नवरात्र में मां दुर्गा की आराधना से सुख और समृद्धि की होती है प्राप्ति : पं. अमरचंद भारद्वाज

चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 22 मार्च से, समापन 30 मार्च को
पं. अमरचंद भारद्वाज

गुरुग्राम: श्री माता शीतला देवी मंदिर श्राइन बोर्ड के पूर्व सदस्य एवं आचार्य पुरोहित संघ गुरुग्राम के अध्यक्ष पंडित अमर चंद भारद्वाज ने मां दुर्गा के सभी भक्तों को चैत्र नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए कहा कि शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मा जी ने इस दिन संपूर्ण सृष्टि और लोकों का सृजन किया था इसी दिन भगवान विष्णु का मत्स्यावतार भी हुआ था ।भारत में विक्रमी संवत जैसे उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य ने 2000 वर्ष पूर्व शुरू किया जो चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से शुरू होता है इसे सभी सनातन धर्म के मानने वाले नव वर्ष के रूप में मनाते हैं इसे गुड़ी पड़वा भी कहते हैं इसी दिन से हिंदू नव पंचांग प्रारंभ होता है भगवान राम और धर्म युधिष्ठिर का राज्याभिषेक इसी दिन हुआ था ।

इस बार चैत्र नवरात्रि का शुभारंभ 22 मार्च 2023 से होगा. इस दौरान पंचक में माता रानी पृथ्वी पर पधारेंगी लेकिन आदि शक्ति जगदंबा की पूजा में पंचक का असर नहीं होता। ऐसे में पहले दिन कलश स्थापना सुबह 6.29 से लेकर 7.39 तक शुभ मुहूर्त में होगा। चैत्र नवरात्रि में देवी दुर्गा नाव की सवारी कर पधारेंगी, जो बहुत शुभ माना जाता है. वहीं उनके जाने का वाहन डोली रहेगी।

पंडित अमर चंद ने कहा कि इस साल चैत्र नवरात्रि के पहले दिन दो बेहद शुभ ब्रह्म और शुक्ल योग का संयोग भी बन रहा है जिसमें माता की पूजा का दोगुना फल प्राप्त होगा। वहीं इस साल देवी पूरे 9 दिन तक धरती पर भक्तों के बीच रहेंगी। पंचांग के अनुसार हर साल चार नवदुर्गा आती हैं। जिसमें शारदीय और चैत्र नवदुर्गा प्रमुख होती हैं। वहीं दो गुप्त नवदुर्गा होती हैं। आपको बता दें कि इस साल चैत्र नवदुर्गा की शुरुआत 22 मार्च से शुरू हो रही हैं, जिनका समापन 30 मार्च को होगा। वहीं इस बार माता नौका पर सवार होकर आएंगी, जो सुखदायक माना जा रहा है। इसलिए इस नवदुर्गा का महत्व और भी बढ़ गया है। वहीं इस नवरात्रि पर 110 साल बाद विशेष संयोग बन रहा है। जिसमें पूरे 9 दिन का नवरात्रि पर्व इस बार मनाया जाएगा। साथ ही 22 मार्च से ही हिंदू नववर्ष में शुरू हो रहा है। वहीं इस साल के राजा बुध होंगे और मंत्री शुक्र होंगे। पंडित अमर चंद भारद्वाज ने कहा कि इन शुभ संयोगों को लेकर इस बार विधि-विधान और श्रद्धा के साथ मां भगवती के पूजन से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी।

22 मार्च…… सर्व सुख प्रदायिनी माता शैलपुत्री की पूजा: पंडित अमरचंद

पंडित अमर चंद भारद्वाज ने कहा कि आज मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप माता शैलपुत्री की पूजा की जाएगी।

माँ दुर्गा अपने पहले स्वरूपमें ‘ शैलपुत्री ‘ के नाम से जानी जाती हैं । पर्वत राज हिमालय के वहां पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण माता का नाम शैलपुत्री पड़ा था । वृषभ-स्थिता माता जी के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। यही नव दुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं ।

अपने पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं। तब इनका नाम सती था । माता का विवाह भगवान शंकर जी से हुआ था। एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया। इसमें उन्होंने सारे देवताओं को अपना – अपना यज्ञ – भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया। किन्तु शंकर जी को उन्होंने इस यज्ञ में निमंत्रित नहीं किया। सती ने जब सुना कि हमारे पिता एक अत्यन्त विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं , तब वहां जाने के लिये उनका मन विकल हो उठा। अपनी यह इच्छा उन्होंने शंकर जी को बताई। सारी बातों पर विचार करने के बाद उन्होंने कहा कि प्रजापति दक्ष किसी कारण वश हम से रुष्ट हैं । अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को नहीं बुलाया निमंत्रित किया है । उनके यज्ञ – भाग भी उन्हें समर्पित किये हैं, किन्तु हमें जान – बूझकर कोई सूचना तक नहीं भेजी है। ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहां जाना किसी प्रकार भी श्रेयस्कर नहीं होगा।

