भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। गुरुग्राम में नगर निगम चुनाव की चर्चाएं चल रही हैं। भाजपा के अधिकांश फरवरी में चुनाव होना बता रहे हैं लेकिन अभी वार्डबंदी तक तो हुई नहीं है। पुरानी वार्डबंदी की कोर्ट में मार्च की तारीख लगी हुई है। जनवरी अब समाप्त हो रहा है तो विश्वासपूर्वक कह सकता हूं कि फरवरी में तो चुनाव संभव है ही नहीं। आगे मार्च में होंगे या फिर लंबा समय खिंचेगा, यह समय के गर्भ में है, क्योंकि वार्डबंदी घोषित होने पर आपत्तियां भी मांगी जाएंगी और उसमें पहले की तरह कोई कोर्ट भी जा सकता है। आप ही अनुमान लगाएं कि कब हो सकते हैं? लेकिन देखा जो रहा है कि भाजपा में अलग-अलग गुट टिकट लेने के लिए जुगत बिठाने लगे हैं। अब हम नाम तो क्या लें पर मोटा-मोटा कह दें कि अनेक गुट सक्रिय हो चुके हैं और भाजपा की एकजुटता के दावे की सच्चाई सामने आने लगी है।

ऐसा केवल भाजपा में ही नहीं अपितु कांग्रेस में भी दिखाई दे रहा है। कांग्रेस में मेयर की टिकट के लिए सुना जा रहा है कि पूर्व मंत्री सुखबीर कटारिया और पूर्व मंत्री धर्मपाल यादव के पुत्र आपस में मंत्रणा कर रहे हैं कि कैसे किया जाए। कहीं कोई युवा टिकट न ले जाए, जिससे हम हाशिये पर चले जाएं।  कांग्रेस का सोचना है कि भारत जोड़ो यात्रा के पश्चात कांग्रेस की ओर जनता का विश्वास बढ़ा है और युवा नेता दीपेंद्र हुड्डा के सक्रिय होने से गुरुग्राम से कांग्रेस का उम्मीदवार जीत सकता है। तात्पर्य फिर वही कि कांग्रेस में भी मेयर की टिकट के लिए जद्दोजहद चल रही है।

इसी प्रकार भाजपा के सहयोगी दल जजपा भी दावा कर चुकी है कि अलग चुनाव लड़ेंगे और जजपा भी अपने मेयर के उम्मीदवार की तलाश लगी हुई है, जिसमें नरेश सहरावत, रितु कटारिया, दलबीर धनखड़ आदि के नाम चर्चा में हैं।

 ऐसी स्थिति आप पार्टी में भी है। यहां भी यह सोचा जा रहा है कि काम करने वाले सक्रिय कार्यकर्ता को टिकट दी जाए या फिर निष्क्रिय रहे कार्यकर्ता अपने पुराने वर्चस्व और धन की ताकत दिखाकर टिकट लेने में कामयाब हों। इससे दिखाई दे रहा है कि चुनाव होने का तो पता नहीं लेकिन सभी दलों के टिकटार्थी अपनी सैटिंग बनाने में लगे हैं।

error: Content is protected !!