भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। गुरुग्राम में एक तारीख को पर्यावरण विभाग के सचिव नवीन गोयल ने अग्र समाज को एकत्र करने के लिए एक बड़ा आयोजन करने का प्रयास किया। उस आयोजन में उन्हें क्या मिला, क्या नहीं यह तो वह जानें लेकिन यह स्पष्ट नजर आया कि अग्र समाज की एकता के लिए किया गया यह कार्यक्रम अग्र समाज को बांटता नजर आया।

गुरुग्राम में 2019 के चुनाव के पश्चात वैश्य बिरादरी में वर्चस्व का संघर्ष नजर आने लगा। इससे पूर्व वैश्य बिरादरी के सीताराम सिंगला नेता माने जाते थे और वह सभी को एकजुट रखते थे। परंतु 2019 में तत्कालीन विधायक उमेश अग्रवाल और मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की अनबन के कारण टिकट सीताराम सिंगला के पुत्र सुधीर सिंगला को मिली। कुछ तो प्रभाव अपने पिता का और कुछ विधायक पद का। वह अग्र समाज के नेता माने जाने लगे। 

इससे पूर्व विधायक रहते हुए यह कार्य उमेश अग्रवाल बखूबी अंजाम दे रहे थे। उनके संबंध भी गुरुग्राम के अधिकांश वैश्य परिवार से बने हुए हैं। ऐसे में तोशाम से आए अग्र समाज के नवीन गोयल अपने आपको वैश्य नेता स्थापित करने के प्रयास में लग गए और इस प्रयास में उन्हें प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ और भिवानी के सांसद चौ. धर्मबीर का साथ मिलता नजर आया।

परिणाम सामने आया। उनके मंच पर न तो विधायक सुधीर सिंगला देखे गए, न उमेश अग्रवाल, न दीपक मंगला, न भानीराम मंगला। तात्पर्य यह है कि अग्र समाज को एकत्र करने की बजाय यह कार्यक्रम अग्र समाज को और अधिक बांट गया।

अग्र समाज के कार्यक्रम में प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ का मुख्य अतिथि बनना भी अनेक अग्र समाज के लोगों को पसंद नहीं आया और यह बात कुछ लोगों ने आयोजक के मुंह पर भी कही, जिसका परिणाम यह निकला कि उन्होंने सांसद चौ. धर्मबीर कार्यक्रम में लेना मुनासिब नहीं समझा। कार्यक्रम में सांसद चौ. धर्मबीर के पुत्र वैभव चौधरी की उपस्थिति इस बात की ओर फिर इशारा कर गई जैसा कि हमने पहले भी लिखा था कि इस कार्यक्रम के तार तोशाम से जुड़े हुए हैं और इसमें अधिकांश रूप से भाजपाईयों को ही बुलाया गया था। 

सवाल यह भी उठे कि यदि आपको पार्टी के ही वरिष्ठ नेता को बुलाना था तो क्या आपने मुख्यमंत्री को मुख्य अतिथि बनने के लिए आमंत्रित किया?

चर्चा यह भी है कि ओमप्रकाश धनखड़ और पर्यावरण विभाग के सचिव के संबंध मधुर है और संबंध इतने मधुर हैं कि प्रदेश अध्यक्ष ने एक पार्टी-एक पद के नियम को भुलाकर इनके परिवार में पार्टी के कई पद दे दिए। अब कहने वालों का कोई मुंह तो पकड़ा नहीं जाता। यहां तक सुना जा रहा है कि प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ बादशाहपुर से चुनाव लडऩा चाहते हैं और चौ. धर्मबीर अपने पुत्र वैभव चौधरी के लिए विधानसभा क्षेत्र तलाश रहे हैं। उन लोगों का यह भी कहना है कि आप देखिए कि इस कार्यक्रम में अधिकांश प्रयास बादशाहपुर क्षेत्र में रहने वाले अग्र समाज के लोगों को जोडऩे के किए गए हैं। 

