गुरुग्राम 8 नवंबर; तरविंदर सैनी (माईकल) के अनुसार सामान्य वर्ग को दिए गए दस फीसदी ईडब्ल्यूएस कोटे को लेकर शांति इसलिए बरती जा रही है समूचे देश में चूंकि शुद्र वर्ण के लोगों को इसमें स्थान नहीं दिया गया है और यदि भूल से उनकी हिस्सेदारी तय कर दी गई रहती समानता के विचारों को लेकर तो अभी तक हंगामा मच गया होता इस निर्णय के विरोध में परन्तु अब जब दलित पिछड़े वर्ग के गरीबों को इस व्यवस्था में नहीं रखा गया है तो स्वर्ण समाज के लोगों ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया है प्रेम और आदर से क्योंकि अपने लिए है तो आरक्षण अच्छा है । खैर….

अब सवाल यह आता है कि आखिर किसे आर्थिक रूप से कमजोर माना जाएगा और इस आरक्षण की समयावधि क्या रहेगी जिसे भी तय किए जाने की बातें हुईं मगर इस दिशा में कोई निर्णय नहीं लिया जा सका है ।
चीफ जस्टिस यू यू ललित और जस्टिस एस रवींद्र भट्ट की राय भले ही अल्पमत में रह गई हों मगर उनका स्टैंड था कि सामान्य वर्ग के आर्थिक कमजोरों को आरक्षण देना और एससीएसटी ओबीसी वर्ग के आर्थिक कमजोरों को इस कोटे से बाहर रखना बेहद निराशाजनक और भेदभावपूर्ण कदम है जो संविधान के तहत मिली समानता के अधिकारों की सीधी उल्लंघना है , उन्होंने कहा कि संविधान किसी भी वर्ग को बाहर रखने की इजाजत नहीं देता है इससे समाजिक ताना बाना कमजोर होगा ।

पूर्व में आम आदमी पार्टी नेता संजय सिंह ने इसे एससीबीसी को मिले आरक्षण के लाभ को समाप्त करने वाला निर्णय बताया था तो अब सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद डीएमके नेता स्टारलीन ने आपत्ति जताई है जिन्हें लगता है कि सामाजिक न्याय और समानता की लड़ाई को यह एक बहुत बड़ा झटका है ।

चर्चाएं तो सरकारी संस्थाओं के निजी हाथों में सौंप दिए जाने ,ठेकेदारी प्रथा को बढ़ावा देने तथा आरक्षण को समाप्त कर दिए जाने और पहले से लाखों नोकरियों का जो बैकलॉग है उसे पूरा नहीं किए जाने के विषय को लेकर भी है लोग आशंकित हैं कि एससीबीसी कोटे की नोकरियाँ कम और सामान्य वर्ग को मिले दस फीसदी कोटे से नोकरियाँ अधिक दी जाने की संभावनाएं लग रही हैं और जब ऐसा हो तो स्वर्ण समाज को क्यों बुरा लगे आरक्षण ?

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