नारनौल , अटेली या कोसली कहां से मैदान में उतरेगी आरती राव?

अब केक पर तैयार होगी ‘राव राजा’ की अगली रणनीति 
11 फरवरी को ‘रामपुरा हाऊस’ में समर्थकों से होगा मंथन
अटेली के बाद रामपुरा हाउस की मुफीद सीट जाटुसाना (कोसली)
पिता की राजनीति ‘भाग्यशाली’ सीट से मैदान में उतरेगी आरती राव ?
क्या भाजपा की टिकट पर होगी राजनीति में एंट्री या कुछ नया करेंगे राव राजा

अशोक कुमार कौशिक 

रामपुरा हाउस के ‘राव राजा’ दशकों से दक्षिणी हरियाणा की राजनीति का केंद्र बिंदु बने रहे है। जब भी रामपुरा में कार्यकर्ताओं की भीड़ एकत्रित होती है, तो राजनीति की भावी और प्रभावी रणनीति के संकेत होते है। अहीरवाल के क्षत्रप केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह 11 फरवरी को अपने जीवन के 72 वर्ष पूरे करने जा रहे हैं। लोकसभा चुनाव करीब आ रहे हैं। सक्रिय राजनीति से ‘संन्यास’ से पहले बेटी आरती को विधानसभा या लोकसभा में भेजना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती है। इसके लिए वह नारनौल क्षेत्र के एक गांव में ऐसा संकेत दे चुके हैं। उसके बाद आरती राव नारनौल में सक्रिय हुई और कार्यकर्ताओं का मन टटोला। अपने जन्मदिन पर एकत्रित होने वाले खास समर्थकों के साथ राव का अगली रणनीति पर ठोस निर्णय लेना तय माना जा रहा है। 11 फरवरी को रामपुरा हाउस तय करेगा आगामी लोकसभा चुनाव की नई रणनीति कि  बहुत समय राजनीति को किस तरह से संचालित करना है।

यह परंपरा कोई नई नहीं है। इससे पूर्व दिवंगत अहीर राजा राव बिरेंद्र सिंह ने सक्रिय राजनीति में रहते हुए वर्ष 1977 में अपने बड़े बेटे राव इंद्रजीत सिंह को राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में जाटूसाना हलके से विधायक बनाने का कार्य कर दिया था। वर्ष 1996 में राव बिरेंद्र सिंह सक्रिय राजनीति से अलग हो गए थे। सक्रिय राजनीति में सन्यास लेने से पहले उन्हें एक बात का मलाल अवश्य रहा कि उनके मझंले बेटे राव अजीत सिंह को जनता ने स्वीकार नही किया। राव अजीत सिंह को रेवाड़ी और अटेली की जनता ने नकार दिया था।

इस दौरान राव बिरेंद्र सिंह केंद्र और इंद्रजीत प्रदेश की राजनीति में आगे बढ़ते रहे। जब तक राजा राव बिरेंद्र सिंह सक्रिय राजनीति से अलग हुए तब तक इंद्रजीत राजनीति के मैदान में पूरी तरह परिपक्व हो चुके थे। राजनीतिक विरासत के हस्तांतरण में जिस तरह से राव बिरेंद्र सिंह कुशलतापूर्वक अपना काम कर गए थे, ठीक वैसी ही उम्मीद चेहते भक्त राव इंद्रजीत सिंह से लगाए हुए हैं।

– आने वाला लोकसभा चुनाव सक्रिय राजनीति से विदाई या लड़ाई?

