ऑल इंडिया बैकवर्ड क्लास फैडरेशन के राष्ट्रीय कानूनी सलाहकार ने उठाए सरकार की मंशा पर सवाल
मध्य प्रदेश सरकार के फार्मूले को अपनाने की उठाई मांग
बीसी “बी” को भी दिया जाय आरक्षण

हिसार, 1 सितम्बर। ऑल इंडिया बैकवर्ड क्लास फैडरेशन के राष्ट्रीय कानूनी सलाहकार एवं वरिष्ठ अधिवक्ता लाल बहादुर खोवाल ने प्रदेश सरकार द्वारा पंचायती चुनावों में पिछड़ा वर्ग को गलत तरीके से आरक्षण देने की मंशा पर सवालिया निशान खड़े किए हैं। खोवाल ने कहा कि सरकार जानती है कि गलत आरक्षण देने से लोग कोर्ट जाएंगे और कोर्ट चुनावों पर रोक लगा देगी। भाजपा सरकार चाहती भी यही है कि चुनाव लंबे समय तक लटक जाए।

एडवोकेट खोवाल ने कहा कि फैडरेशन की तरफ से उन्होंने व समाज के अन्य लोगों ने पिछड़ा वर्ग आयोग के समक्ष सुप्रीम कोर्ट के इंद्रा साहनी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया सहित विभिन्न फैसलों का हवाला देते हुए मांग उठाई थी कि पिछड़ा वर्ग को अनुपातिक तौर सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के मुताबिक आरक्षण दिया जाए। उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश सरकार ने भी पूरे राज्य को एक यूनिट मानकर ही पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिया था, इसके विपरीत प्रदेश सरकार पूरे राज्य की बजाए ग्राम, जिला व क्षेत्र के आधार पर आरक्षण देने की पैरवी कर रही है। जो कानूनी तौर पर पूरी तरह से गलत है। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार इससे पहले भी गलत तरीके से आरक्षण देना चाहती थी, जो स्वभाविक तौर पर कोर्ट में जाते ही अटक गया। उन्होंने कहा कि अब सरकार पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिश के बहाने गलत तरीके से आरक्षण की व्यवस्था करना चाहती है, लेकिन यह भी कोर्ट जाते ही खारिज हो जाएगा।

भाजपा उड़ा रही है आरक्षण की धज्जियां
एडवोकेट खोवाल ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के लिए कानून की धज्जियां उड़ा रही है। कभी क्रीमिलेयर तो कभी क्षेत्रीय आधार पर आरक्षण की पैरवी करना, इसी मानसिकता का उदाहरण है। उन्होंने कहा कि प्रदेश को एक यूनिट मानकर अनुपात के आधार पर आरक्षण दिया जाना चाहिए ताकि वह कानूनी रूप से भी खरा उतरे। उन्होंने कहा कि सरकार जो फार्मूला अपनाना चाहती है वह संवैधानिक बैंच की अवहेलना है असंवैधानिक भी है और यह कानून की नजर में बिलकुल भी नहीं ठहरेगा और लोग कोर्ट जाएंगे और कोर्ट इस पर एक बार फिर से रोक लगा देगी। खोवाल ने यह भी मांग की कि पिछड़ा वर्ग “बी” को भी पंचायती राज में बीसी”ए” की तर्ज पर आनुपातिक आरक्षण दिया जाए।

पुराने आंकड़ों के साथ खेल रही है सरकार
एडवोकेट खोवाल ने कहा कि जब पहली बार 1931 में जातिगत जनगणना की गई थी, उस समय पिछड़ा वर्ग की जनगणना 52 प्रतिशत थी। बाद में मंडल कमिशन ने भी उसी आंकड़े के आधार पर पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिया था , जबकि वास्तविकता यह है कि अब पिछड़ा वर्ग की जनगणना बहुत ज्यादा बढ़ गई है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार वास्तव में ही पिछड़ा वर्ग को न्याय देना चाहती है तो यह केवल जातिगत जनगणना के आधार पर पिछड़ा वर्ग के प्रतिनिधित्व को ध्यान में रखे। उन्होंने मांग की है कि संविधान के अनुच्छेद 15,16 के प्रावधानों के अनुसार सरकार जातीय जनगणना करवा कर पिछड़ा वर्ग को संविधान प्रदत्त अधिकार देने का काम करें तथा पंच से लेकर पार्लियामेंट तक अनुपातिक आरक्षण देने का काम करें।

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