भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। आदमपुर उपचुनाव के लिए मुख्य मुकाबला भाजपा-कांग्रेस के बीच माना जा रहा है। हालांकि आज आप पार्टी ने अपना उम्मीदवार सतेंद्र सिंह को घोषित कर दिया है लेकिन लगता नहीं कि उनका स्थान मुख्य मुकाबले में आएगा।

सर्वप्रथम हम बात करें भाजपा की तो भाजपा यदि यह समझती है कि यह कुलदीप बिश्नोई का गढ़ है और कुलदीप बिश्नोई का परिवार हार नहीं सकता है तो शायद गलती पर है। चौ. भजनलाल का रूतबा अलग था। आदमपुर की गलियों में कपड़े बेच मुख्यमंत्री तक पहुंचे थे, जबकि यह परिवार ऐश्वर्यपूर्ण जिंदगी जीने का आदी है और फिर भजन लाल के परिवार से चंद्रमोहन चुनाव हार ही रहे हैं। जसमा देवी भी चुनाव हार चुकी हैं और अभी हाल ही में भव्य बिश्नोई भी हार का मुंह देख चुके हैं और फिर कुलदीप बिश्नोई जाट विरोधी रही है, जबकि यह क्षेत्र जाट बाहुल्य है। गैर जाट और दलित बिश्नोई के साथ मिल जाते थे तो बिश्नोई परिवार जीत जाता था। 

वर्तमान में भाजपा का विरोध आम जनता में है। भाजपा के साथ दलित या पिछड़ावर्ग आ पाएगा, इसमें संदेह है। और फिर कुछ समय पहले कुलदीप बिश्नोई मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को सबसे अपरिपक्व मुख्यमंत्री तक कह चुके हैं और अब वह उन्हीं की तारीफ करते नहीं थकते। ऐसे में सोशल मीडिया पर ट्रोल हो रहा है कि ऐसे आदमी की बात का क्या विश्वास।

भाजपा ने अभी तक कुलदीप बिश्नोई या भव्य बिश्नोई को उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। वह प्रक्रिया चल रही है। प्रश्न यह उठता है कि जब यह सबको लग रहा है कि टिकट कुलदीप बिश्नोई परिवार को मिलेगी तो फिर यह देरी क्यों? भाजपा में भी आजकल कांग्रेस की तरह गुट बनने लगे हैं, जो सार्वजनिक तो नहीं हुए हैं लेकिन सूत्र बताते हैं कि ओमप्रकाश धनखड़ अपने आपको आगामी मुख्यमंत्री बनाने में प्रयास में लगे हैं और ऐसा ही कुछ अनिल विज के साथ भी है। राव इंद्रजीत का तो जगजाहिर है। तात्पर्य यह कि यह अंदरूनी खींचतान आदमपुर उपचुनाव में कहीं बाहर न आ जाए।

अब कांग्रेस की ओर देखें तो जबसे केंद्रीय नेतृत्व की ओर से भूपेंद्र सिंह हुड्डा को कमान सौंपी और उदयभान को प्रदेश अध्यक्ष और उनके साथ चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाए तब से कांग्रेस एकजुट होने के बजाय और बिखरती नजर आ रही है। 

भूपेंद्र सिंह हुड्डा की नाराजगी का एक प्रमाण तो कुलदीप बिश्नोई का अलग होना ही नजर आ रहा है। दूसरी ओर कुमारी शैलजा के समर्थकों की ओर से आगामी मुख्यमंत्री कुमारी शैलजा को बताया जा रहा है। इसी प्रकार किरण चौधरी या रणदीप सुरजेवाला इनके साथ नजर आ नहीं रहे। ऐसे में लगता नहीं कि कांग्रेस एकजुट हो रही है और सबसे बड़ा प्रमाण यह दिखाई देता है कि जब चौ. उदयभान अध्यक्ष बने तो उन्होंने कहा था कि अधिक से अधिक दो माह में संगठन बना लिया जाएगा लेकिन स्थितियां आज भी जस की तस ही दिखाई देती हैं। कुछ लोगों का तो कहना कि वही कहावत चरितार्थ हो रही है कि जो दूसरे के लिए गड्ढ़ा खोदता है वह खुद ही उसमें गिर जाता है। ऐसी स्थिति में यह कहना कि कांग्रेस एकजुट होकर चुनाव लड़ेगी, कुछ समझ नहीं आता।

