भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक गुरुग्राम। बेमौसम की बरसात ने गुरुग्राम नगर निगम को न केवल गुरुग्रामवासियों या प्रदेशवासियों अपितु पूरी दुनिया में बेनकाब करके रख दिया। जिस प्रकार मुख्यमंत्री मनोहर लाल, केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह, विधायक सुधीर सिंगला, जीएमडीए के सुधीर राजपाल, मेयर मधु आजाद चिल्ला-चिल्लाकर कह रहे थे कि इस बार प्रशासन ने बहुत मेहनत से कार्य किया है। हमने निगाह रखी है और इस बार गुरुग्राम को जलभराव से नहीं जूझना पड़ेगा लेकिन इस बरसात ने उन सभी के दावों को पलीता लगा दिया। प्रशासनिक अधिकरी चाहे कर्मयोगी जीएमडीए के सीइओ सुधीर राजपाल हों या निगम के कमिश्नर मुकेश कुमार आहूजा हों, सभी का यही कहना था कि इस बार जमीनी स्तर पर कार्य किए गए हैं और हमने जांच की है। करोड़ों रूपए जल निकासी के लिए खर्च किया गया नागरिकों के टैक्स का। परिणाम सामने आया तो उपायुक्त निशांत कुमार यादव ने खुद माना कि इंतजाम पूरे नहीं हैं और वीरवार रात्रि मजबूरीवश उन्हें जनता से प्रार्थना करनी पड़ी कि सडक़ें जलभराव के कारण यातायात को झेल नहीं पाएंगी, कंपनियों से वर्क फ्रॉम होम कराने की अपील की और साथ ही स्कूलों की भी छुट्टी घोषित करनी पड़ी। इसे यह भी कह सकते हैं कि प्रशासन ने स्थिति को समझा और उन्हें ज्ञात हो गया कि स्थिति इतनी दुरूह है कि हम संभाल नहीं पाएंगे। आज गुरुग्राम में जो जलभराव की स्थिति रही, वह गुरुग्राम के विकास की कहानी को सारी दुनिया में खोल गई और ऐसा नहीं कि इसकी जानकारी अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों, मंत्रियों और मुख्यमंत्री को न हो। और लगता है कि सभी आज की गुरुग्राम की स्थिति को देखकर शर्मसार हैं। ऐसा अनुमान इसलिए लगाया कि जनप्रतिनिधि, मंत्री, मुख्यमंत्री जनता के दुख में साथ खड़े होने वाले होते हैं लेकिन आज किसी विधायक, सांसद, मेयर और मुख्यमंत्री का कोई ब्यान नहीं आया स्थिति के बारे में। शायद उन्हें शब्द ही नहीं मिले कि क्या बोलें, क्या कहें। क्या कह रही है जनता: जनता में विभिन्न प्रकार प्रतिक्रियाएं हैं। कोई अपने क्षेत्र के पार्षद को अधिक जिम्मेदार मानता है, कोई मेयर टीम को जिम्मेदार समझते हैं कि उनका कर्तव्य है कि अधिकारी जो कार्य कर रहे हैं और हमारे टैक्स का जो पैसा निगम द्वारा लग रहा है, वह उचित उपयोग में आए। इसी प्रकार कुछ अधिकारियों को दोष देते हैं तो कुछ केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत को दोषी मानते हैं कि मेयर टीम उन्होंने ही बनाई थी। अत: उनका नैतिक दायित्व भी है कि वह निगम के कार्यों पर नजर रखें और अनियमितताओं को न होने दें। तो कुछ यह भी कहते हैं कि मुख्यमंत्री गुरुग्राम में अधिकांश रहते हैं। कोई सप्ताह शायद ऐसा नहीं जाता जब वह गुरुग्राम में न हों। कष्ट निवारण समिति के अध्यक्ष भी वही हैं। अत: यदि वह ध्यान दें तो भ्रष्टाचार कैसे पनप सकता है। कहावत है कि ‘क्रांति नीचे आरंभ होती है और भ्रष्टाचार ऊपर से’। सार यह कि हमाम में सब नंगे : विभिन्न प्रतिक्रियाएं जान और सुन समझ में आया कि यहां हमाम में सब नंगे हैं, क्योंकि