समर्पण और अच्छे गुणों की शुरुआत घर से होती है
सच्चे गुरु की संगत से ही सत्संग मिलता है

चरखी दादरी/भिवानी जयवीर फौगाट,

7 नवंबर, संत शिरोमणि गुरु नानक देव जी की जयंती के साथ साथ गंगा स्नान के दिन सत्संग का आयोजन होना अध्यात्म की त्रिवेणी के समान है। वैसे भी सत्संग की महिमा हर त्योहार हर दिन से बड़ी है क्योंकि सत्संग जीव के जन्म सुधार का काम करता है। सच्चा कल्याण सत्संग से होता है। यह सत्संग विचार परम संत सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने गुरु नानक देव जयंती के अवसर पर होने वाले सत्संग की तैयारियों हेतु जुटे सेवादारों को दर्शन देते हुए प्रकट किए। हजारों की संख्या में एकत्रित हुए सेवादारों को सत्संग परोसते हुए हुजूर ने कहा कि ये मन बड़ा ताकतवर है इसे तो इससे ताकतवर को सौंपने में ही भलाई है। मन से ताकतवर तो सच्चा पूर्ण संत सतगुरु है। संत सतगुरु की संगत की खातिर यदि आपको घास की रोटी भी खानी पड़े तो चाव से खा लो।

उन्होंने सेवादारों को सेवा का महत्व बताते हुए फरमाया कि संगत की सेवा सतगुरु की सेवा है। आप बड़े भागी जीव हो जो संगत की सेवा के लिए एकत्रित हुए हो। सेवा और कर्तव्य में भी फर्क होता है। हमारे जीवन के दैनिक चर्या में हम अनेकों सेवाएं अपने कर्तव्य के अनुसार करते हैं लेकिन सूरत की सेवा सबसे ऊंची है यही सेवा आपको परमात्मा से मिलाती है। गुरु जी ने फरमाया कि हम इस संसार में आकर गाफिल हो उठते हैं और इस जीवन को स्थाई मान बैठते हैं। हम क्यों आए थे और क्या करने आए थे ये बात हम बिसार बैठे हैं। हम लंबे पांव पसार के सोए हुए हैं जबकि हमारी असल मंजिल बहुत दूर पड़ी है। जो जिस चीज में लगा है उसको उसी में आनंद आ रहा है। निंदक को निंदा में, झूठे को झूठ में वहशी को वासना में और भोगी को भोग में आनंद आ रहा है लेकिन ये आनंद आपको बर्बाद कर रहा है। असल आनंद अगर लेना है तो भक्ति का लो। सब काल की चक्की में पीस रहें हैं क्योंकि काल ने दयाल पुरुष से ऐसे जीव लूट के लिए मांग रखे हैं जो भक्ति से विमुख हैं। हुजूर ने कहा कि समर्पण और अच्छे गुणों की शुरुआत घर से होती है। इसी प्रकार सेवा भाव भी हमें मां बाप से ही मिलता है। जो मां बाप की सेवा नहीं कर सकता और उन्हें अपना आपा नहीं सौंपता वो गुरु को क्या समर्पण करेगा। उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान संस्कारों का देश है। संस्कृति और संस्कार हमें बचपन से ही मिलते हैं फिर हम कुराह क्यों हो जाते हैं। गलत मार्ग पर हम चलते हैं अपनी गलत संगत के कारण। भक्ति में संग का बड़ा महत्व है। सच्चे गुरु की संगत से ही सत्संग मिलता है।

खुद को इतना बुलंद करो कि खुदा भी रजा पूछे:

हुजूर महाराज जी ने कहा कि आप अपने आप को इतना बुलंद कर लो कि आपकी बुलंदी देखकर स्वयं खुदा आपसे आपकी रजा पूछे। हम तो गुरु की रजा पर ही शक करते हैं। उन्होंने कहा कि गुरु ना जाने आपकी किस तरह से परीक्षा ले ले लेकिन यह तय है कि जो इस परीक्षा में खरा उतर जाता है उसकी मौज हो जाती है। गुरु जी ने फरमाया कि सेवा वो है जिसमें गुरु की प्रसन्नता और रजा हो। अपनी नहीं गुरु की मर्जी परखो। गुरु के हाथ ही सतनाम धन रूपी खजाने की कुंजी है। उन्होंने कहा कि सत्संग का फायदा तभी है जब उस पर अमल फरमाओगे। सत्संग तो उन पवित्र आत्माओं के लिए है जो अपने जीवन को सुधारना चाहते हैं। सत्संग इच्छाओं के गुलामों के लिए नहीं है। अपना मन पवित्र करो ताकि उसमें अच्छे विचार टिक पाए।

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