स्वार्थ पूर्ति के लिए किया कर्म और पाप आपका जन्म जन्मांतर तक पीछा करता है
बिना मेहनत और तप के सुख नहीं मिलता : हजूर कंवर साहेब जी महाराज 
सतगुरु के बिना आप का कोई भी मीत नहीं है

चरखी दादरी/भादरा जयवीर फौगाट

28 अगस्त, – नेक इंसान नेक काम के लिए खुद तकलीफ उठा कर भी दूसरो की सहायता ही करता है। सत्संग परमात्मा के नाम का गुणगान है और इस गुणगान में हम अपनी दुख तकलीफ को भी भुला देते हैं। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण भंडारे में सेवा कर रही हमारी बहनें हैं जो इतनी गर्मी में भी आग की भठियों के पास बैठ कर मस्ती में शब्द बानी गाती हुई साध संगत की सेवा कर रही हैं। हुजूर ने सत्संग की महता बताते हुए आज के दिन को बड़ा महान दिन बताया क्योंकि इसी दिन 1605 में गुरु ग्रंथ साहिब की स्थापना हुई थी। चौदह सौ तीस पन्नो में पांच लाख आठ सौ चौरनवें बानी हैं। आज के दिन 1604 में इन बानियों को गुरुग्रंथ साहिब में पिरोया गया था जिसमें 1705 में गुरु गोविंद सिंह ने गुरु तेग बहादुर सिंह जी की 116 वानियों को और शामिल किया गया। संतमत में सिख धर्म का विशेष महत्व है। उन्होंने कहा कि संतो की बानी इंसान के जीवन को पवित्र बनाती है। सत्संग भी यही संदेश देता है।

हुजूर कंवर साहेब ने फरमाया कि जो कोई जैसा कर्म करेगा उसका परिणाम भी उसे वैसा ही मिलेगा। तुम्हारे कर्म का फल लौट कर तुम्हे अवश्य मिलेगा। कर्म अगर गलत करते हो संग अगर बुरा रखोगे तो फल अच्छा कैसे पाओगे। इंसान को हर पल कर्म की कसौटी पर उतरना पड़ता है। जिस कर्म को करके हम खुश हो जाते हैं। जिस पाप को करके हम अपने स्वार्थों की पूर्ति करते हैं। वही पाप वही कर्म आपका जन्म जन्मांतर तक पीछा करता है। हुजूर ने फरमाया कि दुख और तकलीफ हमारी सोच मात्र हैं। यदि अपने आप सतगुरु को अर्पित करके कर्म करोगे तो सुख दुख से पार हो जाओगे। उन्होंने कहा कि ध्यान तो सबका लगता है लेकिन किस चीज का लगता है। ध्यान अगर दुनियादारी की वस्तुओ से हटा कर यदि कल्याण कारी वस्तुओ में लगाओगे तो इस भवसागर से पार हो जाओगे।

उन्होंने कहा कि हमारा मन कुते की भांति कभी इधर भटकता है तो कभी उधर। परमात्मा के नाम का क्या पावना और क्या खोना। परमात्मा तो आपके अंग संग ही रहता है। उन्होंने कहा कि नशे विषयो से दूर रहो। नशा आपके जीवन को बर्बाद कर देता है। नशे के नहीं राम की गुलामी करो। उन्होंने कहा कि ये मनुष्य का जन्म बड़े युगों के बाद मिला है इसे व्यर्थ मत गंवाओ। किसी का छीन कर यदि तुम उसे अपना मानते हो तो ये आपकी सबसे बड़ी भूल है। परमात्मा ने इतना सुंदर शरीर दिया है जो मंदिर की ही कृति है। इसमें परमात्मा बसता है। ऐसे में क्यों उसे जाया करते हो। गुरु जी ने कहा कि ये इंसानी संपति परमात्मा की है उसकी संपति को जो उसी की रजा मौज में बरतता है उसको दयाल पुरुष अपना लेता है। आप अपना भाग्य अपने कर्म से स्वयं ही लिखते जाते हो। हुजूर ने कहा कि जो बीत गया उसे भूल जाओ और आगे की सुधारो। हुजूर कंवर साहेब ने फरमाया कि बिना मेहनत और तप के सुख नहीं मिलता। ना शरीर की साधना की ना मंत्र की सिद्धि की और ना ही कोई त्याग किया फिर किस मुंह से शिकायत करते हो।

उन्होंने कहा कि संतमत सारी सिद्धि का दाता है। सुमिरन ध्यान और भजन करके आप हर सिद्धि को प्राप्त कर सकते हो। सेवा का महत्व समझो। सेवा आप तन मन धन में से किसी भी रूप में कर सकते हो। सेवा से मन चंगा होता है और मन चंगा तो कठौती में गंगा।सेवा करके गुरु को प्रसन्न कर लो आप हर तरह का सुख भोग लोगे। हुजूर महाराज जी ने कहा कि पाप कर्म करके भी अगर अनजान बनते जो तो सजा भी बड़ी मिलेगी। गुरु महाराज जी ने फरमाया कि सतगुरु के बिना आप का कोई भी मीत नहीं है। इस दुनियादारी के फेर से और काम क्रोध लोभ मोह अहंकार रूपी दुश्मनों से केवल सतगुरु ही छुड़ा सकता है। कर्म से बरी होकर ही आप अमर हो सकते हो। हर पल परमात्मा को हाजिर नाजिर रखो। किसी को छलने का काम मत करना। ये मत सोचना कि आप को कोई नहीं देख रहा। आपको जो देख रहा है उसकी लाखों करोड़ो आंखे है। उसकी बही में सबका खाता है। जो जैसे कर्म करता है वो वैसा ही फल पाता है। उन्होंने कहा की जैसे घर में सफाई करते हो, तन की सफाई करते हो वैसे ही हृदय की भी सफाई किया करो। हृदय की सफाई नाम रूपी झाड़ू से होती है।

error: Content is protected !!