जिसका विवेक जाग जाता है उसका धर्म मार्ग खुल जाता है
गुरु को इस प्रकार पकड़ो कि वो आपके हृदय से ना निकल पाए
भक्ति आसान नहीं है यह छठी का दूध निकसाती है

चरखी दादरी/सादुलपुर जयवीर फौगाट

11 सितंबर, माया के खेल में हमारा मन भरमाया हुआ है। माया का पसारा तीन लोक का है फिर ये जीव उससे कैसे बचे। माया तो ऐसी ठगनी है जो हर किसी को ठगती है। ना इससे योगी बचे ना जोगी, ना ऋषि ना महात्मा। और तो और उससे तो अवतारी पुरुष भी नहीं बचे। अगर कोई माया के फेर में नही आया तो वो हैं संत सतगुरु। हुजूर कंवर साहेब जी ने कहा कि हम दुनियादारी के चोर से तो भयभीत रहते हैं जो हमारा छोटा मोटा ऐसा नुकसान ही करते हैं जिनकी भरपाई हो जाती है लेकिन उस काल रूपी चोर से हम भय ही नहीं मानते जो हमारा ऐसा नुकसान कर रहा है जिसकी भरपाई हो ही नहीं पाती।

गुरु जी ने कहा कि संतो ने काल रूपी चोर को ही अपना दास बना रखा है। हुजूर ने कहा कि ये कलयुग तो पापयुग है जिसमें इंसान अपने पाप कर्मों में ही अपना गौरव मानता है। उन्होंने कहा कि काल का खेल तो ऐसा है जिसमे जो जीव जिस यौनी में जन्म लेता है वो उसी यौनी में इतना आनंद लेने लगता है कि वो उसी गाफिल हो जाता है। कोई भी अपनी यौनी को छोड़ना नहीं चाहता। गुरु जी ने फरमाया कि धर्म का यही मूल है कि आप पर पीड़ा को समझो। धर्म दया और प्रेम की शिक्षाओं पर टिका है। जिसका विवेक जाग जाता है उसका धर्म मार्ग खुल जाता है। जो मन से वचन से और कर्म से औरों को पीड़ा देते हैं वो भक्ति नहीं कर सकते। हुजूर ने कहा कि अगर किसी का भला नहीं भी कर सकते हो तो कम से कम बुराई तो मत कमाओ।

उन्होंने कहा कि जो जैसे कर्म करता है वो अपने पूर्वजों के संस्कार ही बयान करता है। गुरु जी ने फरमाया कि क्यों आज घर घर में झगड़ा है। क्यों आज इंसान इंसान पर विश्वास नहीं करता। उन्होंने कहा कि आज नाम भक्ति और साधना में भी आप पाखंड दिखाते हो। साधना और भक्ति दो घड़ी ध्यान में बैठने या दो घड़ी के जाप से नहीं होती। भक्ति के लिए तो आज इसी साधना चाहिए जिसे आप हर पल करो। साधना घड़ी दो घड़ी की बैठक नहीं है साधना है अपनी करनी को अपनी कहनी को और अपनी रहनी को साध लेना और इस तरह से साध लेना कि वो आपके व्यवहार का अंग बन जाए।

उन्होंने कहा कि संतो के व्यवहार से साधना और अभ्यास झलकते हैं। दादू साहब का प्रसंग सुनाते हुए हुजूर कंवर साहेब जी महाराज ने फरमाया कि एक व्यक्ति दादू साहब से मिलने आया और आकर पूछताछ करने लगा कि दादू साहब कहां हैं, उनमें क्या शक्तियां है आदि आदि। वहां काम कर रहे थे एक बुजुर्ग आदमी ने कहा कि कौन दादू मैं किसी दादू को नहीं जानता और दादू में कोई शक्ति वक्ति नहीं है। जब कई बार पूछने पर भी उसने नहीं बताया तो उस व्यक्ति को गुस्सा आया और उसने उस बुजुर्ग को थप्पड़ मार दिया। कुछ समय के बाद जब वह फिर आया तो देखा कि जिस आदमी को उसने थप्पड़ मारा वही दादू साहब है और सत्संग फरमा रहे हैं। वो बड़ा शर्मिंदा हुआ और दादू साहब के पैरो में गिर के माफी मांगने लगा। दादू साहब ने कहा कि आपका कोई दोष नहीं है जब बाजार की चीज लाने से पहले भी आप उसके बारे में पूरी पूछताछ करते हो तो गुरु बनाने से पहले उसकी पूछताछ करना क्या बुरा है।

हुजूर ने कहा कि पूर्ण की पहचान करके गुरु धारण करो। गुरु को इस प्रकार पकड़ो कि वो आपके हृदय से ना निकल पाए। उन्होंने कहा कि सूरदास जी के सारे काम श्रीकृष्ण जी करते थे। एक दिन श्रीकृष्ण जी उनका काम करके जाने लगे तो सूरदास जी ने कहा कि “हाथ छुड़ा कर जात हो निर्बल जान कर मोहे, हृदय से जाओगे तब मानूंगा तोहे” हुजूर ने कहा कि भक्ति इसी ही होनी चाहिए। जो प्रेम करना जानता है वो गुरु को अपने हृदय में रखता है। गुरु से आशिक और माशुक जैसा प्यार करो। उन्होंने कहा कि गुरुमुख और मनमुख कभी नहीं मिल सकते। हुजूर ने फरमाया कि मन वचन कर्म को तो लगा दिया ईर्ष्या द्वेष निंदा चुगली में फिर भक्ति कैसे हो। आज कलयुग में गुरु और चेले में कोई फर्क ही नहीं है। अपने आप को गुरु कहने वाले ज्यादा पाखंडो में फंसे हुए हैं। ओछे और पाखंडी गुरु को अविलंब त्याग दो।

कोई गुरु अगर आपसे अपनी पूजा करवाता है तो सचेत हो जाओ। पहले अपने आप को उन्नत करो। सामाजिक बनो। मन में दया धर्म प्रेम के बीज बोवो। पर त्रिया पर धन से नेह मत लगाओ। बुरी संगत मत करो। अगर इतना कर लोगे तो समझो घर बैठे ही आप भक्ति कमा लोगे। भक्ति का रास्ता सच्चाई का और नेक नियति का रास्ता है। भक्ति करने वाला भूल कर भी दूसरे को कष्ट नहीं दे सकता। उसका कर्म कभी नहीं बिगड़ेगा। दूसरो की कमियो पर क्यों दृष्टि डालते हो। जो बुरा करता है वो अपना आप भरेगा फिर आप उसकी बुराई पर तवज्जो देकर क्यों उसके कर्मो का भार लेते हो।

उन्होंने कहा कि राधास्वामी मत में तीन बंद लगाने का सतगुरु ने यूंही हुक्म सुनाया था कि किसी की निंदा मत करो। किसी की बुराई मत देखो और बुराई मत सुनो। हुजूर ने कहा कि भक्ति इतनी आसान नहीं है। भक्ति छठी का दूध निकसाती है। एकांत में बैठ कर सोचो कि इस इंसानी चोले का हमने कोई फायदा उठाया है। जाने वालो की कोई निशानी नहीं मिलती इसलिए इस जीवन में ऐसे काम कर जाओ कि आपको दुनिया याद रखे।

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