जिस जमीन पर काम होता है, वहां सर्वप्रथम तो जनता के चुने हुए पार्षद नजर रखने को होते हैं और पार्षदों के ऊपर मेयर टीम भी इन कामों को देखती है। उसके पश्चात निगम के जेई, एसडीओ, एक्सइएन का अमला लगा होता है और उन्हें चैक करने के लिए चीफ इंजीनियर और कमिश्नर होते हैं। इससे आगे की बात करें तो विधायक भी सब कामों पर नजर रखता है। जनता से सीधा जुड़े होने का दावा करता है। अभी देखने में यह आ रहा है कि जिन क्षेत्रों में विधायक ने कई-कई बार उद्घाटन किए और दावे कि यहां जलभराव नहीं होगा, वहां भी घरों में पानी था। अब इससे ऊपर लंबी चेन है। प्रजातंत्र में एक के ऊपर एक होता है। यदि वह ईमानदारी से कार्य करें तो भ्रष्टाचार का पर्दाफाश अवश्य होगा। इसीलिए कहा है कि हमाम में सब नंगे हैं, कौन-किसे नंगा बताए। सवाल तो यह है कि सभी एक-दूसरे को ढकने के प्रयास में लगे रहते हैं। अब निगम में मोटी-मोटी नजर डालें तो लगभग हर विभाग में जांच चल रही हैं। जांच के परिणाम नहीं आते। निगम से बिना काम के लाखों करोड़ों की पेमेंट हो जाती है या उजागर भी हो जाती है और वही व्यक्ति जो जिम्मेदार होते हैं फिर और जिम्मेदारी के काम पर लगा दिए जाते हैं। ऐसे में एक चुटकुला-सा याद आता है कि भाई तुम तो रिश्वत लेते पकड़े गए थे तो उधर से उत्तर मिला कि तो क्या हुआ रिश्वत देकर छूट गए। भ्रष्टाचार क्या है: हम और सारे प्रदेश में शब्द भ्रष्टाचार का खूब प्रयोग हो रहा है लेकिन शायद भ्रष्टाचार शब्द के अर्थ सीमित हो गए हैं। जहां तक मेरी समझ है कि भ्रष्ट अर्थात गलत, आचार अर्थात व्यवहार ही भ्रष्टाचार है। जिसमें अपने कार्यों को लापरवाही से करना, गलत काम होते देख आंखें बंद कर लेना, अपना अधिकार होते हुए इन चीजों की जांच न करना भी भ्रष्टाचार में ही आते हैं। अत: हमारे मुख्यमंत्री जिनकी छवि बहुत साफ-सुथरी है और स्वयं अपने मुंह से कहते हैं कि मनोहर लाल-भ्रष्टाचार का काल है, वह ऐसे में इस भ्रष्टाचार में भागीदार लगते हैं या नहीं, यह मैं पाठकों के विचार के लिए छोड़ता हूं। मैं तो अपनी ओर से केवल इतना ही कहना चाहूंगा कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल अपनी विकास पुरुष की छवि बनाने में जो लगे हुए हैं, यदि उन्हें छवि बनानी है तो निगम में फैले भ्रष्टाचार पर तुरंत प्रभाव से कार्यवाही करनी होगी। यह उनका नैतिक दायित्व भी है और पद का दायित्व भी है। और अपने दायित्वों की पूर्ति न करना भी भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है। अत: गुरुग्रामवासियों को यह विश्वास रखना चाहिए कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल-भ्रष्टाचार के काल ऐसी स्थिति में जब गुरुग्राम की स्थिति देश-विदेश में खराब हो रही है, जिस कारण गुरुग्राम में निवेश आने में भी परेशानी हो सकती है और यहां स्थिति उद्योग भी बाहर जाने की सोच सकते हैं। इन सब बातों को देखकर अवश्य भ्रष्टाचार पर तुरंत कार्यवाही करेंगे। Post navigation डबल डेकर बस में भारी मात्रा में अवैध रूप से ले जाई जा रही शराब बरामद सेवा पखवाड़ा में बोधराज सीकरी की अगुवाई में पंजाबी बिरादरी महा संगठन ने किया हेल्थ कैम्प का आयोजन