गांव बवानियां के स्वयं सहायता समूह की महिलाओं का कमाल
विश्व वर्ष 2023 को मोटे अनाज वर्ष के रूप में मना रहा है

भारत सारथी/ कौशिक 

नारनौल। जिला महेंद्रगढ़ के गांव बवानियां के स्वयं सहायता समूह की महिलाओं द्वारा तैयार किए बाजरे के लड्डू की मिठास जापान तक पहुंच चुकी है। विश्व वर्ष 2023 को मोटे अनाज वर्ष के रूप में मना रहा है। संगठन से जुड़ी 16 महिलाओं ने पिछले दो माह के दौरान 50 क्विंटल से अधिक लड्डू तैयार कर करीब 10 लाख रुपए की आय भी प्राप्त की है। एक सप्ताह पूर्व ही रोहतक से 3 लाख रुपए के बाजरे के लड्डू की आपूर्ति की गई है।

दो करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट तैयार, छह माह में 10 गुणा बढ़ जाएगा उत्पाद

इन महिलाओं द्वारा तैयार उत्पादों की गुणवत्ता लोगों को इतनी भा रही है कि जहां स्टॉल लगते हैं, वहीं से ऑर्डर भी बुक हो रहे हैं। गांव बवानियां की बनारसी देवी ने वर्ष 2001 में मोटे अनाज से खाद्य सामग्री बनाने का काम शुरू किया था जो अब देशभर में उसकी पहचान बन गया है। इनके द्वारा बनाए महिला स्वयं सहायता समूह से वर्तमान में 300 महिलाएं जुड़ चुकी हैं।

इस संगठन को एक एकड़ में दो करोड़ रुपए लागत से एक प्रोजेक्ट की मंजूरी मिल चुकी है तथा आगामी छह माह में इस प्रोजेक्ट से उत्पादन शुरू कर दिया जाएगा। 10 फरवरी को जापान से पहुंचा महिलाओं का प्रतिनिधिमंडल भी उत्पादों के स्वाद चख चुका है। स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने जापान के इस प्रतिनिधि मंडल को बाजरे से बने लड्डू, नमकीन, मटर, बिस्कुट के पैकेट भेंट किए थे। उन्होंने स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को हर संभव सहयोग का आश्वासन भी दिया था। 

देशभर में लगातार बढ़ रही उत्पादों की मांग

स्वयं सहायता समूह से जुड़ी इन महिलाओं के उत्पादों की मांग देशभर में है। दिल्ली, मुंबई, गुजरात, गोवा, चंडीगढ़, रोहतक और गुरुग्राम सहित देश के बड़े शहरों में बाजरे के लड्डू व नमकीन की बड़ी मांग है। यह समूह देशभर में 50 से अधिक बड़े स्तर के मेलों, प्रदर्शनी, पशु प्रदर्शनी, कृषि मेलों में कृषि विज्ञान केंद्र महेंद्रगढ़ जिला बागवानी विभाग, कृषि विभाग, नाबार्ड की मदद से स्टॉल लगा चुकी हैं। देशभर में लगाए गए इनके स्टालों के माध्यम से बुकिंग कर उत्पादन पहुंचाए जाते हैं। इसके लिए संगठन को एडवांस में कुछ राशि भी मिल जाती है। तय समय में उत्पाद तैयार कर भेजे जाते हैं।

अनपढ़ होने के बावजूद भी बनारसी ने किया 300 महिलाओं को कामयाब

गांव बवानियां की 50 वर्षीय बनारसी देवी ने अनपढ़ होने के बावजूद भी वर्ष 2001 में संघर्ष शुरू कर दिया था। इसके बाद कृषि विज्ञान केंद्र, बागवानी विभाग, कृषि विभाग से समय-समय पर प्रशिक्षण लेकर स्थानीय अनाज, सब्जी व फलों से खाद्य सामग्री बनानी शुरू कर दी। संगठन द्वारा स्थानीय स्तर पर उपलब्ध अनाज, फल व सब्जियों के 15 प्रकार के अचार, मुरब्बा, जैम, चटनी, सॉस, आंवले का मुरब्बा सहित अन्य उत्पाद बनाने शुरू किए गए। दो माह पूर्व बाजरे के लड्डू, नमकीन व मटर बनाने शुरू किए थे, जिनकी मांग तेजी से बढ़ रही है।

देशी तरीके से तैयार होता है हर उत्पाद

बनारसी देवी ने बताया कि बाजरे के लड्डू में बाजरे का आटा, देसी घी, तिल, देशी खांड, गूंद, बादाम व मूंगफली का प्रयोग किया जाता है। वहीं नमकीन व मटर में बाजरे का आटा व स्थानीय स्तर पर मिलने वाली मिर्ची तथा सरसों का तेल प्रयोग किया जाता है। इन उत्पादों का प्रयोग लोगों की सेहत सुधारने में कारगर साबित होगा।

संसाधनों के अभाव में मांग के अनुसार तैयार नहीं होते उत्पाद

स्वयं सहायता समूह ने एक फरवरी को अपना स्थाई केंद्र भी शुरू कर दिया था। बनारसी देवी के घर पर ही सभी प्रकार के उत्पाद तैयार किए जाते हैं। संगठन की बनारसी देवी, माया देवी, कृष्णा, कविता, सुषमा, सविता, मंजू, भगवंती, सुमन, रेखा, विमला, चलती, राजबाला, मंजू कुमारी, सरोज, माया ने बताया कि संसाधनों के अभाव में मांग के अनुसार उत्पाद तैयार नहीं कर पातीं। इसके लिए दिन-रात मेहनत करती हैं। प्रोजेक्ट को मंजूरी मिल चुकी है। गांव में ही एक एकड़ में यह प्रोजेक्ट बनेगा। प्रोजेक्ट में उपकरण, मशीन सहित जरूरत का सभी सामान उपलब्ध हो सकेगा तो तेजी से कारोबार भी बढ़ेगा।

error: Content is protected !!