राव राजा इंद्रजीत सिंह के लिए आगामी निर्णायक चुनाव होगा। भाजपा में उम्र की सीमा को देखते हुए उनके अगले लोकसभा चुनाव में टिकट को लेकर भले ही संशय की स्थिति पैदा की हो, परंतु राव गत वर्ष 23 सितंबर को पटौदा रैली में यह स्पष्ट कर चुके हैं कि वह पूरी तरह फिट हैं। वह एक लोकसभा चुनाव और लड़ने के लिए तैयार हैं। वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए ऐसा नहीं दिखाई देता कि भाजपा उनको फिर से मैदान में उतारेगी। साथ ही उनका बेटी आरती राव को आने वाले चुनावों में हर हाल में विधानसभा या लोकसभा में भेजना जरूरी हो चुका है। पिछले विधानसभा चुनावों में रेवाड़ी सीट से आरती राव की टिकट को भाजपा की ‘ना’ ने राव का सपना पूर पांच साल पीछे धकेल दिया था।

एक साथ टिकट की राह नहीं आसान

भाजपा में रहते हुए राव और उनकी ‘लाडली’ आरती दोनों के एक साथ टिकट की राह आसान नहीं है। दोनों के लिए आने वाले चुनावों में खड़े होना लाजमी है। अहीरवाल में राव की मजबूत पकड़ से भाजपा हाईकमान अच्छी तरह से वाकिफ है। आगामी चुनावों में अहीरवाल में पिछला प्रदर्शन दोहराने के लिए पार्टी के लिए राव का साथ जरूरी है। इस क्षेत्र में राव की नाराजगी पार्टी का खेल बिगाड़ने का काम कर सकती है। क्षेत्र की कई सीटों पर राव नाराजगी की स्थिति में भाजपा का खेल बिगाड़ सकते हैं। 

– क्या पिता की राजनीति शुरुआत सीट से मैदान में उतरेगी आरती राव ?

अतीत से ‘रामपुरा हाउस’ के लिए अटेली के बाद दूसरी चहेती सीट जाटूसना रही है जो अब कोसली का एक हिस्सा है। इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में जाटूसाना हलके के ही गांव हैं। वर्ष 1977 में राजनीति में पूरी तरह एक्टिव होते हुए बडे राव राजा ने राव इंद्रजीत सिंह ने जिस जाटूसाना विधानसभा क्षेत्र के रास्ते विधानसभा की दहलीज पर कदम रखा था‌। इसी कोसली सीट पर राव इंदरजीत सिंह ने अपने छोटे भाई यादवेंद्र सिंह को राजनीति ककाहरा सीखा विजेता बनाया था। इसी मुफीद सीट से अपने खासम खास विक्रम सिंह को जीत का ताज पहनाया था।

जिला महेंद्रगढ़ के नारनौल के बाद विगत दिनों कोसली विधानसभा क्षेत्र के लगभग डेढ़ दर्जन गांवों में दौरा कर, राव की बेटी आरती ने इस क्षेत्र की राजनीति में नई चर्चाओं को जन्म दिया है। अटेली और नारनौल के बाद यहां भी आरती राव का जिस तरह से स्वागत हुआ, उससे यह साफ हो चुका है कि क्षेत्र की राजनीति का हस्तांतरण एक पीढ़ी आगे बढ़ रहा है।

पूर्व सीएम और अहीरवाल के दिवंगत राजा राव बिरेंद्र सिंह की राजनीतिक विरासत में जाटूसाना व अटेली हल्का सबसे मजबूत किला बना रहा। उनके सक्रिय राजनीति से अलग होने से पहले ही राव इंद्रजीत सिंह ने रामपुरा हाउस के मजबूत किले को और अधिक मजबूती प्रदान करने का काम किया। खुद केंद्र की राजनीति में प्रवेश करने के बाद राव ने अपने छोटे भाई राव यादुवेंद्र सिंह को वर्ष 2005 के विधानसभा चुनावों में जाटूसाना के रास्ते चंडीगढ़ पहुंचाने का काम किया था। वर्ष 2009 के विधानसभा चुनावों से पहले जाटूसाना की जगह कोसली नया हलका बन गया था। इन चुनावों में एक बार फिर रामपुरा हाउस समर्थकों ने राव यादुवेंद्र सिंह को विधानसभा में भेजने का काम किया था।