शंकर जी के इस उपदेश से सती का प्रबोध नहीं हुआ। पिता का यज्ञ देखने वहां जाकर माता और बहनों से मिलने की उनकी व्यग्रता किसी प्रकार भी कम न हो सकी। उनका प्रबल आग्रह देखकर भगवान् शंकर जी ने उन्हें वहां जाने की अनुमति दे दी। सती ने पिता के घर पहुंचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बातचीत नहीं कर रहा है। सारे लोग मुंह फेरे हुए हैं। केवल उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव भरे हुए थे। परिजनों के इस व्यवहार से उनके मन को बहुत क्लेश पहुंचा। उन्होंने यह भी देखा कि वहां भगवान् शङ्करजी के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है । दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमान जनक वचन भी कहे । यह सब देखकर सती का हृदय क्षोभ , ग्लानि और क्रोध से सन्तप्त हो उठा । उन्होंने सोचा भगवान् शंकर जी की बात न मान , यहां आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है। वह अपने पति भगवान् शंकर के इस अपमान को सह न सकीं । उन्होंने अपने उस रूप को तत्क्षण वहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया । वज्रपात के समान इस दारुण – दुःखद घटना को सुनकर शंकर जी ने क्रुद्ध हो अपने गणों को भेज कर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णतः विध्वंस करा दिया । सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्मकर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया । इस बार वह ‘ शैलपुत्री ‘ नाम से विख्यात हुईं । पार्वती, हैमवती भी उन्हीं के नाम हैं। उपनिषद् की एक कथा के अनुसार इन्हींने हैमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व – भंजन किया था । शैलपुत्री ‘ देवी का विवाह भी शंकर जी से ही हुआ । पूर्व जन्म की भाँति इस जन्म में भी वह शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं । नव दुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्त्व और शक्तियाँ अनन्त नवरात्र – पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है । इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को ‘ मूलाधार ‘ चक्र में स्थित करते हैं । यहीं से उनकी योग साधना का प्रारम्भ होता है ।

कलश स्थापना विधि – जिस स्थान पर हम कलश स्थापना एवं माता की चौकी बिठा रहे हैं वहां पर ठीक से साफ सफाई करें अगर चौका (जमीन) कच्ची है तो गाय के गोबर से लेपन करें चौकी के आसपास की दीवारों को रंगीन पेपर से सजाएं एक छोटा मिट्टी का बर्तन ले उसमें पीली मिट्टी डालें मिट्टी का चौथाई हिस्सा जौ लें इसे मिट्टी में ठीक से मिलाए और आवश्यकतानुसार पानी डालें उस मिट्टी के बर्तन के ऊपर मिट्टी कलश पानी भरकर रखें मिट्टी के कलश में एक सुपारी और एक सिक्का तथा गंगाजल डालें कलश की गर्दन मतलब की ऊपरी हिस्से पर कलावा बांधे कलश पर स्वास्तिक ( सातिया ) बनाएं कलश के ऊपर 5 पत्तों के आम के टहनी रखें अगर आम के पत्ते नहीं मिले तो अशोक के 5 पत्तों की टहनी रखें उसके ऊपर जटा वाला हरा नारियल एवं उस नारियल पर एक लाल अंगोछा अथवा माता की लाल चुन्नी लपेटे उसके ऊपर कलावा बांधे नारियल के ऊपर फूलों की माला रखें । इस कलश की स्थापना उत्तर दिशा में करें अथवा उत्तर पूर्व में करें माता की चौकी पूर्व दिशा में रखें जिससे की पूजा करने वाले का मुंह पूर्व दिशा की तरफ हो चौकी पर लाल कपड़ा बिछाए उसे कलावा से चौकी पर बाँधे लाल कपड़ा बिछाकर माता की प्रतिमा रखें ।अखंड दीपक जलाएं अथवा प्रतिदिन सुबह-शाम दीपक अवश्य जलाएं सुबह शाम माता की आरती जरूर करें अगर कोई विशेष प्रसाद नहीं बन सके तो प्रतिदिन मां का मीठे दूध का भोग अवश्य लगाएं ।

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