भैया दूज का त्योहार हिंदुस्तान की संस्कृति को दर्शाता है : कंवर साहेब

ज्ञान गुणवान की संगत से और ध्यान तपस्वी के संग से बढ़ता है
यदि सुख में परमात्मा को याद रखें तो दुख आएगा ही नहीं

चरखी दादरी/रोहट, जयवीर फौगाट 

26 अक्टूबर, हिंदुस्तान की परंपराएं इतनी गहरी हैं यदि इनको पूर्ण निष्ठा के साथ मनाया जाए तो इस समाज से सब कुरीतियां मिट जाएं।आज हम जितना इनसे दूर होते जा रहे हैं समाज में उतने ही कष्ट बढ़ते जा रहे हैं। भैया दूज का त्योहार इसी परंपरा को और अधिक समृद्ध करता है। भैया दूज का त्योहार हिंदुस्तान की संस्कृति को दर्शाता है। हमारे देश में भाई बहन का नाता इतना पाक पवित्र और मजबूत है कि भाई बहन एक दूसरे पर अपनी जान भी वार देते हैं। यह सत्संग वचन परमसंत सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने सोनीपत के रोहट कस्बे में रोहतक रोड़ पर स्थित राधास्वामी आश्रम में फरमाए।

भैया दूज पर साध संगत को सत्संग देते हुए गुरु ने फरमाया कि अपनी बहन के मान-सम्मान के लिए तो राक्षस वृति के रावण ने भी अपना सम्पूर्ण राज और कुल नष्ट करवा लिया। उन्होंने फरमाया कि संगति हमेशा सज्जन की करो क्योंकि दुर्जन की संगति तो भट्ठी के अंगार की भांति है। ज्ञान गुणवान की संगत से और ध्यान तपस्वी के संग से बढ़ता है। हमारी संगत तो गिरे हुए लोगो की है फिर ध्यान भजन बंदगी और ज्ञान कहां से उपजेगा।  कमी हमारे अंदर है लेकिन दोष किसी और को देकर हम नाच ना जाने आंगन टेढ़ा की कहावत को ही चरितार्थ करते हैं। उन्होंने कहा कि परमात्मा की भक्ति के तो बड़े साधारण से नियम हैं। घर में प्यार प्रेम हो, बड़े बुजुर्ग मां बाप की सेवा हो, परोपकार के संस्कार हो तो वो घर मंदिर है और उस घर के सारे कार्य भजन ध्यान हैं। हुजूर ने फरमाया कि गुरु के पास यही ताकत है कि उन्होंने नाम की कमाई कर रखी है। उन्होंने फरमाया कि इंसान का धन बुरी वासनाओं से घटता है, ध्यान मूढ़ नर की संगत से घटता है और मान दुसरे के पास बिना बुलाए जाने से घटता है।  इंसान संसारी पदार्थों को पकड़ने में अपना समय गंवा रहा है। ये बिलकुल वैसा ही है जैसे पानी को मथने वाला माखन की मनोकामना करता हो। उन्होंने कहा कि हम तो अच्छे दिनों में परमात्मा को याद तक नहीं करते और जब दुख आता है तो उसको इतनी जोर जोर से पुकारते हैं जैसे हमसे बड़ा कोई भक्त ही नहीं है। हुजूर ने फरमाया कि यदि सुख में परमात्मा को याद रखें तो दुख आएगा ही नहीं। 

उच्च कोटि का अध्यात्म परोसते हुए हुजूर साहेब ने कहा कि यदि कल्याण चाहते हो तो पांच काम करो। पहला संत मिलन का प्रयास लेकिन संत ऐसा जो शब्दभेदी हो।  दूसरा हरि का भजन, लाखो करोड़ो काम छोड़ कर भी परमात्मा का भजन करो क्योंकि उसी ने हमें ये सुंदर तन और मन दिया और निज कल्याण का अवसर बक्शा। तीसरा काम दया करना सीखो, क्योंकि बिना दया के इंसान सिद्ध कसाई है। बिना दया के भक्ति का मूल ही नहीं है। गुरु जी ने चौथा काम जगत से उदास रहने का बताया। गुरु महाराज जी ने कहा कि अपने मन में दया और धर्म को सजा कर इस जगत से उदास बने रहो क्योंकि ये जगत तो एक सराय के समान है यहां कोई स्थाई नहीं है फिर उसे मोह क्या करना। उन्होंने पांचवां काम मीठा बोलना बताते हुए कहा कि मीठा बोला करो क्योंकि शब्द शब्द में भेद होता है। एक शब्द तो आपके हाथ में हथकड़ियां लगवा देता है वहीं दूसरा शब्द आपकी हथकड़ियों को खुलवा देता है। एक कटु वचन ने तो महाभारत रचवा दिया था।

गुरु महाराज जी ने गुरु हरगोबिंद सिंह जी और मुगल बादशाह जहांगीर का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि गुरु हरगोबिंद सिंह ने अपने साथ 52 बंदियों को मुक्त करवाया था इसलिए गुरुओं को बंदी छोड़ कहा जाता है। उन्होंने कहा कि अपने आप पर भरोसा करते हो लेकिन यदि यही भरोसा गुरु पर कर लेते हो तो वार से पार हो जाओगे। उन्होंने कहा कि दुनिया में सुखी रहने के दो ही रास्ते हैं। गलती हो जाए तो माफी मांग लो और दूसरा गलत है तो माफ कर दो। सन्तो की बात पर अमल किया करो। धोखा धड़ी को छोड़ कर परमात्मा की शरणाई रहो। अपने जीवन को पाक साफ करो। मेहनत का अन्न खाओ। पाक पबित्र अन्न आपके मन को पाक पवित्र रखता है। हक हलाल की कमाई खाओ पर त्रिया और पर धन से कभी नेह ना लाओ। प्रकृति की रक्षा करो और संतान को अच्छे संस्कार दो। घरों में प्यार प्रेम बना कर रखो।

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