सरहद पार से आया मोहब्बत का तोहफा , बुजुर्गो की 47 से पहले की यादों
हांसी में पाकिस्तान से आई पंजाबी जूतियों की चर्चा घर घर में

हांसी ,24 दिसम्बर 1 मनमोहन शर्मा

सोशल मीडिया ने अब अपने पिछड़े ईष्ट मित्रों व परिजनो से मिलने का एक साधन बन गया है । इसका प्रयोग यदि आप सकात्मक दृष्टि से करेगें तो फायदा बहुत है । ऐसे ही यूट्यूब चैनल से हम कुछ भी जानकारी ले सकते है ।

हांसी नगर में एक समाजसेवी व कंप्यूटर हार्डवेयर का इंजीनियर पुनीत मदान ने भारत – पाकिस्तान के वृद्धों को आपस में पुरानी यादों को उनसे सम्पर्क करके सामाजिक भाईचारा को मजबुत करने की बीड़ा उठाई है । इस मूहिम में एक टीम बनाकर समाज को सन्देश दिया है कि आज का युवा सकात्मक विचारों को अपनाते हुए दोस्ती के पैगाम का प्रचार व प्रसार में जुटा हुआ है । पाकिस्तान के तारिक इक़वाल ने अपने पूर्वजों की दोस्ती का सन्देश देते हुए पुनीत मदान के पास पंजाबी जूती की चर्चा हांसी शहर में चल रही है ।

इस बारें में इस संवाददाता ने youtube पर PMTV Digital चैनल के माध्यम से विडियो डालने वाले हांसी के पुनीत मदान को उनके दादा के गांव कुकारा, झंग पाकिस्तान से तोहफे के रूप में पंजाबी जूती जिसे वहां मुल्तानी खुस्सा कहा जाता है , के दो जोड़े जूती के आये है । वे इस तोहफे को पाकर खुशी जाहिर की है ।

उन्होंने बताया कि शख्स तारिक इक़बाल जो की उसी गांव से तालुक रखते है और फिलहाल वे दुबई में रहते है ने बड़ी शिद्दत से भेजा है ।

समाजसेवी पुनीत मदान ने बताया कि उनके दादा 47 से पहले झंग के रहने वाले थे । वे पाकिस्तान में हकीम का कार्य करते थे । वे 47 के बाद हांसी में आबाद हुए एव आजाद चौक (नीम चोक) हांसी में हकीम का काम किया|

तारिक इकबाल ने आपने गाव से विस्थापित हुए लोगों को youtube के माध्यम से देख कर उन्होंने पुनीत को संपर्क किया और गांव की और से कोई निशानी भेजने की इच्छा जाहिर की

याद रहें | खास बात यह है कि ये खुस्से यानि जूती उन्होंने अपने गाव के उन मोची परिवार से बनवाई है , जिनके दादा परदादा 47 से पहले से जूती बनाने का काम करते थे ।

उनसे बनवा कर तारिक इक़बाल ने अपने पास दुबई मंगवाई और हांसी के मेरे दोस्त अशोक भूटानी जो दुबई परिवार सहित घुमने गए थे उनको होटल में पंहुचा कर आये ताकि हांसी पहुच जाए |

पुनीत मदान ने बताया उनके लिए एक इमोशनल फीलिंग है क्योकि ये जूती उस परिवार के बन्दे ने बनाई है जिनसे कभी उनके यानि पुनीत मदान के दादा हकीम श्री स्वः अमीर चंद मदान 47 से पहले बनवाया करते होंगे | देखकर बहुत ख़ुशी हुई की अगली पीढ़ी यानि आज की पीढ़ी भी अपने गाव की लोगों से मोहब्बत करते है| उन्होने आभार जताया

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