शुद्ध अन्न से ही शुद्ध मन होता है, शुद्ध मन में ही भक्ति पनपती है
मेहनत, तप और त्याग के बिना सफलता प्राप्त नहीं हो सकती
कोसली के धरौली रोड पर स्थित राधास्वामी आश्रम में उमड़ा जनसैलाब, परमसंत सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने साध संगत को फरमाए सत्संग वचन

चरखी दादरी/कोसली जयवीर फौगाट

21 अगस्त, केवल नाम लेने भर से आप सत्संगी नहीं हुए। सत्संग है सत्य का संग और सत्य का संग आप आस्था और विश्वास से कर सकते हो। सत्संग परमात्मा के नाम का गुणगान है। जहां स्वयं परमात्मा का गुणगान होता है वहां परमात्मा हाजिर नाजिर रहता है। आप अपने कर्म में धर्म में वचन में भाव में ख्याल में परमात्मा को बसा लो। जिस बच्चे का पिता उसके सर पर खड़ा रहता है उसका बाल भी बांका नहीं होता। परमात्मा आपकी एक पुकार पर आता है जैसे द्रौपदी के लिए आया था।

हुजूर कंवर साहेब जी महाराज ने कहा कि द्रौपदी जब तक वीर महारथियों को पुकारती रही तब तक उसकी कोई मदद नहीं हुई लेकिन एक बार जब उस ने सर्वशक्तिमान को याद किया तो लाखो कोस दूर से भी परमात्मा उसकी मदद करने आ गया। हुजूर ने फरमाया कि मेहनत तप और त्याग के बिना आप सफलता नहीं प्राप्त कर सकते हो। अगर संकल्प धारा है तो अपनी वृतियां उसी पर एकाग्र करके उसे हासिल करो। संकल्प सिद्ध करने में अनेकों कष्ट भी सहने पड़ेंगे और बार-बार आपको विरोध भी झेलना पड़ेगा। एक किसान और विद्यार्थी को देखो। बिना काम की सफलता असफलता जाने वो पूरी मेहनत करते हैं। अनेकों मुसीबतों से लड़ते हैं तब जाकर उनकी फसल पकती है। गुरु जी ने फरमाया कि मीरा बाई के जीवन से प्रेरणा लो। पूरा जगत उसकी भक्ति का विरोध कर रहा था। कभी विष दिया गया तो कभी सामाजिक प्रताड़ना दी गई लेकिन मीरा बाई अपने संकल्प से नही डिगी। आज पूरा संसार मीरा को पूजता है। उन्होंने कहा कि इंसान तन-मन से पवित्र हो और वाणी का मीठा हो तो सफलता निश्चित है।

आज हम कबीर कबीर तो करते हैं लेकिन करनी के आस पास भी नहीं हैं। कबीर ने तो करनी कमा कर काया को जीता था। मन में खोट रख कर हम भक्ति नहीं कमा सकते। आज हमने प्रकृति को ही अपना दुश्मन बना लिया है। पेड़ पौधों को खत्म कर दिया है। वातावरण को दूषित कर दिया है। नतीजा आज हर इंसान दुखी और अस्वस्थ है। मेहनत करना तो दूर अब तो अपने क्षणिक सुख के कारण खाने-पीने की वस्तुओ को जहरीला और कर रहा है। प्रकृति ने इंसान को हर जरूरत की वस्तु दी थी। खाने की,  पीने की, दवा की। लेकिन आज हम शुद्धता की बजाए अशुद्धता की तरफ बढ़ रहे हैं। मिलावट के इस युग में रिश्ते नातों और भाव विचारो में भी मिलावट आ गई है।

गुरु महाराज जी ने कहा कि शुद्ध अन्न से ही शुद्ध मन होता है और शुद्ध मन में ही भक्ति पनपती है। उन्होंने कहा कि नशे विषयो से दूर रह कर मन से विकृतियों वाले भाव बाहर निकालो। ये जीवन बहुत कीमती है उसे गलत विचारो में मत फंसने दो। उन्होंने कहा कि परमात्मा ने अपना रूप देकर इंसान को धरा पर उतारा था लेकिन इंसान काल और माया की भूलभुलिया में फंस कर इस हीरे रूपी जीवन को बर्बाद कर रहा है। उन्होंने कहा कि जीवन में नियम धरो की जीयेंगे और जीने देंगे। हुजूर ने कहा कि संत सतगुरु की सोहबत पाकर अपने भूल भ्रम के पर्दों को हटाओ। संतो की शरनाई लेकर अपनें पीछे लगे पांच दुश्मनों को हटाओ। अपने ज्ञान का खानदान का जाति का पैसों का अभिमान मत करो। अपने कर्मो को सुधारो, सबसे प्यार करो। प्यार ऐसा साधन है जिससे आप किसी को भी अपना बना सकते हो। दूसरो के लिए परोपकार से पीछे ना हटो। जैसा आपका भाव है वही बदले में आपको मिलेगा। जब आपका विश्वास दृढ़ होता है तो पत्थर की मूर्त भी बोल पड़ेगी। विश्वास दृढ़ करके तो कर्मा कुबड़ी ने काठ की मूर्ति को भी खिचड़ी खिला दी। नामदेव ने अपनी झोपड़ी बनवा ली। धना भगत ने अपना खेत निपजवा लिया।

हुजूर ने कहा कि गुरु का वचन अगर सच्चे मन से मान लिया तो आपका कल्याण निश्चित है। उन्होंने कहा कि सत्संग में तीन चीजों को खुला रखो। आंख कान और हृदय। आंखो से गुरु के दर्शन करो, कानो से गुरु के वचन सुनो और हृदय में उन वचनों को रखो। उन वचनों का सार निकालो आपका जीवन सफल हो जाएगा। वेद पुराणों में भी बार बार यह कहा गया है कि गुरु के दर्शन मात्र से हृदय प्रसन्न हो जाता है। महाराज जी ने कहा कि देना सीखो आपको स्वत मिलता जाएगा। यहां कोई पराया नहीं है सब एक पिता की ही संतान हैं। कर के खाओ और लेकर देना सीख लो हर तरह से सुखी रहोगे।

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