार थे । इन्होंने ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, मांडूक्य, ऐतरेय, तैत्तिरीय, बृहदारण्यक और छान्दोग्योपनिषद् पर भाष्य लिखा । वेदों में लिखे ज्ञान को एकमात्र ईश्वर को संबोधित समझा और उसका प्रचार तथा वार्ता पूरे भारतवर्ष में की। कलियुग के प्रथम चरण में विलुप्त तथा विकृत वैदिक ज्ञान-विज्ञान को उद्भासित और विशुद्ध कर वैदिक वाङ्मय को दार्शनिक, व्यावहारिक, वैज्ञानिक धरातल पर समृद्ध करने वाले एवं राजर्षि सुधन्वा को सार्वभौम सम्राट ख्यापित करने वाले सप्ताम्नाय-सप्तपीठ संस्थापक नित्य तथा नैमित्तिक युग्मावतार श्री शिवस्वरुप भगवत्पाद शंकराचार्य की अमोघदृष्टि तथा अद्भुत कृति सर्वथा स्तुत्य है ।  

सतयुग की अपेक्षा त्रेता में, त्रेता की अपेक्षा द्वापर में तथा द्वापर की अपेक्षा कलि में मनुष्यों की प्रज्ञाशक्ति तथा प्राणशक्ति एवम् धर्म औेर आध्यात्म का ह्रास सुनिश्चित है । यही कारण है कि कृतयुग में शिवावतार भगवान दक्षिणामूर्ति ने केवल मौन व्याख्यान से शिष्यों के संशयों का निवारण किय‍ा । त्रेता में ब्रह्मा, विष्णु औऱ शिव अवतार भगवान दत्तात्रेय ने सूत्रात्मक वाक्यों के द्वारा अनुगतों का उद्धार किया । द्वापर में नारायणावतार भगवान कृष्णद्वैपायन वेदव्यास ने वेदों का विभाग कर महाभारत तथा पुराणादि की एवं ब्रह्मसूत्रों की संरचना कर एवम् शुक लोमहर्षणादि कथाव्यासों को प्रशिक्षित कर धर्म तथा आध्यात्म को उज्जीवित रखा। 

स्वामी बृजभूषणानन्द सरस्वती ने कहा कि कलियुग में भगवत्पाद श्रीमद् शंकराचार्य ने भाष्य , प्रकरण तथा स्तोत्र ग्रन्थों की संरचना कर , विधर्मियों-पन्थायियों एवं मीमांसकादि से शास्त्रार्थ , परकाया प्रवेशकर , नारदकुण्ड से अर्चाविग्रह श्री बदरीनाथ एवं भूगर्भ से अर्चाविग्रह श्रीजगन्नाथ दारुब्रह्म को प्रकटकर तथा प्रस्थापित कर , सुधन्वा सार्वभौम को राजसिंहासन समर्पित कर एवं सप्ताम्नाय – सप्तपीठों की स्थापना कर अहर्निश अथक परिश्रम के द्वारा धर्म और आध्यात्म को उज्जीवित तथा प्रतिष्ठित किया। मठ मछली बन्दर के श्रीमहन्त एवम् अखिल भारतीय दण्डी सन्यासी प्रबन्धन समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी विमलदेव आश्रम जी ने कहा की कि व्यासपीठ के पोषक राजपीठ के परिपालक धर्माचार्यों को श्रीभगवत्पाद ने नीतिशास्त्र , कुलाचार तथा श्रौत-स्मार्त कर्म , उपासना तथा ज्ञानकाण्ड के यथायोग्य प्रचार-प्रसार की भावना से अपने अधिकार क्षेत्र में परिभ्रमण का उपदेश दिया। उन्होंने धर्मराज्य की स्थापना के लिये व्यासपीठ तथा राजपीठ में सद्भावपूर्ण सम्वाद के माध्यम से सामंजस्य बनाये रखने की प्रेरणा प्रदान की।   

स्वामी अखण्डानन्द तीर्थ जी ने कहा कि दसनामी गुसांई गोस्वामी (सरस्वती,गिरि, पुरी, बन, पर्वत, अरण्य, सागर, तीर्थ, आश्रम और भारती उपनाम वाले गुसांई, गोसाई, गोस्वामी) इनके आध्यात्मिक उत्तराधिकारी माने जाते हैं , और उनके प्रमुख सामाजिक संगठन का नाम “अंतरराष्ट्रीय जगद्गुरु दसनाम गुसांई गोस्वामी एकता अखाड़ा परिषद” है। शंकराचार्य ने पूरे भारत में मंदिरों और शक्तिपीठों की पुनः स्थापना की । इस अवसर पर स्वामी दुर्गेशानन्द तीर्थ, स्वामी महादेव आश्रम, स्वामी इन्द्रदेव आश्रम, स्वामी इन्द्रप्रकाश आश्रम, स्वामी राधेश्याम आश्रम, स्वामी गोविन्ददेव आश्रम, स्वामी रणछोड़ जी महाराज सहित सैकड़ों दण्डी सन्यासियों सहित अन्य साधु-महात्मा एवम् विद्वत् समाज के महापुरुषों की सहभागिता रही |

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