सत्ता में सांझीदार जजपा का भी इस क्षेत्र में प्रभाव है और वह भी जाटों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं परंतु वर्तमान में ऐसा कहीं कोई ब्यान आया नहीं है कि हम कुलदीप बिश्नोई को जिताएंगे। कुछ कहना अभी जल्दी होगा लेकिन पिछले तीन साल का अनुभव देखें तो कहीं भी जजपा और भाजपा के कार्यकर्ताओं में मेल नजर आया नहीं है और जजपा भी अपनी अंदरूनी कलह से जूझ रही है।

इनेलो सुप्रीमो अभय चौटाला भी बड़े दावे से कहते हैं कि इस समय प्रदेश की जनता भाजपा की नीतियों और कार्यशैली से परेशान है और कांग्रेस का जनता के साथ न खड़ा होने से जनता उन्हीं के साथ है। वह अब सामने आ जाएगा कि कितनी जनता किसके साथ है। 

आप पार्टी की ओर देखें तो सतेंद्र सिंह को सबसे पहले उम्मीदवार घोषित कर बाजी मार ली है परंतु मजबूरी यह भी है कि उनके पास उम्मीदवारों की कमी भी है। सतेंद्र सिंह पहले कांग्रेस में थे फिर भाजपा में आए और अब आप पार्टी में आ गए, टिकट पा गए। कहने वालों का कहना है कि यह केवल टिकट लेने के लिए दल-बदलकर आए हैं। 

चर्चाएं बहुत चल रही हैं। सर्वप्रथम तो यही कि पंजाब में भी आप पार्टी है और एसवाइएल का पानी पंजाब हरियाणा को देने के लिए तैयार नहीं। दूसरी चर्चा यह कि कहीं भाजपा को लाभ पहुंचाने के लिए उन्होंने सतेंद्र सिंह को उम्मीदवार घोषित किया है।

जैसा कि विदित है कि यह जाट बाहुल्य क्षेत्र है और इसमें जाट उम्मीदवार एक तो आप पार्टी का हो गया, दूसरा इनेलो से भी जाट उम्मीदवार ही आएगा, तीसरे कांग्रेस का भी लगता है उम्मीदवार जाट ही होगा। ऐसी स्थिति में चर्चाएं हैं कि आप पार्टी जहां भाजपा कमजोर होती है, वहां तो जीतने के लिए सशक्त उम्मीदवार उतारती है और जहां भाजपा मुकाबले में हो तो वह दूसरी पार्टी की वोट काटने की भूमिका में आ जाती है। 

हरियाणा में किसी समय तीन लालों का जलवा होता था ताऊ देवीलाल, बंसीलाल और भजनलाल। ताऊ देवीलाल का परिवार बंटता ही रहा है। पहले चौ. रणजीत सिंह अलग रहे। वर्तमान में ओमप्रकाश चौटाला से उनके बड़े पुत्र अजय चौटाला ने अलग होकर अपनी नई पार्टी बना ली। वयोवृद्ध ओमप्रकाश चौटाला का कार्यभार छोटे पुत्र अभय ने संभाला और बड़े पुत्र का पुत्र गठबंधन कर सरकार में काबिज हो गया लेकिन सरकार में होने के बाद भी जनाधार बढऩे की बजाय घट रहा है। यह चुनाव ताऊ देवीलाल की भी परीक्षा होगी।

दूसरा चौ. बंसीलाल का तो जलवा पहले ही खत्म हो गया। अब चौ. भजन लाल का जलवे का इम्तिहान है। चौ. भजन लाल के बड़े पुत्र चंद्रमोहन तो फिजा खान मामले के बाद हाशिए पर चले ही गए और अब यदि इस चुनाव में चौ. भजन लाल के परिवार से कुलदीप बिनोई या भव्य बिश्नोई जीत हासिल न कर पाए तो यह जलवा भी समाप्त ही नजर आएगा।

उपरोक्त बातों से आपके सामने भी स्पष्ट हो रहा होगा कि यह उपचुनाव हरियाणा की राजनीति को नई दिशा दे सकता है। हर पार्टी का इम्तिहान है जनता के सामने भी और अपनी पार्टी और उनके कार्यकर्ताओं के सामने भी।

इस चुनाव के पश्चात जो अनुमाल लगाए जा रहे हैं वह सह कि कांग्रेस यह चुनाव नहीं जीती तो यह भूपेंद्र सिंह हुड्डा की हार मानी जाएगी, क्योंकि वर्तमान में उनकी कार्यशैली यह दर्शाती है कि वह समझते हैं कि जाटों का एकमात्र नेता मैं ही हूं। 

पत्रकार के नाते चर्चाओं का जिक्र करना कर्तव्य है लेकिन हमारी निजी राय अभी इस बारे में कुछ है नहीं। इस प्रकार सभी राजनैतिक दल लगता है अपने आपसे ही लड़ रहे हैं, परीक्षा होगी।

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