गुरुग्राम – आचार्य पुरोहित संघ के अध्यक्ष एवं श्री माता शीतला देवी श्राइन बोर्ड के पूर्व सदस्य पंडित अमर चंद भारद्वाज में बताया कि माँ दुर्गा की नव शक्तियों का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है । यहाँ ‘ ब्रह्म ‘ शब्द का अर्थ तपस्या है । ब्रह्मचारिणी अर्थात् तप की चारिणी तप का आचरण करने वाली । ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त भव्य है । इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बायें हाथ में कमण्डलु रहता है । अपने पूर्व जन्म में जब ये हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थीं तब नारद के उपदेश से इन्होंने भगवान् शंकर जी को पति – रूप में प्राप्त करने के लिये अत्यन्त कठिन तपस्या की थी ।

इसी दुष्कर तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया । एक हजार वर्ष उन्होंने केवल फल – मूल खाकर व्यतीत किये थे । सौ वर्षों तक केवल शाक पर निर्वाह किया था । कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखते हुए खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के भयानक कष्ट सहे । इस कठिन तपश्चर्याके पश्चात् तीन हजार वर्षां तक केवल जमीन पर टूट कर गिरे हुए बेल पत्रों को खाकर वह अहर्निश भगवान् शंकर की आराधना करती रहीं । इसके बाद उन्होंने सूखे बेल पत्रों को भी खाना छोड़ दिया । कई हजार वर्षों तक वह निर्जल और निराहार तपस्या करती रहीं । पत्तों ( पर्ण ) को भी खाना छोड़ देने के कारण उनका एक नाम ‘ अपर्णा ‘ भी पड़ गया । कई हजार वर्षों की इस कठिन तपस्या के कारण ब्रह्मचारिणी देवी का वह पूर्व जन्म का शरीर एकदम क्षीण हो उठा । वह अत्यन्त ही कृशकाय हो गयी थीं । उनकी यह दशा देखकर उनकी माता मेना अत्यन्त दुःखित हो उठीं । उन्होंने उन्हें उस कठिन तपस्या से विरत करने के लिये आवाज दी ‘ उ मा ‘ , अरे ! नहीं , ओ ! नहीं ! ‘ तब से देवी ब्रह्मचारिणीका पूर्व जन्म का एक नाम ‘ उमा ‘ भी पड़ गया था । उनकी इस तपस्या से तीनों लोकों में हाहा कार मच गया । देवता , ऋषि , सिद्धगण , मुनि सभी ब्रह्मचारिणी देवी की इस तपस्या को अभूत पूर्व पुण्य कृत्य बताते हुए उनकी सराहना करने लगे । अन्त पितामह ब्रह्मा जी ने आकाश वाणी के द्वारा उन्हें सम्बोधित करते हुए प्रसन्न स्वरों में कहा हे देवि ! आज तक किसी ने ऐसी कठोर तपस्या नहीं की थी । ऐसी तपस्या तुम्हीं से सम्भव थी । तुम्हारे इस अलौकिक कृत्य की चतुर्दिक् सराहना हो रही है । तुम्हारी मनोकामना सर्वतोभावेन परिपूर्ण होगी । भगवान् चन्द्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे । अब तुम तपस्या से विरत होकर घर लौट जाओ । शीघ्र ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं ।

‘ माँ दुर्गाजी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्त फल देने वाला है । इनकी उपासना से मनुष्य में तप , त्याग , वैराग्य , सदाचार , संयम की वृद्धि होती है । जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्तव्य – पथ से विचलित नहीं होता । माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है । दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती है । इस दिन साधक का मन ‘ स्वाधिष्ठान ‘ चक्र में स्थित होता है । इस चक्र में अवस्थित मन वाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है । पण्डित अमर चन्द भारद्वाज ने बताया मां ब्रह्मचारिणी का पसंदीदा भोग चीनी और मिश्री है , इसलिए मां को भोग में चीनी , मिश्री और पंचामृत का भोग जरूर लगाएं . इसके अलावा मां ब्रह्मचारिणी को दूध और दूध से बने व्यंजन अति प्रिय होते हैं . ऐसे में आप उन्हें दूध से बने व्यंजनों का भोग लगा सकते हैं ।

माँ ब्रह्मचारिणी का मंत्र : – या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
माँ ब्रह्मचारिणी बीज मंत्र : – 1. ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं ब्रह्मचारिणीय नमः, 2. ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम ॥

उन्हें लाल रंग अतिप्रिय है . मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय लाल रंग के कपड़े पहनने चाहिए ।

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