कुछ अग्रजनों का कहना है कि हम सोच रहे थे कि गुरुग्राम के ही नहीं अपितु हरियाणा के वैश्य मंच पर एकत्र होंगे तो वैश्यों की समस्याओं के बारे में भी बात की जाएगी। यह कार्यक्रम तो राजनैतिक था, राजनीति की बात हुई। वैश्य समाज की समस्याओं का जिक्र भी नहीं हुआ और कुछ नहीं तो बाजारों की दशा सुधारने के लिए और प्रशासन द्वारा समय-समय पर परेशान करने का जिक्र तो होता, कहीं जिक्र नहीं हुआ। 

मुख्य अतिथि रहे प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ भी इस कार्यक्रम में राजनीति ही करते नजर आए। मंच से कांग्रेस की बुराई भी करते नजर आए। साथ ही उन्होंने आजादी दिलाने के लिए अग्र समाज को बहुत बधाईयां दीं। इस पर गुरुग्राम में चर्चा चल रही है कि अग्र समाज ने ही आजादी दिलाई तो अन्य 35 बिरादरियां क्या कर रहीं थीं? आप स्वयं जिस जाति से आते हो, क्या उस जाति का योगदान नहीं था या ब्राह्मण, यादवों का योगदान नहीं था। तात्पर्य यह कि आजादी तो सबके संगठित होकर संघर्ष करने से मिली है। अब धनखड़ जी की बात याद करें तो आजादी के अमृत महोत्सव में वह शहीद भगत सिंह के जन्मदिवस पर श्रद्धांजलि देना ही भूल गए। जब मैंने उनसे फोन पर इस बारे में पूछा तो उनका कहना था कि शहीद भगत सिंह तो हमारे दिलों में हैं, हम तो खडख़ड़ कलां जाकर भी आए हैं। और फिर हमारी केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमन ने शहीद भगत सिंह की जयंती पर शहीद भगत सिंह के नाम पर हवाई अड्डे का नामकरण कर दिया। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के बारे में पूछने पर उनका उत्तर था कि मुझे तो कोई भी बिरादरी वाला अपने मंच पर बुलाएगा तो मैं अवश्य जाउंगा। इस पर पूछा कि यह आयोजन तो किसी संस्था का नहीं अपितु व्यक्ति का है। इस बात को वह टाल गए।

अग्रवाल समाज के एक व्यक्ति का कहना था कि अग्र समाज में इससे पूर्व ऐसा कभी हुआ नहीं है। गुरुग्राम का अग्र समाज टुकड़ों में बंट गया है और इसमें कहीं जैन समाज की भी भूमिका है। उनका कहना था कि दस हजार का दावा करने वाले दो हजार जुटा ना पाए अर्थात चौबे जी चले थे छब्बे जी बनने, रह गए दूबे जी। साथ ही उन्होंने कहा कि आने वाले समय में जल्दी ही आपको इस प्रकार के कार्यक्रम दो-तीन और देखने को मिल सकते हैं।

साथ ही उन्होंने कहा कि गुरुग्राम का अग्र समाज बहुत समझदार है। वह किसी भी द्वार पर आये का अपमान नहीं करता लेकिन करता तो वही है जो पीढिय़ों से उनकी परंपराएं हैं। खैर, एक बात है कि इस कार्यक्रम के होने से बहुत से गरीबों को रोटी तो मिल ही गई। मैंने पूछा वो कैसे मान्यवर, तो उनका उत्तर था कि आप पत्रकार हो, सारे समाज को एक नजर से देखो। कितने लोगों ने इनके बोर्ड बनाए, कितने लोगों ने लगाए, कितना बड़ा टैंट लगा, कुर्सियां लगीं, मंच सजा, मोमेंटो बने। फूलमालाएं आईं। यह सब गरीब गुर्गों की आजीविका का साधन बना कि नहीं? साथ ही इतने लोगों के लिए भोजन का प्रबंध किया गया, उसमें भी बनाने वाले कारीगर, खिलाने वाले वेटर, उन सभी की कहीं न कहीं आजीविका में मदद हुई? ऐसे ही और कार्यक्रम होंगे तो अच्छा ही है। मंदे के समय गरीबों को भोजन तो मिलेगा।

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