गुरुग्राम नगर निगम चुनाव में कहां खड़ी है भाजपा?

भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। वर्तमान में भाजपा पिछड़े वर्ग के आरक्षण के चक्रव्यूह में फंसी नजर आ रही है, क्योंकि जिला परिषद और पंचायत चुनाव शीघ्र होने की संभावना है। सरकार और चुनाव आयोग से बार-बार कहा जा रहा है कि चुनाव की घोषणा शीघ्र होगी लेकिन चर्चाकारों की क्या कहें? उनका कहना है कि फरवरी 2020 से लोकतंत्र में गांवों को प्रजातंत्र का अधिकार नहीं मिल पाया है और तब से ही सरकार कह रही है कि चुनाव शीघ्र होंगे और वर्तमान में  अब पंचायत चुनाव के उम्मीदवार लंगोट कस चुके हैं, फिर भी संभावना है कि न्यायालय में याचिका दायर की जाएगी और स्टे लग जाएगा।

खैर छोडिए इन बातों को, मुद्दा है गुरुग्राम निगम चुनाव का तो निगम चुनाव का समय भी आ ही गया है लेकिन वर्तमान में पंचायत चुनाव की चर्चाओं के बीच इनकी चर्चा कुछ मध्यम पड़ गई है। अगर पिछली बात करें तो गत चुनाव में भी निगम चुनाव समय के बाद ही हुए थे। वर्तमान में कंपनी द्वारा दिए गए जनसंख्या के आंकड़ों पर भी सवाल उठ रहे हैं और प्रशासन की ओर से वार्डबंदी की एडॉप्ट कमेटी भी बना दी है लेकिन एडॉप्ट कमेटी को सर्वे कंपनी की जनसंख्या के आंकड़े शायद उचित लगें, अभी तो उन्होंने उन्हीं आंकड़ों के अनुसार गुरुग्राम में 40 वार्ड होने की बात कर दी। खैर, लगता यह है कि सरकार सक्रिय है निगम चुनाव कराने के लिए। 

निगम चुनाव के लिए सभी पार्टियां तैयारियों में लगी हैं। यह दूसरी बात है कि भाजपा के अतिरिक्त और कोई पार्टी जनता में अपनी पैंठ बनाती दिखाई दे नहीं रही। कांग्रेस शायद गुरुग्राम में आज तक की सबसे बुरी स्थिति में है। आम आदमी पार्टी लगी हुई है अपनी पहुंच बनाने में लेकिन ऐसा दिखाई नहीं देता कि वह सफल हो पाएंगे, क्योंकि आप भ्रष्टाचार मुक्त के दावों के साथ पहचान बनाने में लगी है, जबकि यदि नजर डालें तो दो चेहरे आप में सम्मिलित हुए हैं, उनकी छवि पर भी दाग नजर आते हैं और उससे बड़ी बात यह है कि जो चेहरे शामिल हुए हैं, वह सब अपनी टिकट के लोभ शामिल हुए लगते हैं, क्योंकि नई नवेली पार्टी में भी आपस में गुट नजर आते हैं और मजेदारी तो यह है कि इस पार्टी को ऐसा लगता है कि दिल्ली से चलाया जा रहा है।  तो मुझे लगता नहीं कि यह कोई पहचान बना पाएगी।

पक्ष और विपक्ष दोनों ही भूमिका में भाजपा

उपरोक्त स्थितियों से तो यही दिखाई दे रहा है कि चुनावों में कोई है तो केवल भाजपा ही है जो पक्ष और विपक्ष दोनों का ही काम करेगी। आप सोच रहे होंगे कि मैं यह क्या कह रहा हूं कि पक्ष और विपक्ष दोनों ही भाजपा। पर इसके पीछे जो कारण दिखाई देते हैं, वह मैं कहूंगा तो आप सब भी मुझसे सहमत होंगे। 

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष गुरुग्राम में ही निवास करते हैं और भाजपा का प्रदेश का सबसे बड़ा कार्यालय गुरूकमल भी गुरुग्राम में ही है, जिसमें राष्ट्रीय स्तर के नेता भी अकसर आते रहते हैं। ऐसे में आदर्श स्थिति यह होनी चाहिए कि संगठन एकजुट होकर खड़ा हो लेकिन जमीनी धरातल पर सबका साथ-सबका विकास के नारे वाली पार्टी अनेक टुकड़ों में बिखरी-बिखरी नजर आती है।

जिला अध्यक्ष की राहें अलग है, विधायक की अलग। कुछ प्रदेश अध्यक्ष के कृपा पात्र हैं तो कुछ केंद्रीय नेताओं के। इनके अतिरिक्त भी उच्च महत्वकांक्षी लोगों ने सुधा यादव और भूपेंद्र यादव को भी ढूंढ लिया है और राव इंद्रजीत सिंह के बारे में तो शायद कहने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि पिछले 9 सालों में न भाजपा इन्हें अपना पाई है और न वह भाजपा को। इनका अलग ही अस्तित्व है। यह बात किसी से छिपी हो ऐसा है नहीं, सब जानते हैं।

बड़ी पार्टी इतनी दरिद्र अनुभवी कार्यकर्ताओं से

भाजपा का नारा रहा है कि एक व्यक्ति-एक पद। परिवार के किसी अन्य सदस्य को भी पद न दिया जाए, किंतु गुरुग्राम में इसके अपवाद ढूंढने लगोगे तो अनेक मिल जाएंगे। प्रदेश अध्यक्ष की कार्यकारिणी में ही ढूंढेंगे तो भी मायूस नहीं होना पड़ेगा। उसके अतिरिक्त भी अनेक उदाहरण मिल जाएंगे। 

भाजपा के कुछ कार्यकर्ताओं ने नाम न लेने की शर्त पर यह बताया कि भाजपा के बड़े कार्यक्रम होते रहते हैं, जिनमें बहुत खर्च भी होता है और जो प्रदेश अध्यक्ष को उन खर्चों की आपूर्ति खुशी से करता है तो प्रदेश अध्यक्ष उसे खुशी से पद भी दे देते हैं। भूल जाते हैं कि एक ही परिवार में कितने पद दे दिए?

तात्पर्य यह है कि आने वाले निगम चुनाव भाजपा के लिए आसान रहने वाले नहीं हैं। यदि गत चुनाव को याद करें तो राव इंद्रजीत और मुख्यमंत्री के उम्मीदवारों में खूब कशमकश दिखाई दी थी और मुख्यमंत्री के उम्मीदवारों को हार का मुंह भी देखना पड़ा था।

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