अपने मन में दया, प्रेम परोपकार के गुण धारण करने से होगा कल्याण
किसी जरूरतमंद की सहायता करना ही असली भक्ति है : हजूर कंवर साहेब जी महाराज

चरखी दादरी/पानीपत जयवीर फौगाट

04 सितंबर, -परमात्मा के दर्शन नेकी के कर्म किए बिना नहीं हो सकते। नेकी भक्ति की मूल है अगर ये कमा ली तो आप घट अंतर में परमात्मा का जहूर पा सकते हो। उन्होंने कहा कि धैर्य रखना सीखो और वक्त की कद्र करना सीखो क्योंकि गया हुआ वक्त और मुंह से निकली बानी कभी वापिस नहीं आती। गुरु जी ने कहा कि इस काल माया के देश में मनुष्य एक नहीं अनेकों भटकाव में भटका हुआ है लेकिन इस भटकाव से उबरने के लिए, इस काल माया से छुटकारा पाने के लिए परमात्मा ने मनुष्य को बुद्धि से विराजा है। अगर मन के फेर से निकल कर मनुष्य पूर्ण गुरु की खोज कर ले तो उसका बेड़ा पार है। उन्होंने कहा कि दुनियादारी का चातुर्य पाने के लिए मनुष्य अनेकों गुरु बनाता है उसी प्रकार इन चौरासी लाख घाटियों से निकलने के लिए भी उसे सतगुरु की आवश्यकता है। उन्होंने फरमाया कि जीव को इन घाटियों से निकलने के लिए उल्टी सीधी युक्तियों की जरूरत नहीं है बल्कि उसे तो सच्चा सुरखुरू बनना है। हुजूर कंवर साहेब ने कहा कि इंसान अलग अलग यौनियो में कभी बंदर बन कर नाचता है कभी बैल बनकर तेली के कोल्हू में जुटता है लेकिन अब जब उसे सबसे उत्तम इंसानी यौनी मिली है तो क्यों ना वो इस अवसर का लाभ उठाए। लाभ उसे मिलेगा पूर्ण सतगुरु की शरण में जाने से। इंसान जिस स्थिति में है उसे वैसा ही बर्ताव करना चाहिए लेकिन हम थोड़े से लोभ लालच में ही गलत बर्ताव करने लगते हैं।

उन्होंने कहा कि जिनको सत्संग में आते कई साल बीत गए वो भी पुरानी बाण को नही छोड़ते। ऐसे इंसान का कैसे भला होगा। उन्होंने कहा कि हम सब एक ही घाट से आए हैं फिर जाति पाती धर्म वर्गो में हमने अपने आप को क्यों बांट लिया। उन्होंने कहा कि घरों में तो हम झगड़ा रखते हैं और ढोंग सत्संगी होने का करते हैं उसका क्या फायदा। मत भूलो आपके कर्म का फैसला एक दिन पक्का होगा। यही गंदा कर्म आपको अलग अलग घाटियों में धकेलता है। आपका एक गंदा कर्म आपका सब कुछ बर्बाद कर देगा। अपनी चतुराई छोड़ कर परमात्मा की रजा मौज में रहना सीखो। बेशक तीर्थो में मत जाओ, बेशक सत्संगो में ना जाओ, बेशक मंदिर मस्जिदों चर्चो में मत भटकों लेकिन अपने मन में दया प्रेम परोपकार के गुण धारण कर लो आपका कल्याण हो जाएगा। हुजूर ने बताया कि नेक कर्मो से ही कल्याण होगा। हर इंसान की अंतरात्मा में नेकी करने की आवाज आती है लेकिन मन वो आवाज नहीं सुनने देता। मन आपको बुराइयों में ही उलझाए रखेगा। मन को काबू करना आएगा अभ्यास से जो जिस चीज का अभ्यास करता है वो उसी में दक्षता हासिल कर लेता है। खिलाड़ी अपने खेल का, चोर चोरी का, शिक्षक शिक्षा का अभ्यास करता है वैसे ही एक साधक को साधना का अभ्यास करना चाहिए। अभ्यास से ही हम नेक और सच्चे इंसान बन पाएंगे। उन्होंने कहा कि जो दूसरे के दुख को देख कर दुखी नहीं होता है वो चाहे लाख भक्ति कर ले कोई फायदा नहीं। 

गुरु महाराज जी ने एक प्रसंग सुनाते हुए कहा कि एक बार कुछ हाजी हज यात्रा को जा रहे थे। उनमें से एक ने देखा कि एक इंसान पीड़ा से कराह रहा था। एक यात्री उसकी सेवा करने के रुक गया। बाकी सब ने हज किया लेकिन वो पीछे रह गया। जब वो हज पहुंचा तो सब वापिस आ रहे थे। रास्ते में सब चर्चा करने लगे कि किस की हज कुबूल होई और किस की नहीं। इतनी देर में भविष्यवाणी हुई कि हज तो केवल एक का ही हुआ है जिसने घायल इंसान की सेवा की है। गुरु महाराज जी ने कहा असली भक्ति किसी जरूरतमंद की सहायता करना है। परहित के समान कोई धर्म नहीं है। क्या फायदा ऐसे सत्संग का जो आपके अंदर परोपकार परमार्थ दया सब्र संतोष धैर्य के बीज नहीं बो पाया। उन्होंने कहा कि किसी के उकसावे पर आप अपनी वर्षो की अच्छाई को एक पल में खो देते हो। एक एक बूंद से घड़ा भरता है वैसे ही एक एक पल को अच्छाई में ढालते हुए आप महापुरषो की श्रेणी में आते हो। उन्होंने कहा कि एक पल में किसी को कुछ नहीं मिलता। समय आपको सब कुछ सिखाता है। गृहस्थ धर्म की पालना करते हुए सतनाम सत्संग और सतगुरु को अपनाओ। मन वचन और कर्म से पवित्र रहो। गुरु को कभी अपने माथे से मत उतरने दो। अपनी भूल भर्मना को त्याग कर चेतो। अपने गर्व गुमान को तज कर औरों के कुशब्दो को सहना सिख लो और व्यर्थ के वाद विवाद में अपने आप को मत फंसाओ आपको सत्पुरुष घर बैठे ही मिल जायेंगे। परमात्मा ना जप तप से रीझेगा और ना ही किसी विशेष क्रिया से वो तो आपके सत्यता और सहजता से रिझेगा।

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