-बच्चों को सर्दियों से बचाने के लिए हर साल चलाते हैं अभियान
-कोरोना महामारी के समय पैदल जाने वालों को भी पहनाए थे जूते

गुरुग्राम। कोरोना महामारी के समय पैदल जाने वालों को जूते पहनाने की शुरुआत करने वाले नवकल्प फाउंडेशन ने शुक्रवार से सर्दी में बच्चों को जूते पहचाने का काम शुरू किया। जूतों के साथ गर्म स्वेटर भी वितरित की गई।

वैदिक कन्या स्कूल में बच्चों को कपड़े के जूते पहनाकर यह अभियान शुरू किया। करीब 100 बच्चों को जूते वितरित किए गए। अभियान की शुरुआत माड़ूमल स्कूल की पूर्व प्रिंसिपल संतोष जैन, प्रख्यात शिक्षाविद् इंदू जैन, आर्य समाज जैकबपुरा के प्रधान सीपी गुप्ता, नवकल्प के कला संस्कृति प्रकल्प की संयोजिका मीनाक्षी सक्सेना, वैदिक विद्या प्रचारिणी सभा के उपाध्यक्ष मुकेश गुप्ता, वैदिक कन्या स्कूल की प्रिंसिपल किरण गुगलानी ने की। अभियान में संतोष जैन व इंदू जैन ने अपने परिवार के मुखिया स्व. हरी चंद जैन और नूंह के प्रमुख समाजसेवी गौरी शंकर मंगला ने अपने पिता स्व. ओम प्रकाश मंगला की स्मृति में अपना योगदान दिया। जूते वितरण अभियान में शामिल सभी अतिथियों ने इस अभियान की भरपूर सराहना की और कहा कि कोरोना काल से ही नवकल्प ने सेवा कार्यों के माध्यम से समाज के लिए अच्छा काम किया है। इसके साथ ही रक्तदान शिविर, पर्यावरण संरक्षण, पौधारोपण, पंछियों के लिए दाना पानी घौंसला, योग कैंप जैसे कई कार्य करती रहती है।

इस अवसर पर नवकल्प फाउंडेशन के फाउंडर अनिल आर्य ने बताया कि ठंड तीखी होने लगी है। हमारे आसपास ही बड़ी संख्या स्कूल जाने वाले ऐसे बच्चों की है, जिनके तन पर स्वेटर और पांव में जूते नहीं होते। मानवता के नाते हम सबका यह दायित्व बनता है कि इन बच्चों को कुछ तो राहत दें। इसी संकल्पित मन से जरूरतमंद बच्चों को कड़कड़ाती ठंड से बचाव के लिए नवकल्प फाउंडेशन्स का यूनिफार्म स्वेटर्स/ जूते वितरण का अभियान शुरू किया है। इस वर्ष आर्थिक रूप से कमजोर करीब 2000 बच्चों को उपहार स्वरूप गर्म स्वेटर्स/ जूते प्रदान किये जाने का लक्ष्य है। संस्था ने सभी से निवेदन किया है कि इस महत्वपूर्ण अभियान में योगदान प्रदान कर इसको सफल बनाएं, ताकि समाज के वंचित वर्ग के बच्चे आने वाली कड़कड़ाती से बचकर निर्बाध अपने विद्यालय जाकर शिक्षा ग्रहण कर पाएं। श्री आर्य ने कहा कि सक्षम संवेदनशील मित्रों की मदद से ही कोरोना काल में टीम नवकल्प ने आग उगलती सड़कों पर नंगे पांवों गुजर रहे श्रमिकों, बच्चों, महिलाओं को करीब 5000 जोड़ी चप्पलें पहनाई थीं। तब भी यही संकल्प था और अब भी।   

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