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को अलविदा करने के साथ ही राव इंद्रजीत सिंह और उनके भाई राव यादुवेंद्र सिंह के राजनीतिक रास्ते बदल चुके थे। राव यादवेंद्र सिंह ने अपने भाई का साथ छोड़कर भूपेंद्र सिंह हुड्डा का दामन थाम लिया।

भाजपा में आने के बाद कोसली हलके से राव इंद्रजीत सिंह ने बिक्रम ठेकेदार को न सिर्फ पार्टी की टिकट दिलाई, बल्कि उन्हें विधानसभा में भेजने के लिए भाई को हार का रास्ता दिखा दिया था। इस चुनाव रामपुरा हाउस समर्थक दो भाग हो गए थे। इसके बाद दोनों भाइयों के बीच राजनीतिक मतभेद भी पैदा हो गए थे। दो बार विधायक बनने के बावजूद यादुवेंद्र इस क्षेत्र में मजबूत पैठ स्थापित करने में नाकाम रहे। इसके बाद वह पूर्व सीएम चौ. भूपेंद्र सिंह हुड्डा के खेमे में शामिल हो गए।

– आक्रामक दौरों ने बढ़ाई बेचैनी

आरती ने जिस तरह से विगत दिनों एक के बाद एक कई गांवों में दौरे किए, इससे उनकी कोसली क्षेत्र में आक्रामक सक्रियता सामने आई है। विधानसभा में प्रवेश करने के लिए पिता की तर्ज पर वह इस क्षेत्र को प्राथमिक आधार बनाने की रणनीति पर काम करने के संकेत दे रही हैं। उनका इस क्षेत्र में एक्टिव होना उनके चाचा के लिए तो परेशानी बढ़ाने वाला हो ही सकता है, साथ ही मौजूदा विधायक लक्ष्मण सिंह यादव के लिए भी यह खतरे की घंटी से कम नहीं माना जा सकता। लक्ष्मण सिंह यादव को विधायक बनाने में राव ने उनका खुलकर साथ दिया था। इसके बाद लक्ष्मण सिंह ने इस क्षेत्र को सुरक्षित बनाने के लिए जमीनी स्तर पर मजबूत जनाधार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

कार्यकर्ताओं में नजर आया पूरा जोश

आरती के कोसली हलके के गांवों में दौरों को लेकर ज्यादा प्रचार नहीं किया गया था। दौरों का कार्यक्रम भी अचानक ही फाइनल किया गया था। उनकी सभाओं में जिस तरह से राव समर्थकों ने जोश और उत्साह दिखाया, उससे यह स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं कि आरती को विधानसभा में पहुंचाने के लिए क्षेत्र के राव समर्थक पूरी ताकत झोंकने के लिए तैयार हैं। राव के लिए अपने इस पुराने और मजबूत किले को आरती के नाम करने में ज्यादा परेशानी नहीं आएगी। बहरहाल मंगलवार को आरती के इन दौरों ने क्षेत्र में नई राजनीतिक चर्चाओं को जन्म देने का काम कर दिया है। देखना यह होगा कि आने वाले समय में इस क्षेत्र की राजनीति का ऊंट किस करवट बैठने वाला है।

वैसे गोदबलाहा से डूंडाहेड़ा तक की राजनीति अब पहले जैसी नहीं रही। भाजपा ने भी उनके विरोधियों को भूपेंद्र सिंह हुड्डा की तरह पालपलोश कर सशक्त कर दिया है। नांगल चौधरी- महेंद्रगढ़ से लेकर पटौदी- सोहना तक अब राह आसान नहीं है। पहले लोकसभा चुनाव होने की स्थिति में राव की टिकट को लेकर संशय नहीं है, परंतु आरती को चुनाव मैदान में उतारने के लिए मजबूत रणनीति तैयार करना राव के लिए जरूरी हो चुका है।

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